राजद प्रमुख लालू यादव व सीएम नीतीश कुमार को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि भाजपा बिन ‘दूल्‍हा’  की बारात लेकर आ रही है। भाजपा के पास दूल्‍हा भी है,  बैंडबाजा भी है और बारात भी। उसने बैंडबाजा और बारात को सार्वजनिक कर दिया है, जबकि दूल्‍हे पर अभी पर्दा डाल रखा है। उसे डर है कि कहीं ‘दिल्‍ली की नजर ‘  न लग जाए। फिलहाल भाजपा किसी को किरण बेदी की तरह ‘शहीद’  नहीं करना चाहती है।modi 11

वीरेंद्र यादव

 

राजपूत जाति के हैं भाजपा के दूल्‍हा

सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार,  भाजपा का चुनाव प्रचार व रणनीति का संचालन आरएसएस कर रहा है। उसके जिलावार व विधानसभावार प्रभारी नियुक्‍त किए गए हैं। वही चुनाव का संचालन कर रहे हैं। अपनी रणनीति के तहत ही आरएसएस ने भाजपा की सरकार बनने पर संभावित मुख्‍यमंत्री भी तय कर लिया है। संभावित मुख्‍यमंत्री आरएसएस के स्‍वयंसेवक हैं। वे शाहाबाद के एक निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के उम्‍मीदवार भी हैं। वे रहने वाले रोहतास जिले के हैं। लेकिन वे उस क्षेत्र के निवासी नहीं हैं,  जहां से चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी जाति राजपूत है। यह उल्‍लेखनीय है कि भाजपा ने अपने सर्वाधिक उम्‍मीदवार राजपूत जाति के ही दिए हैं। जानकारी के अनुसार, आरएसएस ने उन्‍हें ‘बिहार का खट्टर’ बनाना तय कर लिया है। हरियाणा में भी भाजपा ने संघ के प्रचारक रहे पहले मनोहर लाल खट्टर को विधायक बनवाया और फिर बहुमत आने पर वे सीएम भी बन गए।

 

ग्रहण का संशय

अभी ‘बिहार के खट्टर’ का नाम भाजपा ने सार्वजनिक नहीं किया है। इसकी वजह जीत की संभावनाओं का आकलन है। चुनाव में कोई भी पार्टी जीत को लेकर आश्‍वस्‍त होती है। जीत की गारंटी जनता पर छोड़ देती है। आरएसएस का मानना है कि अभी बिहार की राजनीति में पिछड़ा कार्ड मजबूत हथियार है। यदि राजपूत को मुख्‍यमंत्री के रूप में प्रोजेक्‍ट करेंगे तो इसका खामियाजा भी उठाना पड़ सकता है। चुनाव जीतने के बाद भी राह आसान नहीं है। सहयोगी दल लोजपा,  रालोसपा या हम सवर्ण के नाम पर सहमत होंगे या नहीं,  अभी संशय ही है। संघ चुनाव परिणाम आने तक इंतजार करेगा। यदि भाजपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत में आयी तो ‘ बिहार के खट्टर ‘ की ताजपोशी में कोई रोड़ा नहीं आएगा। लेकिन सहयोगियों पर निर्भरता बढ़ी तो परेशानी हो सकती है। वैसी स्थिति में ‘बारगेनिंग’  भी संभव है। यदि भाजपा सत्‍ता में आती है तो बहुत कुछ विधायकों की संख्‍या पर निर्भर करेगा। उसी के आधार पर ‘खट्टर’ का भविष्‍य भी तय होगा।

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