नीतीश कुमार व शरद यादव ने सन् 2000 के आसपास जदयू का महल खड़ा करने के लिए एक एक ईंट का जुगाड़ किया था. लेकिन अब उस महल की ईंटे एक एक कर भहरा रही हैं. पिछले दिनों कद्दावर नेता उदय नारायण चौधरी ने पार्टी छोड़ी तो दूसरे दिन संतोष कुश्वाहा ने. संभवाना है कि आने वाले दिनों में यह सिलसिल चलता रहेगा.

पिछले वर्ष जुलाई-अगस्त में शरद यादव के अलग होने का असर अब देखने को मिल रहा है. शरद गुट ने लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया है. इस  पार्टी का अधिवेशन 18 मई को दिल्ली में होना है. उससे पहले जदयू से कुछ और नेता, नाता तोड़ेेंगे, यह तय है. शरद गुट का दावा है कि अगल कुछ रोज में बागी कुमार वर्मा और  अवधेश कुशवाहा जदयू छोडेंगे.

सूत्र तो यहां तक बतात हैं कि आगामी कुछ महीनों में जदयू के अनेक दिग्गज भी पार्टी छोड सकते हैं. इन में कुछ विधायक भी शामिल हैं. वे नेता लोकसभा चुनाव से पहले ऐसा कर सकते हैं. इन में दलित चेहरे भी होंगे और पिछड़े वर्ग के नेता भी. उधर जैसी खबरें अंदर से आ रह हैं जदयू के विभिन्न प्रकोष्ठों के नेता भी उचित अवसर और उचित दल के द्वारा हरी झंडी मिलने के इंतजार में हैं.

यह स्थिति निश्चित तौर पर जदयू के लिए चिंता का कारण है क्योंकि जदयू ने पिछले एक डेढ़ दशक में जो अपना महल खड़ा किया था उस महल की ईंटें एक एक कर दरक रही है.

उधर एनडीए में बिखराव का असर भी जदयू व भाजपा की सेहत पर पड़ना तय है. एनडीए से  कद्दावर नेता व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी पहले ही अलग हो चुकी है.

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