अल्लाह को अत्याचार और हिंसा पसंद नहीं.अल्लाह युद्ध की अनुमति तभी देता है जब कोई और रास्ता ना बचे. कुरान का फरमान है “मगर जो लोग किसी ऐसी कौन से जा मिले कि तुम में और उनमें ऐहद व पैमान हो चुका है या तुम से जंग करने में अपनी कौम के साथ लड़ने से दिल तंग होकर तुम्हारे पास आए हों और अगर यह गुफा सुलह चाहते हों तो तुम भी उसकी तरफ सुलह का हाथ बढ़ाओ. और खुदा पर भरोसा रखो क्योंकि वह बेशक सब कुछ सुनता और जानता है.

कुरान की इन आयतों ने इस्लाम को एक धर्म के तौर पर पसंद किया और इसे  भाई चारगी अमन और आस्ती के पैगाम से भर दिया.

अमन पर कुरान का फरमान

वह जंग पर अमन को इस हद तक वरीयता देता है कि पूरी मुस्लिम उम्मत और यहां तक कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भी अमन की  पेशकश कुबूल करने का हुक्म देता है.

सुलह हुदैबिया के पीछे जज्बा यही था. इस तथ्य को इब्ने शाम इब्ने हसन और इब्ने कसीर जैसे इतिहासकारों ने नकल किया है कि जब पैगंबर इस्लाम मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज अदा करने के लिए मदीना से मक्का आए तो आपके साथ  बहुत सारे सहाबा थे जो सारे इस्लाम के दुश्मनों से लड़ने के लिए और आपके इशारे पर अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार थे. लेकिन उन्होंने कभी भी जंग करने की अनुमति नहीं दी.

[divider]

यह भी पढ़ें- पैगम्बर ए इस्लाम विभिन्न मतावलम्बियों के साथ शांति व सहअस्तित्व के हिमायती थे

[divider]

उन्होंने कुरैश कबीले के उन 200  सवारों के साथ भी लड़ने की अनुमति नहीं दी जो सरकाशी के साथ इनके  खेमे तक पहुंच चुके थे. पैगंबर ने देखा की जबरदस्ती मक्का शहर में दाखिल होने से खून खराबा होगा. यही कारण था कि आपने एक समझौता किया कि आप और आपके सहाबा को अगले साल हज करने से नहीं रोका जाएगा तब तक के लिए उनके बीच कोई जंग नहीं होगी.

पैगम्बर ने दुश्मनों को माफ किया

अपने दुश्मनों पर मोहम्मद की सबसे बड़ी विजय का दिन खुद उनके लिए अपने आप पर सबसे बड़े विजय का दिन था उन्होंने कुरैश के उन सभी अत्याचारों को माफ कर दिया जो उन्होंने इतने सालों तक आपके ऊपर ढाये थे.उन्होंने उस दिन मक्का की पूरी आबादी को आम माफी अदा कर दी थी. सुलह हुदैबिया की घटना से मक्का विजय के दिन अबू  सुफियान और हक्म बिन साजन के घर में अमन व शांति की जमानत में हमें इस्लाम की मंशा का अंदाजा लगाना चाहिए.

जंग पर अमन को प्राथमिकता

इस दौर में जब कुछ लड़ाकू गिरोहों इस्लाम को बदनाम करने की की कोशिश में थे, लेकिन फिर भी पैगम्बर साहब ने अमन को चुना. हमें लगातार कुरान के इन संदेशों का प्रचार करना चाहिए जिनका अमन स्थापित करने में एक बड़ा किरदार है.

 

अतिवादियों के चपेट में युवा

इस्लाम मोमिनों को उन हालात में भी अमन स्थापित करने का हुक्म देता है जब कोई अमन की पेशकश करे. इस्लाम का संदेश बहुत स्पष्ट है इसके  बावजूद हम यह देखते हैं कि कुछ लड़ाका गिरोह आतंकवाद और फसाद मचा रहे है. ऐसे लड़ाकों के लीडर हो सकता है कि, इस तरह से इस्लामी संदेशों से अवगत हों या अनभिज्ञ हो लेकिन हमें यह बात दिमाग में रखनी चाहिए कि आज के युवा इस तरह के लीडोंर के प्रोपेगंडा का शिकार हो रहे हैं.

[divider]

    यह भी पढ़ें-    इस्लाम में महिला अधिकारों के प्रति नकारात्मक धारणा को समाप्त करने की जरूरत

[divider]

इसलिए हमें इस्लाम के अमन के संदेशों का  प्रचार करना चाहिए. इसके अलावा दूसरे देशों के भी मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों को भी सुनिश्चित बनाना चाहिए. इसलिए हो सकता है कि उनके अधिकारों के उल्लंघन से इन लड़ाका गिरोहों के  भोले मुस्लिम युवाओं की नकारात्मक मन बनाने में मदद मिले ताकि वह इस्लाम के बारे में उनकी गलत शिक्षाओं को  स्वीकार करें और इन लड़ाका गोरोहों के रास्ते पर निकल पड़ें. और इसके बाद सुधार की कोई भी कोशिश उन्हें अमन के रास्ते पर दोबारा नहीं ला सकती.

By Editor