कानपुर के जाजमऊ इलाके से तीन हजार से ज्यादा डेटोनेटरों से लदी सेंट्रो कार लावारिस हालत में मिली हैं लेकिन मीडिया ने इस मामले को दबा दिया है.

सांकेतिक फोटो
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परवेज आलम, लखनऊ से

रिहाई मंच ने इस मामले में कहा है कि इतने बड़े जखीरे का मिलना साबित करता है कि प्रदेश में संघी गिरोह काफी सक्रीय हो गए हैं जो किसी भी वक्त मालेगांव या मक्का मस्जिद या समझौता एक्सप्रेस जैसे हमले कर सकते हैं.

 

रिहाई मंच ने जारी अपने बयान में कहा है कि बरामद सेंट्रो कार का मोदी के लोकसभा क्षेत्र बनारस का होना और भेलूपुर थाने में 20-21 जून को कार मालिक संदीप चक्रवर्ती द्वारा उसके चोरी होने की रिपोर्ट का दर्ज होना भी इस संदेह को पुख्ता करता है कि कार और विस्फोटकों का कोई संघी कनेक्शन जरूर है, जिसकी जांच होनी चाहिए।

बरामद हुए तीन हजार से ज्यादा डेटोनेटरों का धौलपुर की फैक्ट्री से सप्लाई होना भी इस तथ्य को पुष्ट करता है कि इसमे सरकार की भूमिका भी संदिग्ध है क्योंकि सरकारी फैक्ट्री से बिना सरकार की संलिप्तता या उसके वैचारिक समर्थकों की संलिप्ता के ये जखीरा नहीं निकल सकता।

कर्नल पुरोहित का माडस आपरेंडी

यह पूरा प्रकरण कर्नल पुरोहित के माडस आपरेंडी से मिलता है जिसने अपने प्रभाव से सेना के इस्तेमाल के लिए आए ग्रेनेड्स, डेटोनेटर और आरडीएक्स को संघ गिरोह को मुहैया कराया था।

मीडिया की चुप्पी भी संदिग्ध

जिसका इस्तेमाल मालेगांव, मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस में हुए आतंकी हमले में संघ परिवार ने किया था। डेटोनेटरों के इतने बड़े जखीरे के मिलने के बाद भी इस खबर को अखिलेश सरकार और उनकी पुलिस द्वारा दबाने की कोशिश और मीडिया के एक बड़े हिस्से की चुप्पी इस प्रकरण के संघ परिवार से जुड़े होने की जनता में व्याप्त आशंका को और मजबूत करता है।

यह कार किसी मुस्लिम की होती तो अब तक न जाने कितने बेगुनाह मुस्लिम युवकों को आंईएस और लश्कर के नाम पर फंसा दिया गया होता और जी टीवी और दैनिक जागरण ने न जाने किन-किन आतंकी संगठनों से उनके तारों के जुड़े होने की खबरें चला दी होतीं।

 

बजरंग दल के लोग बम बनाते मारे गये थे

लेकिन इस मसले पर सभी आपराधिक चुप्पी साधे हुए हैं जैसे उन्हें अफसोस हो कि विस्फोट से पहले ही ये जखीरा कैसे पकड़ लिया गया। इस पूरे प्रकरण में संघ परिवार की भूमिका इसलिए भी जांच के दायरे में लाई जानी चाहिए कि 2008 में भी कानपुर में बम बनाते समय हुए विस्फोट में बजरंग दल के तीन नेता मर गए थे।

मायावती सरकार ने बचाया संघियों को

रिहाई मंच के प्रमुख एडवोकेट शोयेब ने कहा कि उनके पास से तब सुरक्षा एजेंसियों ने कई शहरों को पूरी तरह तबाह कर देने की क्षमता वाले विस्फोटकों का भारी जखीरा पकड़ा था। उस मामले में तत्कालीन मायावती सरकार ने संघ परिवार के इन आतंकियों को बचाते हुए पूरे मामले को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया था। जबकि विस्फोट में उड़े आंतकियों के मोबाईल से संघ के सुनील जोशी समेत कई दुर्दांत आतंकियों और कानपुर आईआईटी के एक संघी प्रोफेसर के बीच बात-चीत के रिकार्ड मिले थे।

इस घटना की जांच करने वाले जांच दल के सदस्य रहे रिहाई मंच महासचिव ने कहा कि इस पूरे मामले को न सिर्फ बसपा ने दबा दिया बल्कि उसके बाद आने वाली अखिलेश यादव सरकार ने सत्ता सम्भालने के कुछ दिनों के भीतर ही तत्परता दिखाते हुए मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा कर संघ परिवार के आंतकियों को बचाने का काम किया था। बसपा और सपा सरकारों ने संघी आंतकियों को बचाने का काम नहीं किया होता तो इनके हौसले इतने बुलंद नहीं होते कि वे फिर से कानपुर को दहलाने की हिम्मत करते।

By Editor