मांझी खेमा राजनीति के गुरिल्ला युद्ध का आगाज कर रहा है. मतलब आक्रमण करो और सुरक्षित जगह पर आ जाओ. इसके लिए मांझी ने तैयारियां पूरी कर ली है.manjhi.

नौकरशाही डेस्क

गुरिल्ला युद्दर असल छोटे समूह का ऐसा युद् है जो अपने दुश्मन पर उचित समय मिलते ही आक्रमण कर देता है. यह एक लम्बी प्रक्रिया है. छोटे समूह के लिए अपने प्रतिद्वंद्वी को परेशान करने का एक पारम्परिक तरीका है.

रविवार को मांझी ने अपनी इस लड़ाई का हिसाब किताब पत्रकारों के बीच रखा. इस आक्रमण की शुरुआत मांझी 9 मार्च से शुरू कर रहे हैं. वह पटना के गांधी मैदान में एक दिन का रना देंगे. और जनता को बतायेंगे कि नीतीश सरकार ने उनके जनहित के फैसलों को टाला है वह जन विरोधी काम है.

ये होंगे हथियार

मांझी ने उन तमाम बिंदुओं को एक एक कर गिनाया और कहा कि नीतीश कुमार ने उनके शासनकाल में किये गये तीन दर्जन फैलों को रोक दिया. हम इसके लिए गुरिल्ला वार करेंगे और इस लड़ाई में जनता हमारा साथ देगी. उन्होंने गिनाया कि उनकी सरकार ने किसानों को मुफ्त बिजली देने का फैसला किया. राज्य का किसान बेहाल है उसके हक के फैसले को पलटना कहीं से उचित नहीं. हमने डिग्री कॉलेज में उर्दू टीचरों की बहाली का फैसला लिया इसे भी रोक दिया गया.

मांझी ने गुरिल्ला वार की जो रणनीति तैयार की है उसके तहत दलितों के हक में किये गये फैसले- ठेके में आरक्षण, संविदा शिक्षकों को क्रमबद् तरीके से वेतनमान देना, पुलिस बल को साल में 13 महीने का वेतन देने का मुद्दा आक्रमण के हथियार होंगे.

इस लड़ाई के लिए मांझी  भ्रष्टाचार और सरकारी पूंजी की लूट को भी मुद्दा बनाने की बात तय कर चुके हैं.उन्होंने कहा कि मेर हटते ही आईएएस के ट्रांस्फर की कीमत 50 लाख लगने लगी है. एसडीओ के लिए चालीस लाख लिये जाने लगे हैं. वह हिसाब लगा कर कहते हैं कि अफसर इतने पैसे देंगे तो बदले में कीमत जनता से वसूलेंगे. इसलिए कल से हमारी लड़ाई शुरू हो रही है.

वह कहते हैं राज्य में चार हजार करोड़ी की ठेकेदारी पर जमीनदारों का कब्जा है इसे हमने तोड़ने की कोशिश की और तय किया कि दलितों को इसमें से कम से कम एक हजार करोड़ी भागीदारी हो पर इसे भी नतीश सरकर ने रोक दिया.

जनता की अदालत

हम अब अदालतों के चक्कर लगाने के बजाये जनता की अदालत में जा रहे हैं. इस लड़ाई का अगल पड़ाव जिलों में होगा और 20 अप्रैल को 5 लाख लोगों की फौज के संग गांधी मैदान में जुटेंगे.

एक प्रश्न के जवाब में मांझी ने कहा कि हम इस लड़ाई को उस मुकाम पर ले जाके छोड़ेंगे जहां से कोई भी पार्टी हमारी शर्तों पर हमारे संग आयेगी. इसमें भाजपा भी हो सकती है या राजद भी. इसलिए मुसलमानों को नाराज होने की कोई वजह नहीं क्योंकि हम उनके हितों की अनदेखी नहीं होने देंगे

मांझी की यह प्रेस कांफ्रेंस काफी ऊहापोह में बुलायी गयी. इसलिए उनके खेमे के कई सीनियर लीडर नहीं आ सके. उनकी बायीं ओर पूर्व मंत्री शाहिद अली खान बैठे तो दायीं ओर अनिल कुमार. इस दौरान दानिश रिजवान भी मोजूद थे.

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