बिहार के सत्ता केंद्र के इशारे पर उठने-बैठने वाले आईएएस अफसरान आज सीना तान के उसके खिलाफ खड़े हो गये हैं. यह एक ऐतिहासिक स्थिति है. सवाल यह है कि आईएएस लॉबी में इतना साहस कहां से आ गया और इसके पीछे कौन सी शक्ति है?

आईएएस अफसरों ने राजभवन के सामने बनाई इंसानी जंजीर
आईएएस अफसरों ने राजभवन के सामने बनाई इंसानी जंजीर

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

यह स्थिति तब है जब नीतीश कुमार देश के उन गिने-चुने और ताकतवर मुख्यमंत्रियों में से एक हैं जो न सिर्फ आईएएस अफसरों में काफी लोकप्रिय हैं बल्कि वह नेताओं से ज्यादा नौकरशाहों पर भरोसा जताने के लिए विख्यात रहे हैं. लेकिन इन सब के बावजूद बिहार के आईएएस अफसरों के एसोसियशन के लोग राजभवन के सामने मानव जंजीर बनके रविवार को खड़े हो गये.

एसोसिएशन, बीएसएसी के अध्यक्ष सुधीर कुमार की गिरफ्तारी को गलत बताते हुए सड़कों पर आ गया. बिहार में इससे पहले ऐसा नहीं देखा गया. नौकरशाही डॉट कॉम से बात करते हुए पूर्व आईएएस अधिकारी एमए इब्राहिमी इसे ‘हिस्टोरिकल’ करार देते हैं. इब्राहिमी 35 साल से ज्यादा समय तक बिहार के प्रभावशाली पदों पर काम करने वाले आईएएस रहे हैं.

यहां यह याद रहे कि यह झमेला तब शुरू हुआ जब बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित क्लर्क नियुक्ति परीक्षा के पेपर लीक हुए. आयोग के सचिव के बाद अध्यक्ष व पूर्व गृहसचिव को गिरफ्तार कर लिया गया. सुधीर को बिहार से नहीं, झारखंड से उठा लाया गया. एसोशिएशन का दावा है कि सुधीर ईमानदार अफसर हैं और उन्हें कुछ खास ताकतों ने बदला लेने के लिए अरेस्ट करवाया है. इस कदम से एसोसिएशन इतना नाराज हुआ कि उसने घोषणा कर दी कि अबसे वे मुख्यमंत्री सचिवालय समेत किसी भी बड़े कार्यालय के मौखिक आदेश का पालन नहीं करंगे. एसोसिशन की यह चुनौती भले ही सीधे तरीके से मुख्यमंत्री को चुनौती नहीं हो, पर उनके कार्यालय को जरूर है. सवाल यह है कि जिस मुख्यमंत्री कार्यालय(सचिवालय) का एक-एक हुक्म आखिरी शब्द की हैसियत रखता हो,उसको चुनौती देने के पीछे, इतना बड़ा साहस आईएएस एसोसिएशन को कैसे और कहां से आ गया. जबकि सच्चाई यह है कि हाल तक आईएएस एसोसिएशन गेटटुगेदर और चाय की चुस्की लेने के अलावा कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं रहा है. पर अब सत्ता के खिलाफ सड़कों पर उतरने के साहस के पीछे के की सच्चाई को ऐसे समझ सकते हैं.

एक

सिविल एडमिंस्ट्रेशन देश के सिस्टम का सबसे शक्तिशाली अंग है. लेकिन राजनीतिक सत्ता इसे कमजोर करने के लिए सबसे पहले टुकड़ों में बांट देती है.  राजनीतिक सत्ता सबसे पहले दमदार अफसरों को किनारे लगा देती है. फिर चहेतों को अपने इर्दगिर्द बिठा लेती है. और तब यहीं से सारी शक्तियां नियंत्रित होने लगती हैं. और तब शक्ति का मिसयूज शुरू हो जाता है. और एक एक कर अफसरों पर गाज गिरती चली जाती है. नतीजा- अफसर इसे सत्ताकेंद्र के सामने बेबस और लाचार हो जाते हैं. याद रहे कि हर मामले में राजनीतिक सत्ता का इसमें खास रोल नहीं होता. मोहनिया के आईएएस अफसर पिछले दिनों जेल गये. एक आईपीएस अफसर को सस्पेंड होना पड़ा.  लेकिन आईएएस लाबी कुछ नहीं कर सकी. दोनों मामलों में या तो अदालती हस्तक्षेप से या कैट( सेंट्रल एडमिंस्ट्रेटिव ट्रिब्युनल) की दखलअंदाजी से इन अफसरों को निर्दोष साबित होना पड़ा. ऐसे अनेक उदाहरण हैं.  आईएएस एसोसिएशन बिना दांत का संगठन साबित होता रहा.

दो

लेकिन यह पहला अवसर था कि आईएएस एसोसिएशन सरगर्म हुआ. सूत्र बताते हैं कि इस सरगर्मी और उत्साह क पीछे सीनियर अफसरों की खास भूमिका नहीं थी. इसके पीछे नवजवान आईएएस अफसरों का दबाव था. विभिन्न जिलों के डीएम, एसडीओ जैसे अधिकारी इस बार अड़ गये. उनका तर्क था कि आने वाले दिनों में हालात और खराब होंगे. कब कौन अफसर जेल पहुंचा दिया जाये, कोई नहीं जानता. इसलिए इन अफसरों ने एसोसिएशन को बाध्य किया कि वह नाइंसाफी के खिलाफ खड़ा हो. एसोसिएशन की बैठक में इसी के बाद राजभवन मार्च का ऐतिहासिक प्रस्ताव स्वीकार हुआ.

तीन

लालू प्रसाद, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और रामबिलास पासवान जैसे नेताओं के बयान आईएएस एसोसिएशन के लिए प्रेरक बने. लालू ने तो गिरफ्तार सुधीर कुमार को ईमानदार अफसर करार दिया. यही तर्क एसोसिएशन भी देता रहा है. नेताओं के इस बयान से नये नौकरशाहों को अपना स्टैंड तय करने का रास्ता दिया. तब एसोसिएशन गवर्नर से मिला. सूत्र बताते हैं कि गवर्नर का रुख एसोसिएशन के फेवर में रहा.

चार

बिहार में जिस तरह सीएमओ नौकरशाहों का सबसे बड़ा सत्ता केंद्र है, उसी तरह केंद्र में नौकरशाहों की एक मजबूत लाबी है जो सीएमओ के नौकरशाहों से त्रस्त रही है. केंद्र की यह लाबी सेंट्रल एडमिंस्टेटिव ट्रिब्यूनल के समक्ष अपना मजबूती से पक्ष रखती है.और उसे भरोसा है कि आखिर-आखिर में सुधीर कुमार की गिरफ्तारी को अवैध करार दी जा सकती है. इसलिए भी आईएएस एसोसिएशन पूरी हिम्मत के साथ सीएमओ के खिलाफ खड़ा हो गया.

पांच

सीएमओ में कुछ आईएएस अफसरान और कुछ एक्सट्रा कंस्टिटियुशनल ऑथार्टी के बारे में बताया जाता है कि वह सिवल प्रशासन के अफसरों के साथ क्लर्कों की तरह व्यवहार करते हैं. वे महज एक फोन करके किसी भी अधिकारी को हड़का देते हैं. आलम यह है कि सचिव स्तर के नौकरशाह भी उनसे पनाह मांगते हैं. ऐसे में नये बैच के आईएएस अफसरों में उनके खिलाफ विद्रहो के स्वर बढ़ते चले गये हैं. ये उत्साही अफसरान अपने लम्बे करियर में खुली हवा में सांस लेना चाहते हैं. इसलिए वे चाहते हैं कि सीएमओ के कुछ खास नौकरशाहों की दखलअंदाजी बंद हो.

इस पूरे प्रकरण में नीतीश कुमार,  जो सीएमओ के हेड की हैसियत रखते हैं, अभी तक उनकी कोई निर्णायक प्रतिक्रिया नहीं आयी है. लेकिन सूत्रों का कहना है कि नीतीश अब चुप नहीं बैठेंगे. उन्हें कुछ करना होगा, बल्कि वह एसोसिएशन के गर्म तेवर को भांपते हुए सकारात्मक स्टैंड ले सकते हैं.

 

 

By Editor