बिहार की जेलों की सलाखों के पीछे एक अधिकारी का हुक्म ही कानून होता था ‘बसीपी’ के नाम से मशहूर इस अधिकारी के यहां छापा में करोड़ों बरामद हुए पर ज्यादा दिलचस्प है कि कौन है यह?

बीसीपी की काली कमाई ( फोटो जागरण)
बीसीपी की काली कमाई ( फोटो जागरण)
अधिकारी.

विनायक विजेता

विशेष निगरानी इकाई की टीम ने कारा निदेशक (उद्योग) वीरचन्द्र प्रसाद सिंह उर्फ बीसीपी ठिकानों से करोड़ों की सम्पत्ति का पता लगाया है . पत्नी के नाम पर शानदार होटल रॉल किंग रिसॉर्ट की मालिकन हैं. करोड़ों के फ्लैट, गाड़िया तो हैं ही.

कहते हैं कि पद जितना ऊंचा होता है वह उतना ही अस्थाई होता है. तभी तो उच्च पदों पर बैठे लोग हर क्षण अपनी कुर्सी की चिंता में लगे होते हैं. पर इस मामले में वीसीपी सिंह इतने लकी ठहरे कि पिछले दो दशक से कई सरकारें आईं और गईं पर सिंह की कुर्सी जस की तस कायम है.

वीरचंद प्रसाद सिंह जेल की सलाखों में कैद दुर्दांत कैदियों से लेकर छोटे अधिकारियों तक में वीसीपी के नाम से चर्चित हैं. और 1992 से अब तक इसी महकमे में डटे हुए हैं.
बिहार सरकार के कारा विभाग में सबसे पहले उपनिदेशक, उद्योग और कारा के इन अधिकारी महोदय की एक साल पहले ही में पदोन्नति भी हो गई थी पर तब भी इन्हें इसी महकमे का निदेशक कार्मिक बना दिया गया था.

लगातार दो दशकों से इसी महकमे में बने रहने का सीधा मतलब है कि इस विभाग में एक पत्ता भी इनके इशारे के बिना नहीं हिलता.
वीसीपी सिंह उपनिदेशक, उद्योग, कारा के जिस पद पर सितम्बर 2012 तक थे वह पद ही विवादित है. इस मामले में 2002 में रामनरेश सिंह व अन्य ने हाइकोर्ट में 155 पन्ने की (8224/2002) एक याचिका भी दायर की थी. याचिका के आलोक में हाइकोर्ट ने वीसीपी और उनके पद के मामले में एजी से विशेष जांच का आदेश भी दिया. पर वीसीपी के प्रभाव यहां भी दिखा. यह जांच आज तक चल ही रही है.

वीसीपी सिंह 1992 से ही उपनिदेशक कारा उद्योग के उस पद पर कुछ माह पहले तक तैनात थे जिस पद का कोई वजूद ही ही नहीं था.
पूरे देश में ऐसा कोई उदाहरण शायद ही सामने आया हो जब कोई व्यक्ति एक ही विभाग और एक ही पद पर लगातार बीस वर्षों तक जमा रहे.
ध्यान देने की बात है कि कारा विभाग खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ही अधीन है.

पूर्व में बक्सर जेल में तैनात थे बीसीपी. 1992 में उप निदेशक, कारा उद्योग बनाया गया तब लालू प्रसाद राज्य के मुख्यमंत्री थे. तभी से बीसीपी सिंह की सत्ता के गलियारे में ऊपर से लेकर अंतिम पायदान तक पहुंच और पकड़ बनी हुई है.

1997 में जब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी तब भी बीसीपी की बादशाहत कायम रही जो नीतीश कुमार के शासन में भी कायम रहा. 2005 में जब नीतीश राज्य के मुख्यमंत्री बनें तो ऐसे संकेत मिले थे कि वर्षों से एक ही पद पर कायम अधिकारियों पर तबादले की गाज गिरेगी. बड़ी संख्या में अधिकारियों के तबादले हुए भी. पर वीसीपी सिंह मामले में ऐसा नहीं हो सका. नीतीश कुमार ने नवंबर 2010 में दुबारा सत्ता की बागडोर संभली, कितने अधिकारी आए और गए पर विरचंद प्रसाद की कुर्सी जस की तस बनी है.

बिहार में किसी राजपत्रित अधिकारी को अधिकतम तीन वर्ष तक ही एक पद पर पदस्थापित रखने की परंपरा और सरकारी फरमान है पर इन सबसे अलग वीसीपी सिंह ने एक ही पद पर लगातार 21 वर्षों तक लगातार जमे रह कर देश में एक रिकार्ड ही बना डाला है.

अब जब निगरानी ने उनकी काली कमाई का चिट्ठा खोल कर रख दिया है तो देखने की बात है कि उनके रसूख का कितना प्रभाव सत्ता और कानून के गलियारे में दिखता है.

By Editor