विगत विधान सभा में जदयू के रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर पांडेय की काफी चर्चा रही थी। आप ‘पांडेय’ शब्‍द सुनकर दुविधा में नहीं पड़ें। ये वही प्रशांत किशोर हैं, जिन्‍हें सरकारी खर्चे पर जदयू के चुनाव प्रचार का ठेका मिला था। जन भागीदारी और विजन डाक्‍यूमेंट के लिए नीतीश सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किए थे। जनभागीदारी के चार माह के अभियान में जनता की जगह जदयू कार्यकर्ता सरकार का झोला ढो रहे थे और ‘विजन डाक्‍यूमेंट’ के नाम पर निकल कर आया ‘नीतीश निश्‍चय’ यानी जदयू का चुनावी घोषणा पत्र,  जिस पर राजद और कांग्रेस ने भी अपना झंडा चस्‍पा कर दिया। विधान सभा चुनाव के परिणाम आय करीब दो माह हो गए। मुख्‍य विपक्षी दल भाजपा को भी विजन डाक्‍यूमेंट के नाम पर खर्च हुए करोड़ों रुपये की चिंता नहीं है। वह अभी तक हार के सदमे से ही नहीं उबर पायी है। eeee

वीरेंद्र यादव

 

अब चर्चा है कि आगामी जून महीने में होने वाले राज्‍य सभा चुनाव में जदयू के टिकट पर नीतीश कुमार प्रशांत किशोर पांडेय को राज्‍यसभा में भेजेंगे। यह सिर्फ चर्चा है, कोई आधिकारिक घोषणा नहीं। लेकिन इस चर्चा से सबसे ज्‍यादा परेशान सीएम नीतीश कुमार के पूर्व प्रधान सचिव, स्‍वजातीय और राज्‍यसभा सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी हैं। लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार का ठीकरा भी उनके सिर फोड़ा गया था। पार्टी के दिन फिरे । जनता का फिर समर्थन मिला। पार्टी फिर सरकार में है। लेकिन आरसीपी सिंह फिर से राज्‍यसभा जाएंगे,  इसकी गारंटी में पार्टी देने को तैयार नहीं है। पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष शरद यादव, आरसीपी सिंह, पवन वर्मा, केसी त्‍यागी और गुलाम रसूल बलियावी का कार्यकाल आगामी जुलाई माह में समाप्‍त हो रहा है।

 

कांग्रेस तय करेगी जदयू का कोटा

राज्‍य सभा की पांच सीटों में से एक सीट भाजपा की झोली में जाएगी। जबकि विधायकों की संख्‍या के हिसाब से दो सीट राजद के खाते में जाएगी। शेष दो सीटों में से एक सीट पर जदयू के टिकट पर शरद यादव राज्‍य सभा में जाएंगे। शेष एक सीट में राजद व कांग्रेस के बीच समझौता हो सकता है। यदि यह सीट कांग्रेस के कोटे में गयी तो आरसीपी और प्रशांत किशोर दोनों के लिए राज्‍यसभा का रास्‍ता बंद हो जाएगा। लेकिन कांग्रेस ने यह सीट जदयू के लिए छोड़ दिया तो नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ सकती है। सबसे बड़ी दुविधा होगी कि कुर्मी को भेंजे या पांडेय को। दोनों की अपनी-अपनी उपयोगिता है, प्रतिबद्धता है। चुनाव गणित में जाति के लिहाज से पांडेय का पक्ष कमजोर हो सकता है। लेकिन बताया जाता है कि प्रशांत किशोर ने प्रशासनिक और सांगठनिक मामलों में भी दखल देना शुरू कर दिया है। वैसे में यह सवाल स्‍वाभाविक है कि क्‍या आरसीपी सिंह को प्रशांत किशोर हासिए पर धकेल पाएंगे। सवाल यह भी है कि क्‍या वास्‍तव में प्रशांत किशोर का पार्टी और सरकार में दखल बढ़ रहा है। यह सब भविष्‍य की चिंता है। और इसके लिए अभी छह माह का इंतजार करना होगा।

By Editor