बाबा साहेब आंबेडकर को आज सिर्फ दलितों के वोट के रूप में देखा जा रहा है। उनके विचारों ,आदर्शो एवं कार्यो की चर्चा नहीं की जा रही है। ये बातें जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में पहली बार आयोजित डॉ आंबेडकर जयंती के अवसर पर उपस्थित बुद्धिजीवियों ने कहीं। संचालन संस्‍थान के निदेशक श्रीकांत ने किया।rjs

 

कवि एवं लेखक मुसाफिर बैठा ने कहा कि बाबा साहब का संदेश शिक्षा, एकता एवं संघर्ष आज भी प्रासंगिक है। प्रो. रमाशंकर आर्या ने कहा कि बाबा साहब की परिकल्पना एक लोकतांत्रिक भारत बनाने की थी,जिसमें दलितों, महिलाओं व वंचितों के हक व अधिकार सुरक्षित किये जायें। उन्हें केवल दलितों का नेता बताना, उनके व्यक्तित्व को संकीर्ण दायरे में समेटना होगा. उन्हें निष्पक्ष होकर समझने की आवश्यकता है।

 

पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने कहा कि अगर आज सभी पार्टियां बाबा साहब को दलितों के वोट के रूप में देख रही है,यह  एक शुभ संकेत है। राज्य अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष विद्यानंद विकल ने कहा कि बाबा साहब ने हमेशा गठित होने की बात कही थी परंतु आज बिहार में कोई ऐसी पार्टी नहीं है,जो संगठन की बात करती हो। बिहार राज्य भूमि न्यायाधिकरण के सदस्य डॉ केपी रामय्या ने कहा कि आज जाति के भीतर भी विषमता है। इतिहासकार  प्रो ओपी जायसवाल ने कहा कि प्राचीन काल से लेकर आज तक जितनी भी लड़ाइया हुई है सत्ता को लेकर हुई है। उक्त अवसर पर संस्थान के निदेशक श्रीकांत,  सरोज कुमार द्विवेदी,  मनोरमा सिंह, अरूण कुमार सिंह,  वीणा सिंह,  प्रभात सरजीत , हेमंत कुमार, इर्शादुल हक, जगनेश्वर चैधरी आदि मौजूद थे।

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