नौकरशाही डॉट इन ने बिहार के चार लोकसभा क्षेत्रों का सघन अध्ययन किया है जहां विभिन्न दलों ने एक से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किये हैं. पढें किधर जायेंगे मुसलमानmuslim

इर्शादुल हक

बाल्मिकीनगर से अररिया तक और जमुई से सासाराम तक के मुस्लिम मतदाताओं के मूड का सार यही है कि वे 2014 के लोकसभा चुनावों में टैक्टिकल वोटिंग का मन बना चुके हैं. टैक्टिकल वोटिंग से मुस्लिम मतदाताओं का आशय बिल्कुल साफ है. वह बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटों पर आंख मूंद कर वोट करने के बजाये भारतीय जनता पार्टी को हरा सकने या उसे टक्कर दे सकने वाली पार्टी की तरफ जा रहे दिखते हैं.

नौकरशाही डॉट इन की टीम ने राज्य के वैसे 4 लोकसभा क्षेत्रों का इंटेंसिव अध्ययन किया है जहां बड़ी पार्टियों के एक से अधिक मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में हैं.

एक से अधिक मुस्लिम प्रत्याशी वाले क्षेत्र हैं- मधुबनी, शिवहर, भागलपुर और किशनगंज. मधुबनी से राष्ट्रीय जनता दल के अब्दुल बारी सिद्दीकी और जद यू के गुलाम गौस मैदान में हैं. जबकि शिवहर से राजद के अनवारुल हक और जद यू की ओर से राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री शाहिद अली खान मैदान में है. जबकि भागलपुर से भाजपा के वर्तमान सांसद सैयद शहनवाज हुसैन और जद यू की ओर से अबू कैसर अपनी तकदीर आजमा रहे हैं. इसी तरह किशनगंज से कांग्रेस के वर्तमान सांसद मौलाना असरारुल हक कासमी और जद यू की ओर से कोचाधामन के निवर्तमान विधायक अख्तरुल ईमान चुनावी समर में हैं. आइए देखते हैं इन चार लोकसभा क्षेत्रों में मुसलमानों का रुझान क्या है.

मधुबनी

हमने मधुबनी से जो आंकड़े इक्ट्ठे किये हैं उसके अनुसार शुरूआती रुझान से यह बात सामने आ रही थी कि मुस्लिम मतदाता राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी की तरफ गोलबंद थे. लेकिन जद यू ने गुलाम गौस को टिकट देकर अब्दुल बारी सिद्दीकी का खेल बिगाड़ने में काफी कामयाबी हासिल की है. गुलाम गौस पसमांदा मुसलमान हैं जबकि सिद्दीकी अगड़ी जाति से आते हैं. यहां पसमांदा मुसलमानों की आबादी 85 प्रतिशत है. यहां पसमांदा और अगड़े मुसलमानों में शुरुआती विभाजन जबर्दस्त रूप में सामने आयी थी. जिससे लगता था कि वोट भी बंटेंगे.

लेकिन जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है मुसलमानों में यह एहसास मजबूत होता जा रहा है कि उनके वोट के विभाजन का लाभ भाजपा के हुकमदेव नारायण को नहीं मिलना चाहिए. इस लोकसभा क्षेत्र के जाले के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद आरजू कहते हैं- हो सकता है कि अब्दुल बारी सिद्दीकी और गुलाम गौस के बीच मुसलमान बंटें लेकिन जिस तरह से गुलाम गौस ने पसमांदा और अगड़े मुसलमानों के बीच अपनी पकड़ मजबूत की है उससे मुस्लिम वोट का विभाजन का अनुपात काफी कम रहने की संभावना है.

हालांकि मधुबनी के अशफाक मंसूरी बताते हैं कि चूंकि यह चुनाव साम्प्रदायिकता के खिलाफ मुसलमानों को गोलबंद कर रहा है और ऐसे में कोशिश हो रही है कि मुसलमान पसमांदा और अशराफिया में बंटने के बजाये एकजुट हो कर वोट करें. यह कोशिश कितनी सफल होगी यह कहना मुश्किल है.

शिवहर

शिवहर वही लोकसभा क्षेत्र है जहां जनता दल यू ने अपने घोषित प्रत्याशी साबिर अली को इसलिए पार्टी से निकाल दिया था कि उन्होंने नरेंद्र मोदी की तारीफ कर दी थी. इतना ही नहीं बाद में साबिर भाजपा में शामिल हुए और निकाले गये. जिसके बाद इस क्षेत्र ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बंटोरी थी. लेकिन यह बात कम लोग जानते हैं कि साबिर ने चुनाव न लड़ने का फैसला इसलिए किया था कि वहां जब उन्होंने निजी स्तर पर मुसलमानों में सर्वे किया था तो उन्हें भारी निराशा हाथ लगी थी. साबिर ने यह पाया था कि वहां भाजपा की सीटिंग एमपी रमा देवी के खिलाफ लोगों में गुस्सा तो है पर इस गुस्से का लाभ राष्ट्रीय जनता दल के प्रत्याशी अनवारुल हक को मिल रहा है.

जब नीतीश ने साबिर के बदले अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री शाहिद अली को प्रत्याशी बनाया तो वहां के मुसलमानों की नीतीश के प्रति और नाराजगी बढ़ गयी. शिवहर में पैथोलोजिकल लैब चलाने वाले अकील अहमद कहते हैं- मुसलमानों ने कई जगह पर शाहिद अली खान( जद यू प्रत्याशी) का भारी विरोध तक कर दिया है और मुसलमान अपने वोटों का डिविजन किसी भी कीमत पर रोकना चाहते हैं. अकील कहते हैं ऐसे में मुसलमान एकमुश्त राजद कंडिडेड अनवारुल हक के साथ गोलबंद हो रहे हैं. ध्यान रहे कि अनवारुल हक ने 2009 का चुनाव भी शिवहर से लड़ा था और डेढ़ लाख से अधिक वोट लेने में कामयाब रहे थे लेकिन वहां से भाजपा उम्मीदवार रमा देवी चुनाव जीती थीं.

किशनगंज

किशनगंज मुस्लिम बहुलता वाला एक ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां मुसलमानों की सर्वाधिक आबादी है. यह एक मात्र ऐसा क्षेत्र है जहां मुसलमान बहुसंख्यक हैं.

यहां मुसलमानों पर प्रभाव रखने वाले दो दिग्गज चेहरे आमने सामने हैं. कांग्रेस ने जहां वर्तमान सांसद असरारुल हक को दोबारा मैदान में उतारा है वहीं जद यू ने कोचा धामन के राजद से विधायक रहे अख्तरुल ईमान को मैदान में उतार दिया है. अखतरुल ईमान पिछले दो-तीन सालों में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की शाखा खोलवाने के लिए काफी सक्रिय रूप से आंदोलन करते रहे हैं. इसका व्यापक असर किशनगंज में देखने को मिल रहा है. ऐसे में युवा मतदाताओं के साथ साथ आम मतदाताओं में अख्तरुल ईमान के प्रति स्पष्ट झुकाव है. दूसरी तरफ कांग्रेस के 80 साल के बुजुर्ग नेता और वर्तमान सांसद मौलाना इसरारुल हक की राह काफी कठिन हो गयी है. मुसलमान मतदाताओं को इस बात का भी आभास है कि उनका वोट नहीं बंटे. भाजपा के विरोध की भावना मुसलमानों स्पष्ट दिख रही है.

भागलपुर

भागलपुर बिहार का एक मात्र लोकसभा क्षेत्र है जहां से भाजपा ने इस बार भी अपने एक मात्र मुस्लिम उम्मीदवार सैयद शहनवाज हुसैन पर भरोसा किया है. सैयद शहनवाज हुसैन के खिलाफ जद यू ने अबू कैसर को मैदान में उतारा है. अबू कैसर ने 2010 में इसी क्षेत्र से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था. अबू कैसर और सैयद शहनवाज हुसैन की लड़ाई में एक बात साफ देखी जा सकती है कि यहां के मुसलमान स्पष्ट रूप से अबू कैसर के साथ हो गये हैं. हालांकि अबू कैसर की राह इतनी आसान नहीं है क्योंकि सैयद शहनवाज हुसैन को भाजपा का कैडर वोट मिलने की उम्मीद है. जबकि वहां से भाजपा के शाहनवाज हुसैन के प्रति मुसलमानों में कोई उत्साह नहीं है. हां यह जरूर है कि शाहनवाज के निजी सम्पर्क से उन्हें मुसलमानों के कुछ वोट मिल जायें.

By Editor

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