आईएएस अधिकारी शशिभूषण सुशील द्वारा गूगल में काम कने वाली महिला के साथ कथित रूप से छेड़छाड़ करने की घटना ने यूपी की नौकरशाही को जातीय खेमे में बांट कर रख दिया है.
नौकरशाहीडॉट इन के सम्पर्क में आये कुछ नौकरशाहों ने स्वीकार किया है कि पिछले तीन दिनों में प्रशासनिक सेवा के अलग अलग ग्रूपों के अधिकारी इस संबंध में गुप्त मीटिंग कर चुके हैं. जिनमें अलग अलग जातियों के अधिकारी शामिल हुए हैं.

इस संबंध में दलित समुदाय से संबंध रखने वाले नौकरशाहों ने आरोप लगाया है कि मौजूदा सरकार एक खास जाति के नौकरशाहों को अनपे निशाने पर ले रही है.

कुछ अधिकारियों का कहना है कि मायावती सरकार में जिन अधिकारियों को ज्यादा महत्व मिला था उन्हें किसी न किसी तरह उत्पीड़ित करने की चाल चली जा रही है.

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इन अधिकारियों का तर्क है कि ट्रेन में छेड़छाड़ की घटना को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया. और आरोप लगा देने मात्र से निलबिंत कर दिया गया क्योंकि 2001 बैच के आईएएस अधिकारी दलित वर्ग से है. जबकि एनआरएचएम घोटाले में पकड़े जाने के बावजूद एक अन्य नौकरशाह प्रदीप शुक्ला को जेल तो भेजा गया पर उन्हें निलंबित नहीं किया गया. जबकि प्रदीप की गिरफ़्तारी के दौरान मौजूदा सरकार ही थी.
कुछ अधिकारियों ने इस बात का इशारा दिया है कि सुशील के लिए हर संभव कानूनी सहायता दी जायेगी ताकि उनके साथ इंसाफ़ हो सके.

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इस बीच पता चला है कि लखनऊ में अन्य जाति के नौकरशाह भी गुप्त मीटिंग करने और अगली रणनीति तैयार करने में लगे हैं.

नौकरशाहों के खेमे बंदी के बढ़ते रुझान का आभास मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी है. उन्होंने तीन दिन पहले यह बयान देकर नौकरशाहों को हड़का दिया था कि यवती के साथ बदसुलूकी करने वाले सुशील को बचाने की कोशिश करने वाले अधिकारियों का पता लगाया जा रहा है और उन पर भी कानूनी कार्रवाई की जायेगी. अखिलेश के इस बयान के बाद कुछ अधिकारी बचाव की मुद्रा में हैं.

यह माना जा रहा है कि नौकरशाही में जातिवाद और लाबीइंग तो पहले से ही रही है पर इस घटना के बाद जातिवादी रुझान में जबरदस्त तीव्रता आई है. इस तरह के रुझान का असर निश्चित रूप से नीचे तक दिखेगा जिसका खामयाज़ा आम जनता को भी भूगता पड़ेगा.

By Editor