15 लाख छात्र सीबीएससी की इनजिनियिरिंग प्रेवश परीक्षा में बैठते हैं जबकि एक प्रतिशत छात्र बमुश्किल सफल हो पाते हैं. सीबीएसी की शिक्षा व्यवस्था इतनी खतरनाक है कि लाखों असफल बच्चों का जीवन तबाह व बरबाद हो रहा है.

आत्महत्या करने को भी मजबूर होते हैं असफल छात्र
आत्महत्या करने को भी मजबूर होते हैं असफल छात्र

ओवैस अम्बर की कलम से

भारत की प्रगति के दावे चारो ओर किये जा रहे हैं. इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रगति की बात की जा रही है. जहां जाइए वहां- स्कूलों में, कालेजों में या कोचिंग संस्थानों में- छात्रों की संख्या और शिक्षा के व्यवसायीकरण को ही सफलता का आधार माना जा रहा है.

भयंकर भूल

पर हकीकत यह है कि यह एक भयंकर भूल है. और अगर यही हालात रहे तो यह हमारे देश की शिक्षा की त्रासदि सुनिश्चित है क्योंकि ऐसी स्थिति में कहने को तो डिग्री हरेक के पास होगी पर शिक्षा की गुणवत्ता की कमी के कारण जानकारी का स्तर इतना कम होगा कि ऐसी शिक्षा हमारे किसी काम की नहीं होगी.

परम्परागत शिक्षा ही रास्ता

हमारे देश में परम्परागत तौर पर शिक्षा की शुरुआत गुरुकुल से हो कर विश्वविद्यालय तक पहुंचती रही है और यह शिक्षा व्यवस्था इतनी प्रमाणिक रही है कि इसका प्रकाश पूरी दुनिया तक फैलता रहा है. जबकि शिक्षा की नयी नीति ने शिक्षा के व्यवसायीकरण की छूट दे रखी है. शिक्षा के व्यवसायीकरण के नाम पर सीबीएससी औ प्राइवेट कोचिंग संस्थानों ने बच्चों के जीवन से खिलवाड़ कर रखा है. इतना ही नहीं उनके इस प्रयास के कारण छात्रों की मेधा शक्ति का दोहन भी हो रहा है. यहां यह बताना जरूरी है कि सीबीएससी द्वारा आयोजित जईई मेन/एडवांस परीक्षा के कारण कोचिंग का उद्योग चल रहा है.

 

छात्रों की बरबदी मं सीबीएससी का हथ

सीबीएससी के शिक्षा की मौजूदा व्यवस्था का ही लाभ उठा कर कोचिंग संस्थान करोडों अरबों रुपये का वरा न्यारा कर रहे हैं. इस पर गंभीर बहस होनी चाहिए कि जेईई मेन व एडवासं की जरूरत है या नहीं. सीबीएससी कोई ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं कर सकता जिससे एनआईटी या आईआईटी में नामांकन के लिए लाखों की फौज को नियंत्रित किया जा सके. यह कैसी विडम्बना है कि भारत के इंजिनियरिंग कालेजों में दाखिला के लिए 12वीं कक्षा में न्यूनतम 45-50 प्रतिशत अंक लाने को अहर्ता स्वीकार किया जाता है. लेकिन उनका नामांकन इंजिनियिंग कालेजों में नहीं हो पाता. वे कोचिंग संस्थानों के मकड़जाल में उलझ के रह जाते हैं. एक संस्थान के अध्यक्ष ने दावा किया है कि कोई भी छात्र 50 प्रतिशत अंक ले कर इंजिनियरिंग कालेज में दाखिला ले सकता है. लेकिन पचास प्रतिशत अंक लाने वाले ज्यादा तर बच्चे क्या प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल हो कर सफलता पा सकते हैं? अपवाद के रूप में ऐसा हो सकता है लेकिन ज्यादा तर वो बच्चे जो 12वीं कक्षा में कमजोर हैं वह प्रतियोगिता में टिक नहीं पाते.

शैक्षिक प्रगति का पैमाना

हर देश की शैक्षिक प्रगति का आधार GERWS gross enrolment ratio रहना चाहिए लेकिन आज की तारीख में जीईआर एक कागजी घोड़ा बनके रह गया है. कालेजों में छात्रों का नामांकन है पर उसका ज्यादतर समय कोचिंग संस्थानों में भागदौड़ में गुजर रहा है. कोचिंग संस्थानों के इस महाजाल के बावजूद उनमें पढ़ने वाले छात्रों की सफलता की दर एक प्रतिशत से भी कम है.

चौपट होती कॉलेज शिक्षा

जब कोचिंग संस्थानों का चलन नहीं था तब सफलता की दर एक प्रतिशत से कहीं ज्यादा थी. शिक्षा की गुणवत्ता को स्कूल और कालेज के स्तर पर ही सुधारा जा सकता है. इनजिनियरिंग, मेडिकल व मैनेजमेंट के नाम पर कोचिंग का बहुत बडा गोरखधंधा चल रहा है. एआईपीएमटी, जेईई मेंस व एडवांस और इसी तरह मैनेजमेंट के लिए कोचिंग कराने वाले संस्थानों ने कालेजों की शिक्षा में ऐसा वायरस लगा रखा है जिसे बचाने की जरूरत है.

जेईई-मेन परीक्षा का खेल

जेईई मेन और एडवांस एक ऐसा छल बन चुका है और इसकी आड़ में कोचिंग संस्थान अपनी दुकानें चला रहे हैं. जेईई मेन सीबीएससी द्वारा बनायी गयी एक ऐसी रणनीति का नतीजा है जिसके कारण छात्र अतिमहत्वकांक्षा का शिकार हो रहे है और उसके बाद आईआईटी की भूलभुलैया में गुम हो रहे हैं.

ऐसे में उन छात्रों के ऊपर इतना मानसिक दबाव क्यों दिया जाता है? ऐसे ही बच्चे मानसिक दबाव को बरदास्त नहीं कर पाते और आत्महत्या तक की नौबत आती है. इसलिए हम कह सकते हैं कि सीबीएसएसी की शिक्षा की मौजूदा व्यवस्था ही बच्चों की आत्महत्या की जिम्मेदार है.

नोट- कल पढ़िये इस लेख का अंतिम पार्ट. कैसे लूट रहे हैं कोचिंग संस्थान

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/05/owais.ambar_.jpg” ] ओवैस अम्बर रोजमाइन एजुकेशनल ऐंड चरिटेबल ट्रस्ट क चेयरमैन व नेशनल करियर काउंसलर हैं.[/author]

 

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