कोख के अंधेरे से लेकर कब्र के अंधेरे तक लगातार और अथक संघर्ष मगर संघर्ष का इतिहास ये कहता है कि दुनिया की तमाम चिंतनशील औरतों ने कलम से, कर्म से और खामोश आँसुओं से भी फसाने लिखे हैं. ऋग्वेद दुनिया की पहली किताब है जिसमें २७ औरतों ने भी मुक्तमन से अपना चिंतन पेश किया था.

आभा दूबे

सूर्या,सावित्री ,लोपामुद्रा,घोषा,काक्षावती,इंद्राणी जैसी कितनी ही चिंतनशील औरतें उस काल में हुई थीं. गार्गी,अनुसूया,सुलभा,मदालसा,इन्होंने तो मार्गदर्शन भी किया था.

समय बदला. यूनान में सैफो नाम की एक शायरा हुईं जिन्हें नज़्म लिखने के जुर्म में जिलावतन होना पड़ा.

 

जापान में पहला नॉवेल लिखनेवाली एक महिला थीं पर समाज ने खुद की रचना पर उनका नाम छापने की इजाज़त नहीं दी. कश्मीर की लल्लेश्वरी और हब्बा ख़ातून को शायरी करने की सज़ा में घर छोड़कर जंगलों में भटकना पड़ा.

“क़ानून और अख्तियार उन हाथो में है….जो फूल, इल्म,और आज़ादी के खिलाफ फ़ैसले सुनाते हैं.औरत तुम घर की मलिका हो,बच्चे की माँ हो,तुम सिर झुकाए, खिदमत करती, कितनी अच्छी लगती हो.तुम कितनी पुरविकार और महफूज हो.बुलंद मुकाम और जन्नत की हकदार हो, इसीलिए तुम्हें समझाते हैं…ठीक से रहो.

 

 

पाकिस्तान की शायरा सैदा गजदार ने लिखा है- “क़ानून और अख्तियार उन हाथो में है….जो फूल, इल्म,और आज़ादी के खिलाफ फ़ैसले सुनाते हैं.औरत तुम घर की मलिका हो,बच्चे की माँ हो,तुम सिर झुकाए, खिदमत करती, कितनी अच्छी लगती हो.तुम कितनी पुरविकार और महफूज हो.बुलंद मुकाम और जन्नत की हकदार हो, इसीलिए तुम्हें समझाते हैं…ठीक से रहो.”


अमृता प्रीतम ने कहा -‘औरत जब अपनी पहचान, अपने माध्यम से न पा सकी तो मर्द के माध्यम से पाने लगी और यहीं से मानसिक गुलामी की शुरुआत हुई.

 

औरत से औरत का रिश्ता रकाबत का रिश्ता बना और उसकी ताक़त ईर्ष्या,जलन और हसद जैसी खामियों में जाया होने लगी.’


कहना चाहती हूँ….प्रतिकर्म से, बदले की भावना से, किसी मकसद को नहीं पाया जा सकता.जो कुछ पाना है,हमें अपने आत्मबल से पाना है्.बेशक इसे तोड़ने की कोशिशें होंगी लेकिन इन सबसे लड़कर हमें उस चेतना को बुनना है जिससे हम सिर्फ़ ऐतिहासिक हवाला बन कर ना रहें बल्कि आनेवाले समय की हक़ीकत बनें.

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2019/01/abha.dube_.jpg” ] आभा दूबे की साहित्यिक अभिरुचि ने शुरू से ही अभिव्यक्ति का माध्यम लेखन को चुना . लिहाजा पढ़ना, लिखना और सीखना यही चीजें हमेशा उन्हें कुछ बेहतर करने की ओर उकसाती रहीं. पत्र-पत्रिकाओं बदस्तूर छपती हैं. एक कविता संग्रह ‘ हथेलियों पर हस्ताक्षर ‘ आ चुका है.बिहार से वास्ता है. फिलवक्त भिलाई में रहती हैं.[/author]

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