आज जिस गुजरात मॉडल और सुशासन की चर्चा पूरे देश में है। उस गुजरात का महात्मा गांधी के सपनों से कोई वास्ता नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज जिस सरदार पटेल की सबसे उंची प्रतिमा बनवा रहे हैं। वर्तमान गुजरात का पटेल के सिद्धांतों से भी लेना-देना नहीं है। सच तो यह है कि वर्तमान गुजरात महत्मा गांधी और सरदार पटेल का नहीं है। खासतौर से 2002 के बाद का गुजरात नरेन्द्र मोदी का गुजरात है। जहां नरसंहार,  दंगा, प्रशासकीय लाचारी और गुनाहों की फेहरिश्त है। गांधी और पटेल के सिद्धांतो के अनुसार गुजरात नैतिकता की धरातल पर फेल हो चुका है। उक्त बातें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के परपौत्र तुषार गांधी ने पटना में खास बात-चीत के दरम्यान कहीं।IMG_0602

 स्‍वतंत्र पत्रकार अनंत ने महात्‍मा गांधी के परपौते तुषार गांधी से खास बातचीत की

 

बापू के गुजरात में सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक समानता का भाव था। त्याग,  बलिदान, कर्तव्य परायणता थी। सरदार पटेल के गुजरात में किसानों की खुशहाली थी। लेकिन आज जिस गुजरात के विकास मॉडल की चर्चा हो रही है, उसमें सिर्फ अहमदाबाद का एश्वर्य को दिखाया जाता है। गुजराती किसानों की पीड़ा,  गांव के दलितों की दयनीय स्थिति को दरकिनार किया जा रहा है। जिन किसानों की बेहतरी के लिए पटेल ने बाड़डोली में आन्दोलन किया था। किसान आन्दोलन में मिली सफलता के बाद महात्मा गांधी ने पटेल को सरदार के खिताब से नवाजा था। गुजरात सरकार उन्हीं किसानों से जमीन छीनकर उद्योगपतियों के बीच बांट रही है। किसानों के सपनों को चकनाचुड़ करने में लंबे अरसे से जुटी है। तुषार गांधी ने सवालिया लहजे में कहा कि क्या इस गुजरात को गांधी और पटेल का गुजरात कहेंगे।

 

 दरकिनार हुआ बापू का मॉडल

गांधी के विकास मॉडल और आजादी के बाद से लेकर वर्तमान सरकार द्वारा लागू किये गए विकास मॉडल पर तुषार गांधी ने कहा कि बापू के विचारों को तराजू बनाकर वर्तमान भारत के नीति-निर्धारकों के आचरण को तौलने पर हम भारतीय काफी हलके साबित हेागें। बापू के सिद्धांतों से सीख लेकर आगे बढ़ने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। इसके पीछे की मूल वजह है देश के विकास का मॉडल। बापू चाहते मजबूत नींव पर विकास का भव्य इमारत खड़ा करना चाहते थे। लेकिन आजादी के बाद की तमाम सरकारों ने बापू के विकास मॉडल को दरकिनार कमजोर नींव के आधार पर इमारत खड़ा किया है। सरकार की नीतियां दौलतमंद लोगों के गरज के अनुसार बनती रही है। गरीबों के हित की नीतियां आज तक नहीं बनाई गई।

 

 शहर स्‍मार्ट, गांव मटियामेट

विकास का जुड़ाव गरीब से नहीं है बल्कि मुम्बई के स्टॉक एक्सचेंज से है। बापू की नीति के अनुसार गरीबों को स्वालंबी बनाना, कृषि संस्कृति को बढ़ावा देना, गांवों की गरिमा बरकरार रखना था। वर्तमान आर्थिक नीति सिर्फ शहरों को स्मार्ट बना रही है और गांवों को मटियामेट कर रही है। सच तो यह है कि आज भारत दो भागों में बॅट चुका है। जिसका एक खंड भारत है तो दूसरा इंडिया। इंडिया को शांघाई बनाने पर जोड़ दिया जा रहा है और पटेल व गांधी के भारत को ध्वस्त करने की मुकम्ल व्यवस्था कर दी गई है। वर्तमान विकास मॉडल विषमता की खाई को बढ़ा रही है। आने वाले दिनों में एक ओर जहां देश के एक प्रतिशत लोगों के पास जितनी संपति होगी, उतनी संपति में 99 प्रतिशत लोगों के बीच बंटवारा होगा। बापू ऐसे विकास के पक्षधर कभी नहीं रहे।

 

 स्‍वच्‍छता अभियान में दंभ

बापू का स्वच्छता संदेश बनाम मोदी के स्वच्छता अभियान के सवाल पर तुषार गांधी ने बड़े ही बेबाकी से कहा कि बापू के स्वच्छता संदेश में आचार-विचार, व्यवहार और आत्मशुद्धि का तत्व था। लेकिन वर्तमान में जो स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। इसमें दंभ है मीडिया में बने रहने की होड़ है। जो लोग अपने घर का कचड़ा खुद नहीं साफ करते हैं। वह भी इस अभियान को हवा देने में जुटे हैं। स्वच्छता अभियान चलाना अच्छी बात है इसे सिर्फ सड़क और गली कूंचे का साफ करने तक सिमित नहीं रखना चाहिए। स्वच्छता की यात्रा को बापू की स्वच्छता यात्रा से जोड़ना आवश्यक है।

 

मानवता था धर्म

धर्म और राजनीति के सवाल पर उन्होंने कहा कि बापू के लिए मानवता ही धर्म था। वह अपने को बड़े ही गर्व से सनातनी हिन्दू कहते थे। लेकिन मुस्लिम, सिक्ख और इसाई समुदाय के प्रति द्वेष और परायापन का भाव नहीं रखते थे। अन्य धर्मो को दोस्त की निगाह से देखकर उसका विशलेषण करना अपना धर्मिक फर्ज समझते थे। वह गंगा जमुनी तहजीब का संगम भारतवर्ष को बनाना चाहते थे। लेकिन आज धर्म की राजनीति में सिर्फ नफरत बदला और राग द्वेष है। सनातनी धर्म और संस्कृति को वर्तमान राजनीतिज्ञों ने जहर फैलाने का जरिया बना लिया है। इससे गंगा-जमुनी संस्कृति का विघटन हो रहा है।

 

 गोडसे की मूर्ति से परहेज नहीं

गोडसे की मूर्ति निर्माण के सवाल पर तुषार गांधी ने कहा कि मुझे गोडसे की मूर्ति कोई परहेज नहीं है। इस देश में हत्यारों को पूजा करने वाले लोगों को गोडसे की मूर्ति लगाने का अधिकार है। सच तो यह है कि जो हिन्दू महासभा आज गोडसे की प्रतिमा बनवाकर रखी है। उस मूर्ति का गोडसे की सच्ची तस्वीर से कोई लेना-देना नहीं है। गोडसे के प्रति भक्ति-भाव रखने वाले को यह सोंचना चाहिए कि अगर गोडसे की मूर्ति का निर्माण देश के हित में होता तो उनकी मूर्ति बहुत पहले स्थापित हो गई होती।

By Editor