मगध की राजनर्तकी ‘सालवती’, मगध की हीं विश्रुत राजनर्तकी ‘कोशा’ की भांति हीं अत्यंत सौंदर्यवती और गुणवती थी। उसमें अनेक ऐसे गुण थे, जिसके कारण वह राज-भवन, अंतःपुर और राज-सभा में हीं नहीं, अपितु मगध के विशाल साम्राज्य में अत्यंत लोकप्रिय और स्नेह-भाज्या थी।IMG_9036

इतिहासकारों ने न जाने किन कारणों से उसे इतिहास के पन्नों से उपेक्षित रखा और वह गुमनामी के अंधेरों में समा गयी। कवि रवि घोष ने शोध और श्रम कर उस पर एक खंड-काव्य का सृ्जन किया है, जिसमें ‘सालवती’ के दिव्य व्यक्तित्व पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। कवि रवि इस हेतु प्रशंसा के पात्र हैं।
यह विचार आज यहां बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, पुस्तक पर आयोजित समीक्षा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि पुस्तक में, काव्य-कला का पक्ष भले हीं कहीं-कहीं बलहीन प्रतीत होता है, किंतु भाव-पक्ष और शोध-पक्ष सराहनीय है।
संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए, बिहार विधान परिषद के सभापति डा अवधेश नारायण सिंह ने कवि को बधाई दी तथा कहा कि, साहित्य में एक ऐसी औषधि है, जो बुढापा नहीं आने देती। बढती उम्र का व्यक्ति भी साहित्य से जुड़ कर युवा हो जाता है। कवि रवि घोष का श्रींगार और प्रेम का आख्यान लिखना इस बात का प्रमाण है। ‘सालवती’ खंड-काव्य इसका उदाहरण है।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता वरिष्ठ कवि सत्य नारायण ने कहा कि, कवि रवि एक रस-सिद्ध संवेदनशील रचनाकार हैं। इन्होंने खण्ड-काव्य और वह भी ‘छंद’ में लिखने का जोखिम भरा कार्य किया है। आज छंद नही लिखे जा रहे। यह कठिन कार्य है। उन्होंने कहा कि ‘प्रेम’ मनुष्य की बुनियादी और सृजनशील अभिलाषा है। ‘सालवती’ प्रेम में आकंठ डूबी एक नायिका है, जिसके माध्यम से कवि ने उसी नैसर्गिक सृजनशीलता को साहित्य में पिरोने की चेष्टा की है।
गोष्ठी में, वरिष्ठ साहित्यकार राम उपदेश सिंह ‘विदेह’, ‘पाटलिपुत्र की नगरवधू कोशा’ के उपन्यासकार डा कृष्णानंद, जियालाल आर्य, प्रो शैलेश्वर सती प्रसाद, राजीव कुमार सिंह ‘परिमलेन्दु’, बलभद्र कल्याण, डा विनोद कुमार मंगलम, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कवि राज कुमार प्रेमी, शंकर शरण मधुकर, आर प्रवेश, डा बी एन विश्वकर्मा, सुरेश चन्द्र मिश्र, कृष्णरंजन सिंह तथा नरेन्द्र देव समेत कई विद्वानों ने भी अपने विचार व्यक्त किये। मंच का संचालन सम्मेलन के अर्थ मंत्री योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कवि अमियनाथ चटर्जी ने किया।

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