राजनीति के खेल में पहले से कहीं अधिक शिद्दत आ चुकी है। यह और बात है कि कांग्रेस और दूसरी सहयोगी , डरी हुई पार्टियों को इसका अंदाज़ा भी नहीं है।
– तबस्सुम फातिमा
कर्नाटक की जिस जीत पर कांग्रेस जश्न मना रही है , यह दांव उलटा भी पड़ सकता है। देवेगौड़ा और कुमार स्वामी के राजनितिक चरित्र पर भरोसा करना कांग्रेस के लिए आइंदा नितीश की तरह मंहगा भी पड़ सकता है। कुमार स्वामी मोदी से मिल भी चुके हैं। कांग्रेस से मंत्री पद को ले कर खटपट की खबरें भी आने लगी हैं। राजनीती के लिए यह समय उच्च मूल्यों या नैतिकता का नहीं है।
 
 
कैराना चुनाव ने भाजपा का भविष्य तय कर दिया है। यानी भाजपा को चुनाव जीतने के लिए न दलील चाहिए न नैतिकता भरा भाषण। जब देश के सर्वोच्य विभाग उसकी झोली में पड़े हों तो फिर मोदी सरकार को डर काहे का। आप बैलेट पेपर से चुनाव कराएं , जैसे चाहे चुनाव कराएं लेकिन कांग्रेस और सहयोगी सहमी हुई पार्टियों के पास अमित शाह जैसे रणनीतिकार नहीं हैं जो चुनाव रथ को जैसे चाहें ,अपने इशारों पर मोड़ सकते हैं। दो चार भाषण दे कर राहुल भैया विदेश को भाग जाते हैं। सहयोगी पार्टियां प्रेस कांफ्रेंस कर के निश्चिंत हो जाती हैं। जबकि अमित शाह के टीवी प्रसार चैनेल लगातार भाजपा अभियान में लगे रहते हैं।
 
 
 
 
अब तो कोबरा पोस्ट का स्टिंग ऑपेरशन भी सामने आ चूका। बीस से अधिक चैनलों ने पैसों के दम पर वादा किया कि वे मुसलामानों के विरोध में और भाजपा की मज़बूती के लिए कुछ भी दिखाने को तैयार हैं। ऐसी परिस्थिति में अभिसार , रविश कुमार, प्रसुन बाजपेयी और दी वायर जैसे पोर्टल की आवाज़ सुनी भी जायेगी , यह बात मज़ाक़ लगती है। २०१९ मिशन को ले कर अभी से जिस शक्ति और कूटनीति को ले कर अमित शाह चल रहे हैं , वह किसी और पार्टी में दूर दूर तक देखने को नहीं मिलती। इसलिए २०१९ का सफर कांग्रेस के लिए अब भी आसान नहीं लगता।
 
 
 
 
 
सोशल वेबसाइट पर मोदी और सहयोगिओं के प्रचार – प्रसार को ले कर काफी तूफ़ान उठ चुका है। अब मोदी ,अमित शाह और आरएसएस यह ब्यान दे रहे हैं कि जनता सोशल वेबसाइट पर भरोसा न करे। इस का कारण है। सोशल वेबसाइट पर भाजपा और आरएसएस विरोधी भी अपना सिक्का जमा चुके हैं। भाजपा समर्थकों के लिए सोशल वेबसाइट अब भी प्रचार -प्रसार के लिए बेहतर जगह है लेकिन अमित शाह जानते हैं कि भोले भाले लोग विपक्ष के प्रोपगेंडे का शिकार हो सकते हैं। इस लिए गाँव गाँव बिजली देने का आह्वान कर के टीवी दिखाए जाने को प्राथमिकता दी जा रही है। गाँव वालों को बिजली का फायदा तो मिलेगा साथ ही टीवी चैनलों के माध्यम से उनका सीधा संवाद भाजपा से होगा। बीस से भी अधिक चैनलों के प्रभाव में गाँव वालों पर सीधे भाजपा की विकास नीतिओं का प्रभाव पड़ेगा। गाँव – गाँव को टीवी से जोड़ने की मुहिम २०१९ के मिशन का बड़ा हिस्सा है। क्योंकि विशाल भारत का बड़ा हिस्सा अब भी गाँव में रहता है।
 
 
 
विपक्ष की एकता पर अब भी सवालिया निशान लगा हुआ है। नोटबंदी ,जी एस टी , पेट्रोल डिजेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद मोदी सरकार निश्चिन्त है कि कमज़ोर विपक्ष उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता। सत्ता की ताक़त देश को कहाँ ले कर जायेगी , कहना मुश्किल है। लेकिन लोकतंत्र की पराजय , गोदी मीडिया की ज़मीर फरोशी , देश के सर्वोच्य विभागों का शिथिल पड़ना और नैतिकता का ह्रास , यह ऐसे विषय हैं ,जिनका जवाब अभी तो नहीं ,लेकिन आने वाली पीढ़ी को देना होगा। तब यह भी सवाल उठेगा कि कांग्रेस और समस्त विपक्षी पार्टिओं ने मुर्दों की तरह घुटने न टेके होते तो सत्ताधीन पार्टी का व्यवहार संतुलित होता। भाजपा और आरएसएस का उदय सीधे कांग्रेस और विपक्ष की मौत को दर्शाता है।

By Editor