मकर संक्रांति और दावत ए इफ्तार यूं तो मजहबी अनुष्ठान का हिस्सा हैं लेकिन अब लालू प्रसाद ने साबित कर दिया है कि इफ्तार की तरह सकरात से भी सियासत की जा सकती है.sakrat

नौकरशाही डेस्क

लालू ने इस 14 जनवरी को मकर संक्रांति के चूड़ा दही भोज का आयोजन किया. फिर 15 को अल्पसंख्यक समुदाय के लिए विशेष भोज रखा. सर पर टोपी लगाये लोगों की भीड़ दूसरे दिन उमड़ पड़ी. इस भीड़ में ऐसे मुस्लिम चेहरों ने भी नमाजी टोपी पहन रखी थी जो अमूमन जुमे की नमाज पढ़ते भी नहीं देखे जाते. खुद लालू सफेद फर की टोपी पहन, लोगों की अगुवायी में जुट गये. बेटे तेजप्रताप ने भी पिता का अनुसरण किया.

कड़वाहट में मिठास

दही परोसते हुए तेज ने मेहमान नवाजी की. सकरात की यह सियासत दर असल जनता परिवार के विलय में हो रही देरी की कड़वी तासीर को मीठी करने का प्रयास है. लालू  के अपने तौर-तरीके और लोगों को हंसाने खेलाने के पुराने अंदाज को जीवित करने के कई मायने हैं. लालू अपने खोये जनाधार और लोकप्रियता के लिए सकरात को पैमाने के रूप में परखना चाहते थे. इसकी वजह भी थी- पिछले कुछ महीनों से लालू अपनी बीमारी और फिर बेटी की शादी की तैयारियों के कारण आम जनता से कट कटे से रहे. इस बीच राजनीतिक बदलाव की जो नयी बयार आयी इसने उनमें उत्साह भर दिया. सो उन्होंने इस उत्साह को सकरात के चूड़ा दही से उजागर करना चाहा.

भोज से हासिल किये ये लक्ष्य

14 जनवरी को जनता परिवार के नेता, हरियाणा और उत्तर प्रेदश से तो आये ही, बिहार के कई बड़े चेहरों ने भी इसमें शिरकत की. सकरात की यह दावत पुराने परिवार के एक होने के जश्न जैसा साबित हो सके, इसकी कोई कसर लालू ने नहीं छोड़ी. इसी तरह 15 के आयोजन के जरिये लालू ने मुस्लिम समाज में अपनी पैठ को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया. उनकी मेहमाननवाजी ने कई लोगों को मनमस्त कर दिया. खुद से एक एक कर के लोगों तक पहुंच कर हर किसी को खूब डट कर खाने की बात कहते हुए यह कहना भी नहीं भूलते कि ऐसा दही तो आम तौर पर अब मिलता ही नहीं. दही के मोटापन का आनंद तो तभी लिया जा सकता है जब इसे मिट्टी की हांडी में जमाया जाये.

पार्टी के दौरान लालू ने कम से कम तीन लक्ष्य हासिल करने की कामयाब कोशिश की. दिल के ऑपरेशन के बाद वह पहली बार आम जन से खुलकर मिले और जताया कि अब उनकी सेहत ठीक हो चुकी है और जल्द ही मैदान में उतरेंगे. दूसरी बात यह कि इस आयोजन से लोगों को यह जताने की कोशिश की गयी की राष्ट्रीय जनता दल अब पूरे उत्साह से लबरेज है. कहीं कोई हताशा नहीं. और तीसरी बात यह कि जनता परिवार की एकता की दिशा में की जा रही कोशिश में, भले ही देर लगे, पर कामयाब रहेगी.

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