केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, रूड़की के मुख्य वैज्ञानिक यादवेंद्र ने कहा कि उदारीकरण का सबसे नकारात्मक प्रभाव विज्ञान के अनुसंधान पर पड़ा है। इसके फलस्वरूप विश्वविद्यालय का निजीकरण हुआ। 20150218_151845

फलतः आर्थिक संसाधन के अभाव में विज्ञान, रिसर्च कमतर होते गए।

श्री यादवेंद्र जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में आयोजित परिचर्चा ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा संसाधनों की कमी के कारण बहुत सारे छात्र बाहर गये। आज 70-80 हजार वैज्ञानिक विदेशों में काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि विज्ञान का जुड़ाव आम जनता से कम होता गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पूरे देश में महज एक बिल्ंिडग इंस्ट्टीच्यूट है। विज्ञान में जाति, लिंग और वर्ग की समस्या बनी हुई है। आज वहाँ एक भी योग्य वैज्ञानिक दलित वर्ग से नहीं आए, जो निदेशक बने। हमने समय के साथ जो चीजें खोई है एक-दूसरे को सुनने की संस्कृति खोयी है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से लेकर कई देशों में चल रहे प्रतिरोध पर प्रकाश डाला। खासतौर से ईरानी सिनेमा में प्रतिरोध पर केंद्रित फिल्मों पर अपने को फोकस किया। कहा कि वहाँ की फिल्में प्रतिरोध की जमीन तैयार कर रही है। मीडिया में भी प्रतिरोध की जगह कम होती गयी है।

दिमाग पर हुकूमत कोई नहीं कर सकता

बिहार संगीत नाट्क अकादमी के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध कवि आलोक धन्वा ने द्वितीय विश्वयुद्ध की चर्चा करते हुए कहा कि यह वैश्विक लोकतंत्र के इतिहास में प्रतिरोध की सबसे बड़ी घटना रही है। यह असाधारण बात है कि 6 करोड़ लोग इसमें शहीद हुए। इस युद्ध ने विश्व चिंतन की दिशा ही बदल दी। उन्होंने कहा कि विचार की एक खतरनाक जगह है। आदमी के दिमाग पर हुकूमत कोई व्यवस्था नहीं कर सकती।

विधान पार्षद प्रो. रामवचन राय ने कहा कि हमारे यहाँ दो स्तरों पर प्रतिरोध की संस्कृति रही है। एक सत्ता की संस्कृति और दूसरी धर्म की संस्कृति। जहाँ कहीं भी प्रतिरोध हुआ, इन्हीं दो धरातलों पर समानान्तर चलता रहा है। उन्होंने विस्तार से साहित्य में प्रतिरोध के अंतरधाराओं की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि साहित्य और कला स्वभाव से ही प्रतिरोधी हुआ करते हैं। विज्ञान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वहाँ प्रतिरोध से ज्यादा निरोध है। उसे प्रतिरोध में बदलना आज की सबसे बड़ी चुनौती है।

परिचर्चा में कामेश्वर झा, मनोज श्रीवास्तव, संतोष यादव, अरूण नारायण एवं अख्तर हुसैन ने अपने विचार व्यक्त किये।

संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने धन्यवाद ज्ञापन किया। सेमिनार में शेखर, विपेन्द्र, कुमार गौरव, फैयाज इकबाल, ममीत प्रकाश, बिनीत, राकेश तथा संस्थान के सदस्यगण उपस्थित रहे।

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