औरंगाबाद के डीएम कंवल तनुज 2 करोड़ दस लाख रुपये गबन के मामले में बुरी तरह फंस चुके हैं. पहले उनके आवासों पर छापामारी और फिर सीबाई द्वारा आठ घंटों तक इंट्रोगेशन के बाद जो स्थितियां बनी हैं उससे साफ है कि तनुज सस्पेंड होंगे. पर बड़ा सवाल यह है कि क्या तनुज इस भ्रष्टाचार के एक मुहरे भर थे? ऊंचे रसूख के नेता और कुछ अधिकारियों की इसमें क्या भूमिका थी?

कंवल तनुज 2009 बैच के आईएएस अफसर हैं
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
नबीनगर बिजली परियोजना के लिए जमीन अधीग्रहण के लिए एक फेक मालिक के नाम पर रेल बिजली परियोजन कम्पनी लिमिटेड के सीईओ शिव कुमार और डीएम औरंगाबाद कंवल तनुज की मिलभगत से दो करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम की हेराफेरी का आरोप है. यह सब जानते हैं कि डीएम स्तर के अधिकारी के पास असीम शक्ति होती है. जहां भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी काफी होती है.
तनुज ढ़ाई साल से औरंगाबाद के डीएम थे. यह उनकी पहली पोस्टिंग थी. नौकरशाही के कॉरिडोर की भूलभुलौयों के जानकारों को पता है कि कई भ्रष्टाचार को अंजाम देने वाले अधिकारियों की पीठ पर कुछ सफेदपोशों का हाथ जरूर होता है. तनुज जैसे नये अधिकारी अगर भ्रष्टाचार के आरोपी हैं तो उनकी पीठ पर किन सफेदपोशों का हाथ था, इसकी छानबीन होगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है. साथ ही यह भी नहीं बताया जा सकता कि सीबीआई ने जिस तत्परता से कंवल तनुज को घेरे में लिया है, उसी तत्परता के साथ पर्दे के पीछे के लोग गिर्फ्त में आयेंगे या नहीं.
सीबीआई जैसी जांच एजेंसी की कार्यकुशलता पर कई बार सवाल उठते रहे हैं. पिछले साल अगस्त में उजागर हुए सृजन घोटाले की जांच भी सीबीआई ही कर रही है. यह घोटाला 1500 करोड़ से ज्यादा का है. इस घोटाले में मीडिया ने जितने साक्ष्यों को उजागर किया है, उससे कहीं ज्यादा साक्ष्य सीबीआई के पास होंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन अभी तक इस घोटाले का मास्टर माइंड कथित रूप से फरार है. याद रखने की बात यह है कि इस घोटाले का मुख्य आरोपी भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के बड़े नेता हैं. इस मामले के उजागर होने के बाद भाजपा ने उन्हें निलंबित कर रखा है. सृजन घोटाले का जिक्र यहां यह बताने के लिए किया जा रहा है क्योंकि सीबीआई की कार्यप्रणाली को बताया जा सके.
अब चूंकि औरंगाबाद के डीएम पर सीबीआई ने कार्रवाई शुरू कर दी है. इसलिए तनुज को अदालत में साबित करना होगा कि वह भ्रष्ट नहीं हैं. लेकिन इससे पहले सरकार को उन्हें निलंबित करना पड़ेगा. निलंबन की हालत में तनुज को अदालती चक्कर लगाना पड़ेगा. लेकिन ऐसे घोटालों के मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि घोटालों के पीछे जो अदृश्य हाथ होते हैं और जिनकी सह पर घोटाले अंजाम तक पहुंचते हैं, जब तक उन्हें खीच कर सामने ना लाया जाये तब तक घोटालों पर लगाम लगाना संभव नहीं है. बिहार समेत भारत भर में नौकरशाही के तंत्र के भ्रष्ट होने संबंधी दर्जनों रिपोर्टें आ चुकी हैं. लेकिन इस मामले में खास बात यह है कि नौकरशाही के घोटालों के पीछे कुछ अदृश्य पर रसूखदार सफेदपोशों की जमात होती है. ये अदृश्य शक्तियां अधिकारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार को अंजाम तक पहुंचाती हैं. लेकिन कम ही मामले में इन रसूखदारों तक जांच एजेंसियां पहुंच पाती हैं.

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