वरिष्ठ टिप्पणीकार और आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव को तमाम तर्क-वितर्क के बाद आखिरकार यूजीसी से हटा ही दिया है.

योगेंद्र यादव: राजनीति का चस्का
योगेंद्र यादव: राजनीति का चस्का

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने योगेंद्र यादव को इस आधार पर हटाया है कि उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य रहते हुए एक राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी ( आप) में शामिल हो गये थे.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय कारण बताओ नोटिस पर यादव के लंबे-चौड़े जवाब से सहमत नहीं है.मंत्रालय ने उनके जवाब और दलीलों को बेमानी करार देते हुए उन्हें खारिज कर दिया है.

सरकार ने यूजीसी एक्ट के नियम-6 (अयोग्यता, सेवानिवृत्ति, सदस्य की सेवा शर्ते) में निहित अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए यादव को यूजीसी सदस्य पद से बर्खास्त कर दिया. यादव ने कारण बताओ नोटिस के जवाब में सवाल उठाया था कि क्या वह कांग्रेस पार्टी में शामिल होते तो भी सरकार उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करती?

उनका तर्क यह भी था कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सोशलिस्ट पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद आचार्य नरेंद्र देव को यूजीसी का सदस्य बनाया था. मंत्रालय का इस तर्क के जवाब में कहना था कि उस समय यूजीसी एक्ट नहीं बना था. यह एक्ट 1956 में बना है.

मंत्रालय ने जोर देते हुए कहा है कि 1949 में डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में बने जिस यूनिवर्सिटी एजूकेशन कमीशन ने यूजीसी बनाने की सिफारिश की थी, उसने ही स्पष्ट कर दिया था कि आयोग को राजनीति से दूर रखा जाएगा, ताकि किसी संस्थान को अनुदान देने में नेता पक्षपात न कर सकें.

सूत्र बताते हैं कि सरकार ने 1999 में एमएल सोढी को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएसएसआर) का चेयरमैन बनाया था। राजग सरकार ने 2002 में ऐसे ही कारणों से उन्हें हटा दिया था। मामला कोर्ट में गया और शीर्ष अदालत ने सरकार के फैसले को सही ठहराया, जबकि यूजीसी के अब तक के इतिहास में कोई ऐसा सदस्य नहीं रहा है, जो किसी राजनीतिक पार्टी को चलाता हो.

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