यह कैसा तंत्र है जहां 6 बेगुनाह  आतंकवाद के झूठे जुर्म में सलाखों में सड़ते रहे  और जब सुप्रीम कोर्ट ने बाइज्जत बरी किया तो दस साल बीत चुके थे. इनकी दर्द भरी कहानी आपको इस तंत्र के दोमुहेपन की सच्चाई बता देगी.

रिहाई के बाद
रिहाई के बाद

गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर आतंकी हमले के इल्जाम में इन्हें गिरफ्तार किया गया. निचली अदालतों ने जांचकर्ताओं की साजिशों पर आधारित सुबूतों पर उम्र कैद की सजा सुना दी. सच्चाई की जीत होने में दस साल लग गये. पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें बाइज्जत बरी किया तो यह टिप्पणी भी कर दी कि गुरात के गृहमंत्री ( तब यह पद नरेंद्र मोदी के पास था) ने इस मामले में ‘माइंड का अप्लिकेशन’ नहीं किया.

प्रेस को सुनायी दर्द भरी कहानी

गुजरात पुलिस ने उन्हें तीन विकल्प दिये थे- वह स्वीकार कर लें कि उन्होंने गोधरा में ट्रेन में आग लगायी थी, हरेन पांड्या की हत्या की थी और अक्षरधाम में बम हमला किया था. अक्षर धाम बम हमले के आरोपों से सुप्रीम कोर्ट से बरी किये जाने वाले मोहम्मद सलीम ने इस बात का खुलासा किया है. सलीम को पोटा की अदालत ने उम्रकैद की सजा दे रखी थी.

इसी से जुड़ी- बेशर्म मीडिया की भूमिका

 

यह कितनी हैरत की बात है कि 16 मई को नरेंद्रमोदी के नेतृत्व में भाजपा ने ऐतिहासिक चुनावी जीत हासिल की और उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद सलीम और पांच अन्य को अक्षर धाम मंदिर बम धमाका मामले में बाइज्जत बरी करते हुए टिप्पणी की कि इस मामले में गुजरात के त्तकालीन गृहमंत्री( खुद मोदी) ने इस मामले में बुद्धि का उपयोग नहीं किया.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किये गये इन छह लोगों में से चार अब तक अपने जीवन के दस साल जेल में गुजार चुके हैं.

 

जब उन्होंने मुझे, मेरे पास्पोर्ट में गड़बड़ियों के आरोप में गिरफ्तार किया तो मैं 13 वर्षों से सऊदी अरब में काम कर रहा था. उन्होंने मुझे बेरहमी से मारा-पीटा. अभी तक मेरी पीठ पर पिटाई के घाव के निशान हैं. मेरा पैर तोड़ दिया गया. सलीम ने इन बातों का खुलासा दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेस में दी. उन्होंने कहा कि उन्हें अक्षरधाम, गोधरा ट्रेन जलाने और हरेन पांड्या की हत्या मामले में चार्ज करना चाहते थे.

अब्दुल कयूम मुफ्ती 

जेल में बिताय इन ग्यारह वर्षों में अब्दुल क्यूम मुफ्ती की जिंदगी पूरी तरह से बदल गयी है. उनके पिता की मौत हो चुकी है. उनका परिवार आर्थिक संकट के कारण अब उस पुराने शहर को छोड़ चुका है जहां वह पहले रहता था. क्यूम कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मिली उनकी रिहाई, महज कैद से छुटकारा है पर सच्चाई यह है कि इंसाफ पिछले ग्यारह सालों से दफन है. कयूम कहते हैं कि उनके ऊपर लगे प्रमुख आरोप यह थे कि  आतंकी हमले में मारे गये दो फिदाईन हमलावरों से मिले पत्रों को मेरे द्वारा लिखा गया था. कयूम कहते हैं ऐसे ही बेबुनियाद आरोप मुझपे लगाये गये थे.

कयूम कहते हैं लगातार तीन दिन और तीन रात उन्होंने (जांच कर्ताओं ने) मुझे मजबूर किया कि मैं एक पत्र जिसका मजमून उन्होंने तैयार कर रखा था, उसकी नकल करके उन्हें दे दूं. उनके दबाव और प्रताड़ना से भयभीत हो कर मैंने उस पत्र की नकल करके उन्हें दे दिया. फिर इसके बाद उन्होंने मेरे साथ विश्वासघात करते हुए उन पत्रों को अदालत के सामने पेश कर दिया और बताया कि ये पत्र मैंने लिखा है.

नोट- मोहम्मद सलीम,अब्दुल कैयुम और सुलेमान मंसूरी समेत छह लोगों को निचली अदालतों ने सजा दी थी. दस साल बाद इनकी बेगुनाही साबित हो सकी. तब तक यह सलाखों में बंद रहे.

इंडियन एक्सप्रेस से साभार

 

By Editor

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