उच्चतम न्यायालय ने आज व्यवस्था दी कि एक खास समुदाय के वायुसैनिक को ढाढ़ी रखने की अनुमति नहीं देना उसके धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का हनन कतई नहीं है। मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की वाली पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि वायुसेना के नियम धार्मिकता में हस्तक्षेप के लिए नहीं, बल्कि सेना में समानता का भाव और अनुशासन के लिए बने हैं।thakur

 

न्यायालय ने कहा कि वायुसेना में कार्यरत एक खास समुदाय के जवान को ढाढ़ी रखने की अनुमति नहीं देने को उसके धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के हनन से नहीं जोड़ा जा सकता। शीर्ष अदालत का यह फैसला वायुसेना से निकाले गए अंसारी आफताब अहमद की याचिका पर आया है। आफताब ने वायुसेना में रहते हुए लंबी दाढ़ी रखी थी, जिससे 2008 में उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया था। इसके बाद आफताब ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जहां से उन्हें निराशा हाथ लगी है। आफताब ने अदालत में यह दलील दी थी कि भारतीय संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है।

 

उन्होंने यह भी हवाला देते हुए कहा कि जब सिखों को सेना में दाढ़ी रखने और पगड़ी पहनने की अनुमति है तो मुसलमान लंबी दाढ़ी क्यों नहीं रख सकते हैं? आफताब की याचिका के जवाब में वायुसेना ने अदालत में कहा कि सभी मुसलमान दाढ़ी नहीं रखते हैं, दाढ़ी रखना या न रखना उनके लिए एक विकल्प है। ऐसे में दाढ़ी के लिए इस्लाम की दुहाई नहीं दी सकती। आफताब की तरह 2008 में एक और वायु सैनिक और महाराष्ट्र पुलिस के एक सिपाही को नौकरी से निकाल दिया गया था।

By Editor