एक नदी जो अपने कल- कल जलप्रवाह से समृद्धि की कहानी लिखती है वही जब नदी मानव  द्वारा अपने फायदे के लिये मृतप्राय कर दी जाती है. तब उसका कोप कई पीढ़ियों को झेलना पड़ता है. 

अनूप नारायण सिंह

 

gandak

गंडेरी नदी की कथा भी कुछ ऐसी ही है.

भारत सरकार द्वारा नेपाल के साथ पनबिजली के लिए किए गए समझौते का दंश झेल रहे सीवान जिला अंतर्गत बड़हरिया प्रखंड के पचराठा गांव के आसपास बारह हजार दलित व मुस्लिम परिवार बर्बादी के कगार पर खड़े हैं। समझौते के तहत पानी के साथ आ रहा गाद इन सबों की जान का ग्राहक बन गया है। गोपालगंज से मांझा होते हुए आने वाली नहर चांचोपाली के पास पानी गिराती है।

घरबार छोड़ने की मजबूरी

जिसका पानी व गाद यहां से गुजरने वाली गंडेरी नदी में गिरता है। गाद के कारण गंडेरी (छोटी गंडकी) नदी का पानी निकलना लगभग 20 साल से बंद हो गया है। जिससे 22 गांवों की करीब 50,000 एकड़ जमीन जलमग्न है। खेती हो नहीं पा रही और इन परिवारों के समक्ष खेती के अलावा जिविकोपार्जन का कोई जरिया नहीं है। बारिश के दिनों में इन लोगों का घर-द्वार भी डूब जाता है। घर की बच्चियों -महिलाओं को छह महीने गांव छोड़ रिश्तेदारों के घर भेजना मजबूरी हो जाती है। गांव में घर की रखवाली के लिए कोई एक बुजुर्ग रह जाता है। स्थानीय नागरिकों द्वारा वर्षों से सरकार का ध्यान इस समस्या की ओर आकृष्ट कराया जा रहा है। लेकिन किसी जनप्रतिनिधि ने या किसी अफसर ने इन परिवारों की सुध लेना जरूरी नही समझा है।

गंड़ेरी बचाओ समिति

बीते 31 मार्च, 2105 को छोटी गंडकी (गंडेरी) नदी बचाओ अभियान समिति के मुख्य संरक्षक संजीव श्रीवास्तव व अध्यक्ष समीना खातून के नेतृत्व में जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव को आवेदन दिया गया, जिसके बाद उनके निर्देश पर सहायक अभियंता द्वारा नदी के बंद हिस्से का निरीक्षण किया गया। पुनः 01अप्रैल और 05 अप्रैल को कार्यकारी अभियंता ने जांच पड़ताल किया और उसके बाद बंद हिस्से की सफाई के लिए विभाग के पटना स्थित मुख्यालय को स्टीमेट बनाकर भेजा। लेकिन आज तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। प्रभावित इलाके के लोगों के सहयोग से समस्या पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री बनाई गई और उसे संबंधित विभाग के मंत्री व अधिकारियों को भेजा गया। सचिवालय स्थित मुख्यालय व जिला कार्यालय से कई बार संपर्क किया गया लेकिन आशवासन के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा। मानसून सिर पर है और इस बार फिर डूबना तय है। लेकिन अब सरकार की कुंभकर्णी नींद तोड़ने को समिति ने संघर्ष का रास्ता अख्तियार करने का निर्णय लिया है। आने वाले दिनों में जिला व राज्य मुख्यालय में धरना-प्रदर्शन तथा अनशन व भूख हड़ताल किया जाएगा। गांधीवादी तरीके से अपना हक लेने के लिए जो भी बन पड़ेगा, समिति उसे करेगी। नौकरशाही से बातचीत में स्थानिये ग्रामीण कहते है की आपके प्रयास से हम बारह हजार दलित-मुस्लिम परिवारों की आवाज शायद सुनी जाए ताकि हम सभी सम्मान की जिन्दगी जीते हुए समाज के अन्य तबकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें।

By Editor