गुजरात पुलिस को अक्षरधाम आतंकी हमला मामले में फिर तब शर्मशार होना पड़ा जब पोटा अदालत ने माजिद पटेल उर्फ उमरजी और शौकतुल्लाह गोरी को निर्दोष करार दिया.

अक्षरधाम मंदिर- हमलों के बाद (फाइल फोटो द हिंदू)
अक्षरधाम मंदिर- हमलों के बाद (फाइल फोटो द हिंदू)

 

ज्ञात हो कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने छह आरोपियों को निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया था.

अदालत के इस फैसले के बाद गुजरात पुलिस की छवि पर जबर्दस्त बट्टा लगा है क्योंकि इन आरोपियों को छह साल तक जेल की सलाखों में रहना पड़ा जिसका खामायाजा उनके साथ उनके परिवार वालों को भी भुगतना पड़ा है.

 

 

इस मामले में विशेष पोटा (आतंकवादी गतिविधि निरोधक अधिनियम) की न्यायाधीश गीता गोपी ने माजिद पटेल उर्फ उमरजी और शौकतुल्लाह गोरी को बरी करने का आदेश दिया. अदालत ने कहा कि वे 24 सितंबर 2002 को गांधीनगर में एक मंदिर में आतंकवादी हमले की साजिश में शामिल नहीं थे. इस हमले में 30 से अधिक लोगों की जान गई थी.

 

दोनों पर नगर पुलिस की अपराध शाखा ने साजिश का आरोप लगाया था और पिछले छह वर्षों से वे साबरमती जेल में हैं.

 

समय लाइव की खबरों में बताया गया है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से प्रेरित होकर पोटा अदालत ने भी अश्फाक भावनगरी की गवाही को स्वीकार नहीं किया. पटेल को गुजरात के भरच से 2008 में गिरफ्तार किया गया था जबकि सह आरोपी गोरी को उसी साल हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया था.

 

इस मामले में विशेष लोक अभियोजक एच एम ध्रुव ने पोटा अदालत से कहा, ‘उच्चतम न्यायालय ने राज्य एजेंसी की दलील पर भरोसा नहीं किया.’

ध्रुव ने कहा कि भावनगरी के बयान को शीर्ष अदालत ने सबूत के तौर पर नहीं लिया.

 

न्यायमूर्ति ए के पटनायक और न्यायमूर्ति वी गोपाल गौड़ा की पीठ ने 16 मई को इस मामले में मौत की सजा का सामना कर रहे दो लोगों समेत छह अन्य आरोपियों को 16 मई को बरी कर दिया था. आदम सुलेमान अजमेरी और अब्दुल कयूम की अपील को मंजूर करते हुए अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष किसी भी साजिश में उनकी संलिप्तता को स्थापित करने में विफल रहा.

अल्ताफ मलिक, अब्दुल मिया कादरी, मोहम्मद हनीफ शेख और चांद खान उर्फ शान मियां 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा काट रहे थे। उन्हें भी बरी कर दिया गया था.

By Editor