आज कारगिल विजय दिवस है। आज ही के दिन भारतीय सैनिकों ने पाकिस्‍तान सेना के मंसूबों को ध्‍वस्‍त करते हुए कारगिल की चोटी पर तिरंगा फहराया था। इसमें हमारे अनेक जवान शहीद हुए थे। उनकी शौर्यगाथा हर व्‍यक्ति की जुबान पर है। राजस्‍थान का झंझुनू अपने शहीदों की गाथा के लिए ही चर्चित है।KARGIL SAHID PARK-1

 

रमेश सर्राफ ( राजस्‍थान)

26 जुलाई कारगिल विजय दिवस पर विशेष

 

शुरा निपजे झुंझुनू, लिया कफन का साथ ।

रण-भूमि का लाडला, प्राण हथेली हाथ ।।

उक्त कहावत को चरितार्थ किया हैझुंझुनू जिले के अमर सपूतों ने। इस वीर भूमि के रणबांकुरों ने जहां स्वतंत्रता पूर्व के आन्दोलनो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, वहीं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की लड़ाइयों में भी इस धरती की माटी में जन्मे सेनानी देश की धरोहर साबित हुए हैं। यहां की धरती ने सदियों से जन्म लेते रहे सपूतों के दिलों में देशभक्ति की भावना को प्रवाहित किया हैं। शहादत राजस्थान की परम्परा है। यहां गांव-गांव में लोकदेवताओं की तरह पूजे जाने वाले शहीदों के स्मारक इस परम्परा के प्रतीक हैं। 15 साल पहले करगिल तो हमने जीत लिया, लेकिन शहीदों के परिवारों के सामने समस्याओं के कई करगिल हैं। जिन पर उन्हें जीत दर्ज करनी हैं।

 

इस जिले के वीरों ने बहादुरी का जो इतिहास रचा है, उसी का परिणाम है कि भारतीय सैन्य बल में उच्च पदों पर सम्पूर्ण राजस्थान की ओर से झुंझुनू का ही वर्चस्व रहा है। चाहे 1948 का कबायली हमला हो या 1962 का भारत चीन युद्ध, चाहे 1965 व 1971 का भारत-पाक युद्ध यहां के वीरों ने मातृभमि की रक्षा हेतू सदैव अपना जीवन बलिदान किया है। जल,थल व वायु तीनों सेनाओं की आन के लिये यहां के नौजवान सैनिकों के उत्सर्ग को राष्ट्र कभी भुला नही सकता हैं।

 

इस क्षेत्र के सैनिकों ने भारतीय सेना में रहकर विभिन्न युद्धों में बहादुरी एवं शौर्य की बदौलत जो शौर्य पदक प्राप्त कियें हैं, वे किसी भी एक जिले के लिये प्रतिष्ठा एवं गौरव का विषय हो सकता हैं। सीमा युद्ध के अलावा जिले के बहादुर सैनिकों ने देश मे आंतरिक शान्ति स्थापित करने में भी सदैव विशेष भूमिका निभाई हैं। सीमा संघर्ष एवं नागा होस्टीलीटीज हो या आïपरेशन ब्लूस्टार या श्रीलंका सरकार की मदद हेतु किये गये आपरेशन पवन अथवा कश्मीर में चलाया गया आतंकवादी अभियान रक्षक या कारगिल युद्ध। सभी अभियान में यहां के सैनिको ने शहादत देकर जिले का मान बढ़ाया हैं।

भारतीय सेना में योगदान के लिये झुंझुनू जिले का देश में अव्वल नम्बर हैं। वर्तमान में इस जिले के 45 हजार जवान सेना में कार्यरत हैं। वहीं 62हजार भूतपूर्व सैनिक हैं। भारतीय सेना की ओर से राष्ट्र की सीमा की रक्षा करते हुये यहां के 423 जवान शहीद हो चुके हैं। जो पूरे देश में किसी एक जिले से सर्वाधिक है। कारगिल युद्ध के दौरान भी पूरे देश में यहां के सर्वाधिक जवान शहीद हुये थे। कारगिल युद्ध के बाद से अब तक झुंझुनू जिले के 114 से अधिक सैनिक जवान सीमा पर शहीद हो चुके हैं।

 

यहां के जवान सेना के सर्वोच्च पदों तक पहुंच कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। इस जिले के एडमिरल विजय सिंह शेखावत भारतीय नौ सेना के अध्यक्ष रह चुकें हैं। वहीं स्व. कुन्दन सिंह शेखावत थल सेना में लेफ्टिनेन्ट जनरल व भारत सरकार के रक्षा सचिव रह चुके हैं। जे.पी.नेहरा , सत्यपाल कटेवा वर्तमान में सेना में लेफ्टिनेन्ट जनरल, कंवर करणी सिंह आर्मी हास्पिटल,दिल्ली में मेजर जनरल पद पर कार्यरत हैं। इसके अलावा यहां के काफी लोग सेना में ब्रिगेडियर,कर्नल,मेजर सहित अन्य महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। देश में झुंझुनू एकमात्र ऐसा जिला हैं, जहां सैनिक छावनी नहीं होने के उपरान्त भी गत पचास वर्षो से अधिक समय से सेना भर्ती कार्यालय कार्यरत है, जिससे यहां के काफी युवकों को सेना में भर्ती होने का मौका मिल पाता है।

 

यहां के हवलदार मेजर पीरूसिंह शेखावत को 1948 के युद्व में वीरता के लिये देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है। यहां के सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध में भी बढ़चढ़ कर भाग लिया था। आज भी यहां के 406 द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व सैनिकों या उनकी विधवाओं को सरकार से 1500 रू मासिक पेंशन मिल रही है।

 

जिले में इतने अधिक लोगों का सेना से जुड़ाव होने के उपरान्त भी सरकार द्वारा सैनिक परिवारों की बेहतरी व सुविधा उपलब्ध करवाने के लिये कुछ भी नहीं किया गया है। कारगिल युद्ध के समय सरकार द्वारा घोषित पैकेज में यह बात भी शामिल थी कि हर शहीद के नाम पर उनके गांव में किसी स्कूल का नामकरण किया जायेगा, मगर जिले के ऐसे 24 शहीदों के नाम पर अब तक सरकार ने स्कूलों का नामकरण कई वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं किया है। ऑपरेशन कारगिल विजय के दौरान 28 दिसम्बर 1999 को सैनिक अमरसिंह ने देश रक्षा में अपने प्राणों की आहुती दी थी। लेकिन आज भी शहीद के परिजनों को न्याय की आश है, सरकारें बदलती रही पर शहीद के परिजनों की किसी ने सुध नहीं ली। भारत सरकार की और से कारगिल शहीद के परिजनों को दी जाने वाली सभी सुविधाऐं आज तक शहीद अमरचन्द जांगिड़ के परिजनों को नहीं मिल पायी हैं। शहीद वीरांगना सुशीला ने बताया कि शहीद परिवार के भरण-पोषण के लिए शहीद परिवाजनों को आवंटित किया जाने वाला पेट्रोल पम्प भी इतने वर्ष बित जाने के बाद आज तक स्वीकृत्त नहीं हो पाया है।

 

झुंझुनू जिले की जनता के लिये सैनिक स्कूल खुलवाना आज भी सपना बना हुआ है। सरकार द्वारा झुंझुनू जिले को देश का सैनिक जिला घोषित कर यहां के सैनिक परिवारों को सुविधाएं उपलब्ध करवाने की तरफ पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो आज भी झुंझुनू क्षेत्र से अनेको पीरूसिंह पैदा हो सकते हैं।

By Editor