राज्यपाल लालजी टंडन ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन दर्शन को विश्व के लिए आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक बताया और कहा कि उनके जीवन के दर्शन को शिक्षा व्यवस्था का अभिन्न अंग बनाया जाना चाहिए।


श्री टंडन ने यहां गांधी जी के 150वें जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित एकदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का औपचारिक उद्घाटन करने के बाद कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जीवन दर्शन आज सम्पूर्ण विश्व के लिए पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक और उपयोगी बन गया है। उन्होंने कहा कि गांधीवाद एक ऐसा व्यवहारिक दर्शन है, जिसका जीवन के हर क्षेत्र में व्यापक प्रभाव है और इसका अनुसरण कर मौजूदा विभिन्न चुनौतियों से निपटा जा सकता है। राज्यपाल ने कहा कि आज जो लोग गांधी जी के सिद्धांतों पर अमल नहीं करते, उन्हें भी अपने विचारों को गांधी के सिद्धांतों के आवरण में ही प्रस्तुत करने को विवश होना पड़ता है। उन्होंने कहा कि गांधी दर्शन को आज भारतीय शिक्षा-व्यवस्था का अभिन्न अंग बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बापू के आर्थिक सिद्धांतों से गांवों के विकास में मदद मिलेगी तथा देश की अर्थव्यवस्था भी सशक्त होगी।

श्री टंडन ने कहा कि लार्ड मैकाले की चलायी गई शिक्षा पद्धति में आज परिवर्तन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने धर्मनिरपेक्षता नहीं बल्कि सर्वधर्म समादर एवं समभाव की बात की थी। वह अपने भजन में ईश्वर और अल्लाह दोनों को याद करते थे तथा सभी मनुष्यों के लिए सुमति की कामना करते थे। उन्होंने बराबर शिक्षा में आध्यात्मिक तत्वों के समाहार की वकालत की। उन्होंने कहा कि गांधीवाद कोई दर्शन नही, बल्कि गांधी जी द्वारा अपने जीवन में सत्य के साथ किए गये प्रयोगों का प्रतिफलन है। यह मानव जीवन को स्वावलंबी, स्वदेशी और नैतिक बनाने का एक महत्त्वपूर्ण जरिया है।
राज्यपाल ने कहा, “यह विडम्बना है कि आजादी मिल जाने के बाद गांधी जी हमसे छिन गए तथा देश का भूगोल रचनेवाले सरदार वल्लभ भाई पटेल भी स्वतंत्र भारत में बहुत दिनों तक हमारा साथ नहीं निभा सके। समाज-सुधार को व्यापक आयाम प्रदान करनेवाले स्वामी दयानंद सरस्वती भी पर्याप्त दिनों तक भारतवर्ष का मार्गदर्शन नहीं कर सके और पूरे विश्व में भारतीय आध्यात्मिक चिंतन को प्रतिष्ठित करने वाले स्वामी विवेकानंद भी हामरे बीच बहुत दिनों तक नहीं रह सके।” उन्होंने कहा कि ये सभी लोग अपने छोटे जीवन के बावजूद अपना लक्ष्य हासिल करने में पीछे नहीं रहे।

By Editor