निधि के मां-बाप उस हेल्थ रिपोर्ट को फाड़ डालना चाहते हैं जिसमें दर्ज है कि उनकी बेटी मां नहीं बन सकती क्योंकि यह सारी रिपोर्ट डॉक्टरों का स्मार्ट कुकर्म, फरेब और झूट है.हमारे उत्तर बिहार संवाददाता पंकज कमुार इस कुकर्म की पेचीदगियों पर रौशनी डाल रहे हैं.

समस्तीपुर की 13 वर्षीय निधि के मां-बाप की चिंता यह है कि जब वे बिटिया की शादी की बात चलायेंगे तो निधि की हेल्थ रिपोर्ट देख कर लड़के वाले शादी से मुकर जायेंगे क्योंकि निधि मां नहीं बन सकती.

इसलिए निधि के मां-बाप उस हेल्थ रिपोर्ट कार्ड को फाड़ डालना चाहते हैं. कम्प्युटर में दर्ज रिपोर्ट की वह हार्ड डिस्क भी तोड़ देना चाहते हैं. क्योंकि यह सारी रिपोर्ट डॉक्टरों का स्मार्ट कुकर्म,फरेब और झूठ का पुलिंदा है.

हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार समस्तीपुर की सिजौली गांव की निधि का शहर के लाईफ लाइन अस्पताल मे गर्भाशय निकाला गया. जबकि निधि की मां का कहना है कि उनकी 13 वर्षीय नाबालिग बेटी आज तक किसी सरकारी या गैर सरकारी अस्पताल मे गई ही नहीं, तो फिर गर्भाशय कैसे निकाला गया.

लाइफलाइन के डॉक्टरों और अस्पताल के प्रबंधकों का स्मार्ट कुकर्म यह है कि उन लोगों ने निधि का ऑप्रेशन दिखा कर उनके बीपीएल स्मार्ट कार्ड से पैसे ट्रांस्फर कर लिये हैं.

समस्तीपुर के ही वाजिदपुर गांव की मंजू देवी पेडू मे दर्द की शिकायत लेकर रामज्योति अस्पताल गईं तो एपेन्डिक्स के नाम पर ऑप्रेशन किया गया. पुनः दर्द होने पर दुबारा एपेन्डिक्स निकालने का ऑप्रेशन किया गया पर जांच से पता चला कि एपेन्डिक्स का ऑप्रेशन कभी हुआ ही नहीं. और स्मार्ट कार्ड से पैसे अस्पताल के खाते में ट्रांस्फर कर लिए गये.

इसी तरह का तीसरा मामला कुछ और ही कहानी बयां करता है.

औरगाबाद के न्यू एरिया निवासी मालती देवी ने पेट दर्द से परेशान होकर चिकित्सक की सलाह पर गर्भाशय का ऑप्रेशन तो करवा लिया पर अब उनकी पीड़ा घटने के बजाये और बढ़ गई है. मालती के गर्भाश्य का ऑप्रेशन तो हो गया पर उनकी पीड़ा घटने के बजाये बढ़ जाना, ऐसे अस्पतालों और डॉक्टरों की योग्यता पर सवाल तो खड़ा करता ही है.

बिहार मे वर्श 2008 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना लागू हुई. इस योजना में राज्य के 756 और बिहार से बाहर के 52 अस्पताल शामलि हुए. इस योजना के तहत एक स्वास्थ्य कार्ड पर परिवार के पांच सदस्य साल मे तीस हज़ार रुपये तक का इलाज करा सकते हैं. जिसकी 75 फीसद राशि केंद्र सरकार वहन करती है जबकि बाकी 25 प्रतिशत खर्च राज्य सरकार को वहन करना होता है.

योजना पर नजर बनाए रखने की जिम्मेदारी जिलाधिकारियों को सौपी गई है. पर जिलाधिकारियों ने अगर अपनी जिम्मेदारी को निभाया होता तो जो रहस्योद्घाटन 2012 में हो रहे हैं इसकी नौबत ही न आती.

अब राज्य सरकार ने पत्र लिख कर तमाम जिलाधिकारियों से कहा है कि वे इस मामले की जांच करें और ऐसे मामले अब न हो पायें इस लिए इस पर कड़ी नगरानी रखें. पर मोतिहारी समेत अनेक जिलों में नौकरशाहों की लेटलतीफी का आलम यह है कि वहां इस संबंध में कोई जांच अभी तक शुरू ही नहीं की गई है. मोतिहारी के जांच दल मे शामिल डा. आलोक कुमार ने नौकरशाही डॉट इन से स्वीकार किया है कि जांच संबंधी लिखित दिशानिर्देश अभी तक उन्हें मिला ही नहीं है. ऐसे में उन्होंने अभी तक जांच शुरू नहीं की है.

(गोपनीयता बरतने के लिए कुछ मरीजों के नाम बदल दिये गये हैं)

पंकज कुमार कई इल्कट्रानिक और प्रिंट माध्यमों में पत्रकारिता का अनुभव रखते हैं. मोतिहारी में रहते हैं और फिलहाल नौकरशाही डॉट इन के उत्तर बिहार संवाददाता हैं

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