मगध की धरती पर एक प्रमुख लोकसभा क्षेत्र हैं औरंगाबाद। 1952 से अब तब राजपूत जाति के लोग ही जीतते रहे हैं। हालांकि परिसीमन के बाद दूसरी जातियों को आजमाने का प्रयास भी शुरू हुआ है। 2019 लोकसभा के लिए बनी नवीनतम मतदाता सूची के अनुसार, वोटरों की संख्या 17 लाख 37 हजार 821 है। औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले विधान सभा क्षेत्र कुटुंबा में वोटरों की संख्या 2 लाख 53 हजार 976, औरंगाबाद में 3 लाख 6 हजार 149, रफीगंज में 3 लाख 16 हजार 810, गुरुआ में 2 लाख 74 हजार 127, इमामगंज में 2 लाख 85 हजार 73 और टिकारी विधान सभा क्षेत्र में वोटरों की संख्या 3 लाख 1 हजार 686 है।

वीरेंद्र यादव के साथ लोकसभा का जनक्षेत्र-2 


वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव की पुस्तक ‘राजनीति की जाति’ के प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, औरंगबाद संसदीय क्षेत्र में राजपूत वोटरों की संख्या 11­.61 प्रतिशत, यादव वोटरों की संख्या 15.41 प्रतिशत, मुसलमान वोटरों की संख्या 10.77 प्रतिशत, कोईरी वोटरों की संख्या 6.32 प्रतिशत, भूमिहार वोटरों की संख्या 3.66 प्रतिशत, ब्राह्मण वोटरों की संख्या 2.28, रविदास वोटरों की संख्या 6.62 और पासवान वोटरों की संख्या 8.63 प्रतिशत है। वीरेंद्र यादव की पुस्तक में प्रमुख जातियों की लोकसभावार वोटरों की संख्या प्रकाशित है। इस पुस्तक को 3500 रुपये भुगतान कर लेखक से खरीदा जा सकता है।


औरंगाबाद की राजनीति दो परिवारों की राजनीति बनबर रह गयी है। 1989 तक औरंगाबाद लोकसभा सीट पर एकाध चुनाव छोड़कर लगातार सत्येंद्र नारायण सिंह निर्वाचित होते रहे थे। छोटे साहब (सत्येंद्र सिंह) पहली बार 1989 में मुख्यमंत्री बने और उसी साल लोकसभा का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में औरंगाबाद से छोटे साहब ने अपनी पुत्र वधू श्यामा सिन्हा को चुनाव लड़ाया था। उन्हें जनता दल के उम्मीदवार रामनरेश सिंह (लूटन सिंह) ने पराजित कर दिया था। इसके बाद से यह सीट इन्हीं दो परिवारों के बीच चल रही है। लूटन सिंह के बाद उनके पुत्र सुशील सिंह फिलहाल सांसद हैं।
माना जा रहा है कि सुशील सिंह को फिर भाजपा से टिकट मिलेगा। लेकिन महागठबंधन के लिए अभी सीट तय नहीं हुई है। इसलिए अभी कोई परिदृश्य उभर कर सामने नहीं आ रहा है। इसके एकाध दिन इंतजार करना होगा।

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