कभी जातीय आधार पर टिकट बंटवारे से इनकार करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिलवक्त अपने ही स्थापित मूल्यों से डिगते नजर आ रहे हैं. अब यह कहा जाने लगा है कि नीतीश कुमार की राजनीति ही नहीं, बल्कि अफसरशाही भी जातीय चक्रव्यूह में फंस गई है.

सरकार और प्रशासन में जातीय समीकरण के आधार पर मनोनयन और पदस्थापन से तो ऐसा ही संकेत मिल रहा है. हाल ही में बिहार विधान सभा में उपाध्यक्ष और विधान परिषद में सभापति के पद पर क्रमश: अमरेन्द्र प्रताप सिंह और अवधेश नारायण सिंह के मनोनयन(चुनाव)को जातीय समीकरण के आधार पर ही देखा जा रहा है. वोट बैंक समीकरण के लिहाज से राजपूतों को तुष्ट करने की कार्रवाई भी इसे करार दिया जा रहा है.

इसी सप्ताह बिहार की नौकरशाही में हुए बड़े बदलाव की खूब चर्चा हो रही है. एक कयास यह भी लगाया जा रहा है कि चीफ सेक्रेटरी के पद पर ए के सिन्हा की नियुक्ति से भूमिहारों को यह संदेश दिया गया है कि सरकार उन्हें तवज्जो दे रही है. दूसरी ओर यह आशंका भी है कि अब डीजीपी अभयानंद की विदाई तय है. सरकार इसके लिए लचर होती विधि-व्यवस्था को बहाना बना सकती है. पर्दे के पीछे की हकीकत यह है कि मुख्य सचिव और डीजीपी दोनों की एक ही जाति (भूमिहार) है. और एक साथ इन दोनों महत्वपूर्ण पदों पर एक जाति की तैनाती का चलन आमतौर पर नहीं रहा है.

यह भी संभव है कि अभयानंद को अभी डीजीपी के पद पर कायम रखा जाए. इस दौरान ठोस विकल्प की तलाश भी जारी रहे.दूसरा तर्क यह भी है कि जातीय लोकप्रियता का अगर आकलन किया जाए तो ए के सिन्हा की तुलना में अभयानंद ज्यादा लोकप्रिय हैं. शायद ए के सिन्हा की कीमत पर अभयानंद की विदाई को भूमिहार समाज पसंद नहीं करे.

जानकारों की मानें तो ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के बाद से यह समाज या इसका कुछ हिस्सा सरकार से थोड़ा नाराज चल रहा है. ऐसे में अभयानंद की जल्द ही छुट्टी हो जाएगी, इससे अनेक लोगों की सहमति नहीं बन रही है.

हाल की कई आपराधिक घटनाओं को लेकर सरकार की किरकिरी हुई है. पिछले सप्ताह ही मुख्यमंत्री ने सूबे के तमाम पुलिस अधिकारियों को इस बाबत हड़काया और परिणामजनित कार्रवाई करने का निर्देश दिया.

इन सबके बीच हैरत में डालने वाला तबादला वित्त विभाग के सचिव मिहिर कुमार सिंह का है. मिहिर को तिरहुत प्रमंडल भेजा गया है. यह भी बताया जा रहा है कि मिहिर उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के विश्वासपात्र हैं. सवाल भी उठ रहा है, तबादले से पहले उपमुख्यमंत्री की राय ली गई या नहीं.

ठीक इसके बाद सचिवालय स्तर पर हुए तबादले में नीतीश कुमार ने बहुत कुछ साधा है. राजपूतों को करीब लाने की कोशिश यहां भी दिखी. वरिष्ठ नौकरशाह अंजनी कुमार सिंह को सीएम ने अपने सेक्रेटेरिएट में बुला लिया है. इस निर्णय के पीछे भी नीतीश कुमार की सोची-समझी चाल बताई जा रही हैं.अंजनी कुमार सिंह की छवि ईमानदार व बेबाक काम करने वाले अफसरों में है. इनके जरिए नीतीश कुमार ऐसे अफसरों की नकेल कसना चाहते हैं जिनकी आस्थाएं संदिग्ध हैं. चंचल कुमार और एस सिद्धार्थ को क्रमश: भवन निर्माण व नगर विकास जैसे उन महकमों की जिम्मेवारी दी गई है,जहां सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाएं कार्यान्वित हो रही हैं. चर्चा यह भी है कि इन दोनों की तैनाती के बाद विभागीय मंत्रियों के रुतबे पर असर पड़ा है.

मगर इन सबके बीच हैरत में डालने वाला तबादला वित्त विभाग के सचिव मिहिर कुमार सिंह का है. मिहिर को तिरहुत प्रमंडल भेजा गया है. यह भी बताया जा रहा है कि मिहिर उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के विश्वासपात्र हैं. सवाल भी उठ रहा है, तबादले से पहले उपमुख्यमंत्री की राय ली गई या नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि उपमुख्यमंत्री की गैरजानकारी में ही मिहिर को मुख्यालय से रुखसत कर दिया गया. इस व्यापक फेरबदल में अफजल अमानुल्लाह को उद्योग विभाग के रूप में अतिरिक्त जिम्मेवारी मिली,सरकार के विशेष कृपापात्र अफजल दो विभाग पहले से ही संभाल रहे हैं. विकास आयुक्त के पद पर फूल सिंह की तैनाती भी सामाजिक समीकरण को फिट करने के ख्याल से ही किया गया माना जा रहा है।

राकेश प्रवीर पिछले दो दशक से बिहार की पत्रकारिता के जरिए राजनीति के हर रंग को देखने समझने वाले पत्रकारों में शुमार हैं. लम्बे समय तक दैनिक आज में रहकर अपनी योग्यता का लोह मनवाया. पटना में दैनिक हिन्दुस्तान में सेवायें दी. फिलवक्त लखनऊ में डीएनए अखबार के राजनीतिक सम्पादक की हैसियत से काम कर रहे हैं.

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