– सीबीआइ की एफआइआर कहती है कि सोर्स की मौखिक सूचना पर एफआइआर की जा रही है, बड़ा सवाल कि आखिर किसने मुहैया करायी सूचना?
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सीबीआई द्वारा दर्ज एफआइआर

पटना।… आखिर किसकी सूचना पर सीबीआई ने पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव सहित अन्य पर होटल को लीज पर देने के बदले करोड़ों की जमीन के मामले में एफआइआर दर्ज करायी है? छापेमारी के बाद सबसे बड़ा सवाल तो यही है जो सत्ता के गलियारे से लेकर हर आम और खास के जेहन में उठ रहा है. नयी दिल्लीे के सीबीआइ, इओयू चार, इओ दो थाने में पांच जुलाई को एफआइआर दर्ज किया गया है जो यह बता रहा है कि सूचना सूत्रों से मिली है और कंप्लेनेन्ट यानी सूचना देने वाले भी सूत्र ही हैं. सीबीआइ को इस कथित भ्रष्टाचार की सूचना देने वाले द्वारा कोई लिखित शिकायत नहीं दर्ज करायी गयी है, शिकायतकर्ता की मौखिक सूचना पर ही पूरी एफआइआर दर्ज की गयी है. सीबीआइ के इओ टू के एसपी ने कंप्लेनेन्ट को एफआइआर पढ़कर सुनाई और उन्हें एक काॅपी भी दी है. लेकिन इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं हो इस कारण एफआइआर में ना तो कंप्लेनेन्ट का ना कोई हस्ताक्षर है ना ही अंगूठे का निशान. इससे यह सवाल उठ रहा है कि वो शख्स था कौन जिसने सीबीआइ को इतनी महत्वपूर्ण जानकारी तथ्यों के साथ मुहैया करायी है?
—घटना 2004-16 के बीच घटी लेकिन सूचना कर्ता ने शिकायत करने में नहीं की देर?—-
पूरी एफआइआर में एक और दिलचस्प तथ्य है. एफआइआर संख्या आरसी 220/2017 इ 0013 कहती है कि भ्रष्टाचार का यह अपराध 2004 से 2016 के दौरान घटित हुआ है. एफआइआर जुलाई 2017 में की गयी है लेकिन इसमें सूचना कर्ता द्वारा सूचना देने में कोई देर नहीं की गयी है. सीबीआइ के एसपी ने इस सेक्शन में नो डिले मार्क किया है. पुलिस अधिकारी संजय दुबे जो सीबीआइ के डीएसपी हैं वे इस पूरे मामले के जांच अधिकारी बनाये गये हैं.

(रविशंकर उपाध्याय के फेसबुक वॉल से)

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