इतिहास में हमारे रिश्ते नेपाल से इतने बुरे कभी नहीं रहे. जिस नेपाल में हम बे रोक टोक आते जाते बचपन बिताते रहे, वहां खरीददारी करते रहे और यहां आ कर वहां के लोग घूमते-फिरते और रिश्तेदारियां निभाते रहे. उस नेपाल को हमारी सरकार ने भारत से काफी दूर कर दिया है. 

एडिटोरियल कमेंट: भारतीय नोट को नेपाल में अवैध करार दिया जाना हमारी विदेशनीति की फटेहाली का सुबूत है

इतिहास में हमारे रिश्ते नेपाल से इतने बुरे कभी नहीं रहे. जिस नेपाल में हम बे रोक टोक आते जाते बचपन बिताते रहे, वहां खरीददारी करते रहे और यहां आ कर वहां के लोग घूमते-फिरते और रिश्तेदारियां निभाते रहे. उस नेपाल को हमारी सरकार ने भारत से काफी दूर कर दिया है. 

नेपाल का मतलब कुछ खेतों की दूरियां भर तय करना. सुबह नेपाल में तो शाम को भारत में आ जाना. यह सब ठीक ऐसा ही रहा है जैसे अपनी मासी के घर जाना. हजारों नहीं, लाखों लोगों के बेटे, बेटियां अब भी वहां व्याही जाती हैं. कानूनन एक सरहद को पार करना भले ही कह लें, पर एमोशनली हमारे लिए नेपाल अपने फूफा. मामा, मौसा के घर के अलावा कुछ नहीं रहा.
 

पर अब ?

हमारी सरकार ने सब कुछ बिगाड़ लिया है. पिछले चार पांच वरषों में नेपाल के लोग हमारे दुश्मन की तरह होते जा रहे हैं. कोई साल भर पहले तो नेपालियों ने, भारतीयों की नाकाबंदी तक कर दी थी.
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और अब ताजा हाल यह है कि नेपाल ने हमारे- दो हजार, पांच सौ और दो सौ के नोट को अवैध करार दे दिया है. उसका तर्क है कि नोटबंदी के दौरान नेपाली राष्ट्रीय बैंक के आठ करोड़ रुपये की इंडियन क्रंसी को मोदी सरकार ने वापस लेने से इनकार कर दिया था. इस संबंध में बीबीसी की रिपोर्ट हमारी आंखें खोलने वाली हैं इस रिपोर्ट में भारतीय रुपये को अवैध करार देने के नेपाल के फैसले का उल्लेख है.
नेपाल सरकार ने अनेक बार भारत के समक्ष यह मुद्दा उठाया कि उसके यहां पड़े आठ करोड़ रुपये के पुराने भारतीय नोट को भारत वापस ले.पर भारत सरकार ने इस पर कभी सकारात्मक कदम नहीं  उठाया. इस बात को प्रधान मंत्री मोदी के सामने भी नेपाली प्रधान मंत्री ने उठाया पर कोई सुनवाई नहीं हुई.
 
राजनीतिक नेतृत्व जब इतनी दिशाहीन हो जाये, इतना अपरिपक्व हो जाये तो यही दिन देखने को मिलता है.
 
हमारी विदेश नीति इतनी नासमझ और अदूरदर्शी है कि उसे यह भी समझ नहीं आता कि अगर हमारे रिश्ते नेपाल से कड़वे होंगे तो चीन हमारी जगह ले लेता चला जाायेग.
 
जरा सोचिये, हमारे रिश्ते पिछले कुछ सालों में किस पड़ोसी देश से बेहतर हुए हैं. पाकिस्तान को छोड़िये, उससे तो पटरी ही नहीं खाती. बांग्लादेश, मॉरिशस, श्रीलंका से भी हमने अपने रिश्ते को इस दौर में बहुत मधुर नहीं बना सके हैं.

By Editor