आशुतोष कुमार सिंह

दवाइयों के नाम पर किस तरह लूट खसोट है इसका एक उदाहरण यह है कि इतनी महंगी दवाइयां खरीदने के बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं हैं कि जो दवा आप खा रहे हैं वह गुणवत्ता के मानक को पूरी कर रही हो.

आर.टी.आई कार्यकर्ता अफरोज आलम साहिल ने जब नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग ऑथरिटी (एन.पी.पी.ए) से सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी कि पूरे देश में किस जिला, राज्य में दवाइयों को रैंडम सैंपलिंग के लिए सबसे ज्यादा भेजा गया है?

इस सवाल के जवाब में एन.पी.पी.ए का उत्तर चौकाने वाला है. अपने जवाब में एन.पी.पी.ए लिखता हैं इस साल रैंडम सैम्पलिंग के ज्यादातर कार्य दिल्ली और एन.सी.आर में ही कराए गए हैं. इस जवाब से कई सवाल उठते हैं. क्या पूरे देश में जो दवाइयां बेची जा रही हैं उनकी जाँच की जरूरत नहीं हैं? क्या केवल दिल्ली और एन.सी.आर के लोगों को ही गुणवत्ता परक दवाइयों की जरूरत है?
इस तरह की लापरवाही से यह साफ-साफ दिख रहा हैं कि देश की जनता के स्वास्थ्य को लेकर सरकारी व्यवस्था पूरी तरह से अव्यवस्थित है.

ऐसे में यह अहम सवाल उठता हैं कि देश के स्वास्थ्य के साथ कब तक इस तरह से लुकाछिपी का खेल चलता रहेगा. महंगी दवाइयों से त्रस्त जनता को गुणवत्तापरक दवाइयां भी न मिले तो आखिर वो करे तो क्या करे.

लेखक कंट्रोल एम.एम.आर.पी कैंपेन चला रही प्रतिभा जननी सेवा संस्थान के राष्ट्रीय को-आर्डिनेटर व पत्रकार हैं

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