लोकसभा चुनाव अपने आखिरी मरहले की तरफ है,  चुनाव रुझानों से मिले फिडबैक के बाद कुम्हलाई-मुरझाई कांग्रेस में अचानक जोश का संचार हो गया है आखिर यह जोश क्यों आ रहा है कांग्रेस में ? प्रदीप श्रीवास्तव का यह विश्लेषण उन गुत्थियों से पर्दा उठा रहा है. priyanka

 

शुरुआत में अपनी हार को तय माने हाथ पर हाथ धरे बैठे कांग्रेसी खेमे में अब उत्साह की नई लहर दौड़ रही है। सात चरणों के मतदान के बाद जो फीड बैक उन्हें मिल रहा है और भाजपा नेताओं खासकर उनके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के बयानों में जिस तरह बदलाव नजर आ रहा है, उससे कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है। महीने भर पहले जो कांग्रेसी नेता उदासीन लहजे में चुनाव को लेकर बात कर रहे थे, अब उनके चेहरे पर एकबारगी चमक दौड़ गई है। इस उत्साह की वजह यह नहीं है कि कांग्रेस को अपनी सीटों को लेकर काफी भरोसा हो गया है। उनके चेहरे पर ज्यादा चमक इस भरोसे पर बनी है कि मोदी को लेकर जो हवा बनाई गई थी, उसका असर अब शायद कमजोर पड़ने लगा है। हालांकि इसकी वजह को लेकर उनके विचार अलग-अलग हैं।

कांग्रेस के कुछ नेता हालात में हुए इस बदलाव का श्रेय सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को दे रहे हैं। पार्टी प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता यह मानते हैं कि तीसरे चरण के मतदान के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की जो अपील कुछ टीवी चैनलों से प्रसारित हुई, उसका कांग्रेस के हक में असर पड़ा है। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य भी जताया कि इस अपील को तीसरे चरण के चुनाव के बाद क्यों जारी किया गया। उनके मुताबिक दिल्ली में हुए मतदान के पहले सोनिया गांधी की अपील प्रसारित होती तो वहां कांग्रेस की हालत इतनी बुरी नहीं होती। कांग्रेस के एक अन्य नेता का यह भी मानना है कि चुनाव अभियान में इधर कुछ दिनों से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ अन्य नेताओं ने भी आक्रामक रूख दिखाया है। इस आक्रामक रूख से भाजपा रक्षात्मक हुई है।

बचाव की मुद्रा में भाजपा

एक अन्य नेता का कहना है कि प्रियंका गांधी केवल रायबरेली और अमेठी में हैं। पर वहां की सभाओं में उनके भाषणों ने देशभर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया है और भाजपा पहली बार बचाव की मुद्रा में दिखाई दे रही है। कांग्रेस कार्यकर्ता यह चाह रहे थे कि उनके नेता मोदी, भाजपा की नीतियों, उनके बयानों और उनकी रणनीति पर हमला बोलें। खासकर प्रियंका को बनारस, लखनऊ और आंध्र जैसी कुछ जगहों पर भेजा जाए। कांग्रेसियों का मानना है कि प्रियंका के दो जुमलों ने भाजपा में तूफान खड़ा कर दिया है। यहां तक कि नरेंद्र मोदी जो अपने को अब काफी शालीन, धर्मनिरपेक्ष और संविधान में निष्ठा रखने वाले एक गंभीर नेता के रूप में सामने लाने की कोशिश में जुटे थे, वे प्रियंका के जुमलों और राहुल व सोनिया के हमलों के बाद अपने पुराने चोले में आ गए हैं। एक बार फिर वे ‘खदेड़ने’ व ‘निपटने’ जैसे शब्दों का प्रयोग करने लगे हैं।

प्रियंका ने रायबरेली और अमेठी में जो कुछ कहा, उसमें नरेंद्र मोदी के लिए कही गई बातों ने दोनों तरफ काफी असर डाला। प्रियंका ने कहा 56 इंच का सीना नहीं, देश चलाने के लिए दरियादिल होना जरूरी है। मोदी को ही लेकर यह भी कहा कि जो लोग बंद कमरे में महिलाओं की बात सुनते हैं, वे महिलाओं की सुरक्षा की बात करते हैं। गौरतलब यह है कि प्रियंका या कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने नरेंद्र मोदी सेअलग रह रही उनकी पत्नी जशोदा बेन को लेकर उनके व्यक्तिगत जीवन पर हमला नहीं बोला। कांग्रेस की तरफ से यह जरूर सवाल उठाया गया कि अगर पत्नी थी तो इसके पहले गुजरात विधानसभा का पर्चा दाखिल करते समय मोदी ने उनका उल्लेख क्यों नहीं किया।

सहानुभूति

प्रियंका के हमलों के जवाब में भाजपा ने उन्हें चुप कराने के लिए उनके पति और सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा को निशाना बनाया है। भाजपा ने वाड्रा से जुड़ी सीडी भी जारी की है जिसमें हरियाणा में उनकी जमीनों की खरीद फरोख्त को लेकर उन पर पहले से लगाए आरोपों को दोहराया गया है। पर इस सीडी को लेकर कांग्रेस का कोई नेता वाड्रा के बचाव में सामने नहीं आया। केवल पार्टी प्रवक्ता ने एक लाइन का बयान जिया। कांग्रेस के एक नेता के मुताबिक प्रियंका को लेकर भाजपा फंस गई है। वह यह आकलन नहीं कर पा रही है प्रियंका गांधी पर हमला कर उसे फायदा हो रहा है या नुकसान? खतरा इस बात का भी है कि इन हमलों से प्रियंका के साथ लोगों की खासकर ग्रामीण इलाकों में सहानुभूति भी उभर सकती है।

वैसे केवल भाषण और बयानबाजी से ही नहीं बल्कि अभी तक हुए मतदान के फीड बैक से भी कांग्रेसियों का चेहरा खिला है। चुनाव शुरू होने के पहले सर्वे रपटों और विभिन्न आकलनों में जिस तरह भाजपा को सीटें दी गई थी उससे कांग्रेसी चुनाव शुरू होने से पहले ही हतोत्साहित थे। पर जो रपटें उन्हें मिल रही है, उससे उनको यह लग रहा है कि मोदी के पक्ष में यदि वोट झुके है तो मोदी की वजह से भाजपा के खिलाफ वोटों का ध्रुवीकरण भी बढ़ा है। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में अभी तक हुए मतदान को लेकर जो खबरें आ रही हैं, उसने मोदी और उनके रणनीतिकारों की गणित गड़बड़ाती लग रही है। पहले से तीसरे चरण में मोदी के खिलाफ वोटों के बीच जो बंटवारा दिखाई दे रहा था, वह तीसरे चरण के बाद उलट गया है। जातीय आधार पर जमकर पोलिंग हुई है। अल्पसंख्यकों के ज्यादातर वोट भाजपा द्वारा दिखाई गई तमाम उदारता के बावजूद एकजुट होकर उनके खिलाफ मजबूत पार्टी को जा रहे हैं। बिहार में राजद-कांग्रेस गठबंधन की मजबूती की अब बात होने लगी है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगे की नारजगी के बावजूद छठे चरण में सपा के पक्ष में मुसलमान वोट एक साथ दिखाई दिए। पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशों के क्षेत्रीय दलों के नेताओं और नरेंद्र मोदी के बीच हाल में जो जबानी जंग तेज हुई है, वह भी कांग्रेस को ठंडक पहुंचा रही है।

 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के मुताबिक मोदी के बयान अब खुद मोदी के खिलाफ जाने लगे हैं। अगड़ी जातियों का बुद्धिजीवी वर्ग जो यूपीए-2 के शासनकाल के खिलाफ था और जिसे शुरू में मोदी को लेकर एक उम्मीद दिखाई दे रही थी, वह पिछले दो महीने में मीडिया और चुनावी रैलियों में मोदी के बदलते बयानों से चौकन्ना हो गया है। मोदी समर्थक कुछ मतदाता भी यह मान रहे हैं कि मोदी के कुछ बयान उलटे पड़ रहे हैं। मसलन बनारस में उन्होंने एक ही भाषण में हिंदुओं, बौद्धों और मुसलमानों का हिमायती बनने की कोशिश की और फिर उसके बाद बांग्लादेशियों को खदड़ने की बात कही, उसका संदेश हर वर्ग में अलग-अलग गया।

 

अदर्स वॉयस कॉलम के तहत हम अन्य मीडिया के आर्टिकल प्रकाशित करते हैं. यह लेख जनसत्ता से साभार

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