बिहार भाजपा से जुड़े तीन बड़े यादव नेता यादव वोटरों को भाजपा से जोड़ने का अभियान चला रहे हैं, लेकिन उन्‍हें सफलता नहीं मिली है। यादव वोटर भाजपा के यादव उम्‍मीदवारों को वोट दे देता है, लेकिन भाजपा को वोट देने से परहेज करता है। इसकी बड़ी वजह भाजपा का यादव विरोधी मलू चरित्र है, जो राजनीतिक रूप से यादवों को भाजपा से जुड़ने नहीं देता है।

 वीरेंद्र यादव

भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष नित्‍यानंद राय, बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव और वरिष्‍ठ नेता नंद किशोर यादव की लगातार कोशिश रही है कि यादव जाति में भाजपा की जड़ जमे। भाजपा प्रायोजित धार्मिक आयोजनों में यादवों का व्‍यापक सपोर्ट मिलता है, लेकिन वही सपोर्ट बूथ पर कायम नहीं रह पाता है। इसकी एक वजह है कि भाजपा के यादव नेता यादव हित की बात कभी नहीं करते हैं, यादव के सरोकारों पर बोलने को तैयार नहीं होते हैं।

भाजपा के स्‍थापना काल से अब तब भाजपा ने किसी यादव को विधान परिषद भेजने की कोशिश नहीं की है। पिछले 38 सालों में भाजपा ने बड़ी संख्‍या में सवर्ण नेताओं को विधान परिषद में भेजा है, लेकिन एक भी यादव को नहीं भेजा है। अप्रैल में बिहार विधान परिषद की 11 सीटों के लिए चुनाव होना है। इसमें भाजपा के तीन सदस्‍य परिषद में जा सकते हैं। तीन में से दो उपमुख्‍यमंत्री सुशील मोदी और स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री मंगल पांडेय का वापसी तय है। तीसरी सीट पर भाजपा किसी भूमिहार को भेजने की तैयारी में है।

भाजपा के यादव नेता भी यादव के बजाय भूमिहार-ब्राह्मणों के हितों का ही पृष्‍ठपोषण करते हैं। बिहार भाजपा से जुड़े तीनों नेता नित्‍यांनद राय, नंदकिशोर यादव व भूपेंद्र यादव अब तक किसी यादव को सत्‍ता का लाभ दिलाने में नाकाम रहे हैं। इसका खामियाजा भी पार्टी में इन्‍हीं नेताओं को भुगतना पड़ सकता है।

By Editor