एक ईमानदार आईएएस अफसर को जा बजा परेशान करने की कीमत यूपी सरकार को चुकानी पड़ी है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार पर 5 लाख रुपये जुर्माना लगाया हैvijay4741

एक ईमानदार अफसर के साथ सियासत कैसा खेल खेलती है इसका जीता जागता सबूत हैं वरिष्ठ आईएएस अफसर विजय शंकर पांडेय। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी जिसकी वजह से उन्हें ना सिर्फ निलंबित रहना पड़ा बल्कि सही तैनाती भी नहीं दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें परेशान करने के लिए यूपी सरकार पर पांच लाख का जुर्माना लगाया है।

रिपोर्ट आईबीएन-7
विजय शंकर पांडेय, उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अफसर हैं। कालेधन को लेकर याचिका दायर करने के मुद्दे पर मायावती सरकार ने उन्हें सस्पेंड कर दिया था। वे दो महीने निलंबित रहने के बाद बहाल हुए। अखिलेश सरकार आई, जांच में विजय शंकर निर्दोष साबित हुए, पर सरकार ने फिर बैठा दी जांच। नतीजा ना प्रमोशन मिला, ना कोई तैनाती।
तीन साल से विजय शंकर राजस्व परिषद में पड़े हैं। उन्होंने इस नाइंसाफी के खिलाफ याचिका दायर की थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश सरकार पर पांच लाख का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि किसी जांच की जरूरत नहीं है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर तलवार क्यों चली।

मायावती से अखिलेश तक
मायावती सरकार में इंडिया रिजुविनेशन इनीशेटिव ने कालेधन पर एक याचिका दायर की थी। इस संस्था के सदस्य थे विजय शंकर पांडेय। तत्कालीन कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने इसे आपत्तिजनक व्यवहार बताते हुए मुख्यमंत्री मायावती से उन्हें निलंबित करने की सिफारिश की थी।

 

2011 में वे निलंबित कर दिए गए और दो महीने बाद बहाल भी हो गए, लेकिन जांच जारी रही। अखिलेश सरकार ने अगस्त 2012 में जांच रिपोर्ट में उन्हें निर्दोष पाया, लेकिन अनुशासन समिति ने दोबारा जांच शुरू करा दी, इस पर सुप्रीम कोर्ट बिफर पड़ा।
फिलहाल विजय शंकर पांडेय इस मुद्दे पर कुछ कहना नहीं चाहते। सरकारी नुमाइंदे भी इस मुद्दे पर कन्नी काटते रहे। गौरतलब है कि 90 के दशक में विजय शंकर पांडेय ने भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी। उनकी पहल पर आईएएस अफसरों ने महाभ्रष्ट आईएएस का चुनाव किया था। हालांकि इसका औपचारिक ऐलान तो नहीं हुआ लेकिन चर्चा रही कि मुलायम सरकार के तत्कालीन मुख्य सचिव अखंड प्रताप सिंह और फिर नीरा यादव को महाभ्रष्ट चुना गया। जाहिर है, पांडेय की ये मुहिम ना अफसरों को रास आई और ना सरकारों को।

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