।मनोज प्रसाद।।झारखंड सरकार के सचिवालय में बायोमेट्रिक्स अटेंडेंस सिस्टम लगाया गया है. यह सिस्टम राज्य में गवर्नेस व बेहतर वर्क कल्चर के ख्वाब पूरे कर सकता है.

खासकर तब, जब सरकारी कर्मचारियों की कार्यशैली भी किसी सरकार की सफलता का पैमाना हो. इससे पहले समय पर कार्यालय आना-जाना सुनिश्चित करने वाली तमाम कोशिशें असफल हो गयी थीं.

सरकारी कारिंदों को मौखिक रूप से समझाने या उपदेश देने का असर नहीं हुआ. यहां तक कि कई विभागों के प्रमुख खुद ही लेट-लतीफी के शिकार रहे. ऐसे में निचले स्तर पर समय की पाबंदी कहां होनी थी? पर, आइएएस आरएस शर्मा के मुख्य सचिव बनते ही स्थिति बदल गयी है.

पदभार ग्रहण (31 मार्च) करते ही श्री शर्मा ने पहले खुद को उदाहरण बनाना तय किया. वह सुबह ठीक 10 बजे कार्यालय पहुंचने लगे. उन्होंने देर शाम तक कार्यालय में रहना व दोपहर का भोजन वहीं करना शुरू कर दिया. यही नहीं, काम में चुस्ती व काम टालने की प्रवृत्ति कम करने के लिए उन्होंने कनीय अधिकारियों को एसएमएस करना शुरू किया. सुबह छह बजे से ही वह अधिकारियों को उन्हें उस दिन का काम बांटने लगे. इसका असर भी हुआ. एक वरीय आइएएस ने शर्मा का भेजा एसएमएस दिखाते हुए कहा कि इससे काम को करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता है. सचिवालय भवन में बायोमेट्रिक्स अटेंडेंस सिस्टम लगाना एक बढ़िया कदम साबित हुआ है. एक प्रधान सचिव स्तर के अधिकारी के अनुसार इस सिस्टम के जरिये उपस्थिति दर्ज करवाते वक्त सारे आंकड़े एक डाटा बेस में एकत्र होते हैं. यानी अब देर से आना व जल्दी निकल जाना संभव नहीं रहा. इसके अलावा शर्मा ने कुछ और बदलाव के संकेत भी दिये हैं. उन्होंने तय किया है कि शासन में कुशलता, जवाबदेही व पारदर्शिता के लिए आइटी के सहयोग से एग्जिक्यूटिव बिजनेस रूल्स (कार्यपालक नियमावली) का अक्षरश: पालन किया जायेगा.

दरअसल प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर व बेहतर आबो-हवा वाले इस राज्य में जहां के लोग बड़े सीधे व सरल हैं, शासन की कई गंभीर चुनौतियां हैं. खासकर कार्यक्रम व योजनाओं के क्रियान्वयन के रूप में. यह एक खुला तथ्य है कि झारखंड अपने बजट को पूरी तरह खर्च तक करने में असमर्थ रहा है. केंद्र सरकार ने अपने आकलन में पाया है कि झारखंड का प्रदर्शन कल्याणकारी व गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन में राष्ट्रीय औसत से पीछे है. खास कर तमिलनाडु व राजस्थान जैसे राज्यों की तुलना में हम कहीं नहीं ठहरते. वर्ल्ड बैंक ने तत्कालीन (2007) अजरुन मुंडा सरकार की पहल पर एक रिपोर्ट तैयार की थी, झारखंड : समावेशी विकास के समक्ष चुनौतियां (झारखंड, अड्रेसिंग द चैलेंजेज ऑफ इनक्लूसिव डेवलपमेंट).

इसमें जिक्र था कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता व अकुशल प्रशासनिक तंत्र के कारण विकास बाधित है. पहली चुनौती प्रशासनिक सुधार के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच आपसी सहमति होना है. इन मुद्दों पर उनकी सामूहिक जिम्मेवारी व पारदर्शिता भी जरूरी है. दूसरी जरूरत सिविल सर्विस के अधिकारियों की क्षमता का विकास है. इसके लिये उनके बीच विभागों व कार्यक्रमों का तर्कसंगत बंटवारा करना, समय से पहले होने वाला ट्रांसफर रोकना तथा उनके प्रदर्शन व कैरियर प्रबंधन में सुधार सहित प्रखंड स्तर तक अधिकारियों की उपस्थिति व प्रशासन में सुधार जरूरी होगा. रिपोर्ट में बेहतर गवर्नेस के लिए तीसरा समाधान ई-गवर्नेस, सूचना का अधिकार कानून का पूरी तरह पालन तथा शासन का विकेंद्रीकरण के रूप में था. रिपोर्ट में कानून का राज की भी बात थी. यानी कानून के एकसमान पालन से संगठित माफियाओं का खात्मा करना.

वर्ल्ड बैंक की उक्त रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि सरकार को राज्य की कई महत्वपूर्ण व सक्षम सिविल सोसाइटी के संपर्क में रहने के अलावा उनके सुझावों व कौशल का लाभ भी लेना चाहिए. मुख्य सचिव आरएस शर्मा वर्ल्ड बैंक की इस रिपोर्ट से अवगत हैं.

राष्ट्रपति शासन तथा अपने गत तीन माह के कार्यकाल में श्री शर्मा ने ब्यूरोक्रेसी को सुचारु बनाने तथा इसे लोकहितकारी बनाने के लिए कुछ शुरुआती पहल किये हैं. उदाहरण के तौर पर 1. लैंड रेकॉर्ड का डिजिटाइजेशन 2. राजस्व क्षति रोकने के लिए ई-स्टैंपिंग सिस्टम लागू करना 3.

विभिन्न विभागों से संबंधित राजस्व प्राप्ति व निकासी के लिए ऑनलाइन ट्रेजरी मैनेजमेंट सिस्टम बनाना 4. विभागवार बजट की उपलब्धता व कार्यक्रमों के क्रियान्वयन संबंधी मैनैजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम शुरू करना 5. छात्रवृत्ति, वृद्धा व अन्य पेंशन तथा जन वितरण प्रणाली के लाभुकों से आधार नंबर को संबद्ध करना 6. झारखंड इलेक्ट्रॉनिक डिलिवरी एक्ट-11 की निगरानी व क्रियान्वयन के लिए कॉल सेंटर बनाने का काम इनमें शामिल हैं.

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