छोटे पर्दे की मशहूर अदाकारा और धारावाहिक ‘ये है मोहब्‍बतें’ फेम इशी मां यानी इशिता भल्‍ला मतलब दिव्‍यांका त्रिपाठी को कौन नहीं पहचानता। छोटे शहर भोपाल से निकल कर सिनेनगरी की गलियों में पहुंचने तक को दिव्‍यांका अपनी कठिन मेहनत को श्रेय देती हैं। हालांकि दिव्‍यांका के करियर में ‘ये है मोहब्‍बतें’ से पहले ‘बनूं मैं तेरी दुल्‍हन’ और ‘चिंटू और चिंकी’ के किरदार को भी खूब सराहा गया। मगर इन दिनों इशी मां का किरदार बच्‍चों से लेकर छोटे पर्दे के दर्शकों खूब लुभा रहा है। टीवी के कई अवार्ड से नवाजी जा चुकी दिव्‍यांका सोमवार को पटना में दशहरे के मौके पर एक डांडिया कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंची थीं। इस दौरान हमने उनसे उनके करियर और ऑफ स्‍क्रीन लाइफ पर चर्चा की। kalakar

 

छोटे पर्दे की अभिनेत्री दिव्‍यांका त्रिपाठी के साथ अतुल रंजन की बातचीत

 

कठिन परिश्रम है सक्‍सेस की कुंजी 

दिव्‍यांका त्रिपाठी सक्‍सेस से ज्‍यादा अपने परिश्रम को महत्‍व देती हैं। बकौल दिव्‍यांका सक्‍सेस कभी अचीव नहीं किया जा सकता और किसी के लाइफ में हाइयेस्‍ट प्‍लेटफार्म कभी नहीं आता है। फिल्‍म इंडस्‍ट्री में सबकुछ डिपेंड करता है आपकी मेहनती और आपके रेकॉग्‍नेशन पर। क्‍योंकि बहुत से लोग मेहनत करते हैं, लेकिन सब्र भी आपको यहां आगे बढ़ने में मायने रखता है। साथ ही डटे रहना पड़ता है।

 

लड़की बिगड़ जाएगी 

जब मैं इस इंडस्‍ट्री में आई, तब मुझे कोई सपोर्ट नहीं था। फैमली में करीबी रिश्‍तेदारों ने कहा कि बेटी बिगड़ जाएगी, क्‍योंकि मेरे शहर (भोपाल) से कोई भी लड़की इंडस्‍ट्री में जाती नहीं थी। लोग फिल्‍मों को अच्‍छी नजर से नहीं देखते थे। ऐसे में मेरे मम्‍मी – पापा का सपोर्ट ही मेरे लिए सबसे बड़ा मोटिवेटिंग फैक्‍टर था। आज सोच को बदलते हुए नए शहर में जाना, अपनी सोच को बदलना, अपनी संस्‍कृति को बरकरार रखते हुए उनकी शहर (फिल्‍म इंडस्‍ट्री) में घुलमिल जाना मेरे लिए बहुत बड़ा चाइलेंज था। लेकिन मैंने किया, और उन लोगों को मुंह तोड़ जवाब दिया, जिन्‍होंने मेरे इंडस्‍ट्री में आने पर सवाल खड़े किए थे। kalkar 2

 

आर्मी में जाना चाहती थी 

मैं पहले आर्मी में आना चाहती थी। लेकिन किस्‍मत मुझे यहां ले आई। शुरूआती दिनों में मैं भोपाल में दूरदर्शन में जाती थी। फिर मेरा सलेक्‍शन टीवी के लिए हुआ और मैं आ गई। सोचा था छह महीने बाद फिर से आर्मी जाने की,  मगर ये इंडस्‍ट्री ऐसी है कि एक बार आ गए तो जाने नहीं देती।

 

इशिता को दिव्‍यांका बना दिया  

इशिता भल्‍ला और दिव्‍यांका त्रिपाठी में काफी समानता है। यहां एक समय था, जब दोनों काफी अलग थीं। इशिता काफी गंभीर सी लड़की थी और निगेटिव भी हो चुकी थी। वहीं दिव्‍यांका त्रिपाठी बहुत ही बबली, चौपी और खुले मिजात की हूं। लेकिन धीरे – धीरे मैंने इशिता को दिव्‍यांका बना दिया है।

 

लॉग रनिंग शो में एक्‍सपेरिमेंट जरूरी 

ये है मोहब्‍बतें में हॉरर होती कहानी बस एक एक्‍सपेंरिेमेंट है। जब आप कोई लांग रनिंग शो करते है तो थोड़ा सा एक्‍सपेरिमेंटेशन भी बहुत महत्‍वपूर्ण होता है। बिना प्रयोग के कहानी ठहर सी जाती है और हमें रूका हुआ पानी नहीं बनना है। इसलिए हम चाह रहे थे कि थोड़ा प्रयोग कर देखें कि ऑडियांश को रिव्‍यूज क्‍या हैं। लेकिन अभी तक जो फीडबैक मिले हैं, वे पॉजिटिव हैं। हंसते हुए – हालांकि हॉरर ट्विस्‍ट से बच्‍चे ही नहीं, बड़े भी डर रहे हैं। दर्शको के रेस्‍पांस पर देखते हैं क्‍या होगा।

 

एक बहुत है जान लेने के लिए 

अगर फिल्‍म में किरदार दमदार हो तो जरूर फिल्‍मों में भी आना चाहूंगी। कहानी अच्‍छी होनी चाहिए। वैसे एक बार में एक बहुत होता है जान लेने के लिए। टीवी पर सातों दिन धारावाहिक आती है तो एक सिरियल के बाद टाइम ही नहीं मिलता है।

 

सिंड्रेला स्‍टोरीज किस्‍मत से मिलती है

यूथ खास कर लड़कियों से मैं कहना चाहूंगी कि अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करें। ये ना सोचें कि शादी हो गई, तो जिंदगी भी अच्‍छी हो जाएगी। सिंड्रेला स्‍टोरीज होती हैं, लेकिन वो किस्‍मत से मिलती हैं। हम अपना करियर अच्‍छी पढ़ाई और मेहनत कर खुद बनानी पड़ती है। इसलिए अपने आप को स्‍ट्रांग बनाइए। किसी चार्मिंग प्रिंस का इंतजार नहीं करना चाहिए, क्‍योंकि हम अपनी जिंदगी के लिए खुद जिम्‍मेदार हैं, सो वी सूड नॉट वेट फॉर सिंड्रेला लाइक स्‍टोरीज।

 

पटना का प्‍यार और सपोर्ट मिला 

मैंने पटना के कई कलाकारों के साथ काम किया। एक इच्‍छा थी कि पटना आउं। आज जब पहली बार पटना आने के मौका मिला और लोगों से मिलने का मौका मिला, तो काफी अच्‍छा लगा रहा है। वैसे मैं घूमना पंसद करती हूं और नए – नए शहरों को जाना मुझे पसंद है।

 

 

By Editor