बाबू वीरकुंवर सिंह की भूमि पर इस बार राजपूतों की तलवार चमकेगी। एनडीए में टिकट कटवाने और झपटने का खेल भी खूब होगा। आरा के सांसद आरके सिंह फिलहाल केंद्र सरकार में मंत्री हैं और इस सीट के प्रबल दावेदार भी हैं। वे मूलत: सुपौल के रहने वाले हैं। वे पेशे से आइएएस अफसर रहे हैं और केंद्र-बिहार सरकार के कई महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेवारी का निर्वाह कर चुके हैं। वे केंद्र सरकार में गृह सचिव जैसे पदों पर भी रह चुके हैं।
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वीरेंद्र यादव के साथ लोकसभा का रणक्षेत्र – 17 
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सांसद — आरके सिंह — भाजपा — राजपूत
विधान सभा क्षेत्र — विधायक — पार्टी — जाति
संदेश — अरुण कुमार — राजद — यादव
बड़हरा — सरोज यादव — राजद — यादव
आरा — नवाज आलम — राजद — शेख
अगिआंव —प्रभुनाथ प्रसाद — जदयू — रविदास
तरारी — सुदामा प्रसाद — माले — हलवाई
जगदीशपुर — रामविष्‍णु यादव — राजद — यादव
शाहपुर — राहुल तिवारी — राजद — ब्राह्मण
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2014 में वोट का गणित
आरके सिंह — भाजपा — राजपूत — 391074 (45 प्रतिशत)
श्रीभगवान सिंह — राजद — कुशवाहा — 255204 (29 प्रतिशत)
मीना सिंह — जदयू — राजपूत — 75962 (9 प्रतिशत)

लेकिन आरा सीट से आरके सिंह का टिकट इस बार निरापद नहीं है। एनडीए में इस सीट से कई दावेदार हैं, जिसमें प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। भाजपा के कई अन्य राजपूत नेता भी इस सीट पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं। इस सीट पर जदयू भी अपना दावा ठोक सकता है। आरा से समता पार्टी और जयदू के उम्मीदवार जीतते रहे हैं। 2009 में इस सीट से मीना सिंह जदयू के टिकट पर निर्वाचित हुई थीं, लेकिन 2014 में वे सांसद रहते हुए चौथे स्थान पर पहुंच गयी थीं।


सामाजिक बनावट
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आरा संसदीय सीट की सामाजिक बनावट यादव प्रभाव वाला माना जाता है। राजपूत और मुसलमानों की आबादी यादवों से कुछ ही कम होगी। पीरो के आसपास के इलाकों में भूमिहारों की अच्छी-खासी आबादी है। शाहपुर विधान सभा में ब्राह्मणों का प्रभाव माना जाता है। आरा शहर में बनियों की आबादी भी काफी है। अतिपिछड़ी जातियां की बड़ी ताकत यहां है। अनसूचित जाति की आबादी 15-17 प्रतिशत होगी।
माले की उम्मीद
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नक्सली आंदोलन का केंद्र आरा जिला ही रहा है। शाहाबाद का सोनतटीय इलाका नक्सली आंदोलन का मुख्य कार्यक्षेत्र रहा है। रणवीर सेना का कार्यक्षेत्र भी यही इलाका था। रणवीर सेना के प्रमुख ब्रहमेश्वर मुखिया इसी जिले के रहने वाले थे। आईपीएफ या माले के अब तक एक ही सांसद हुए हैं और रामेश्वर प्रसाद इसी क्षेत्र में 1989 में निर्वाचित हुए थे। दूसरी बार संसद का मुंह देखने का मौका माले को नहीं मिला। रामेश्वर प्रसाद शाहाबाद और मगध इलाके से जीतने वाले संभवत: पहले अतिपिछड़ा सांसद थे। इनके अलावा अन्य कोई अतिपिछड़ा सांसद इस इलाके से नहीं निर्वाचित हुए। 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर माले तीसरे स्थान पर रही थी, जबकि सत्तारूढ़ जदयू चौथे स्‍थान पर पहुंच गया था। 2014 के चुनाव में माले के राजू यादव को 98 हजार 8 सौ वोट मिले थे, जबकि जदयू की मीना सिंह को 75 हजार 962 वोट मिले थे।
कौन-कौन हैं दावेदार
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आरा में एनडीए में टिकट को लेकर खींचतान संभव है। यदि यह सीट भाजपा के पास रहती है तो आरके सिंह ही प्रबल दावेदार माने जा सकते हैं। लेकिन नयी उम्मीदवारी की संभावना को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। यदि जदयू के खाते में सीट गयी तो उम्मीदवार मीना सिंह ही होंगी, इतना तय है। मीना सिंह को पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं है। उधर महागठबंधन में अभी कोई फार्मूला तय नहीं है। यदि माले राजद गठबंधन के साथ जुड़ता है तो उसकी सर्वाधिक पसंदीदा सीट आरा ही है। वह इस सीट पर अपनी दावा कर सकता है। राजद या कांग्रेस को माले के दावे पर कोई आपत्ति भी नहीं होगी। गठबंधन है तो सीट की दावेदारी स्वाभाविक है। माले दो सीटों आरा और काराकाट पर ही अपनी दावेदारी जतायेगा। राजनीतिक गलियारे में चर्चा के अनुसार, महागठबंधन में आरा सीट का माले के कोटे में जाना तय माना जा रहा है। माले किसे उम्मीदवार बनायेगा, अभी तय नहीं है।

By Editor