तेजस्वी यादव सोशल जस्टिस की जंग सोशल मीडिया से लड़ना चाहते हैं.सोशल मीडिया के प्रभाव और प्रभुत्व की कड़ी में यह अच्छा प्रयास है पर इसके अपने जोखिम हैं तो अच्छे नतीजे की उम्मीद भी.

एक गंभीर पहल
एक गंभीर पहल

इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन

रविवार को पटना में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर आयोजित सोशल मीडिया फ्रेंड्स के साथ चाय पार्टी में दोनों चीजें स्पष्ट दिखीं.

फेसबुक पर प्रचारित यह इवेंट ‘टीम तेजस्वी’ की परिकल्पना का हिस्सा था.नतीजतन बेतिया से मधेपुरा और बक्सर से पूर्णिया तके के कोई 100 युवा इस अवसर पर पहुंचे थे.

पिछले दो एक सालों में सोशल मीडिया के सहारे जन्मे आंदोलन ने मिश्र की सड़कों से लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर तक अपना प्रभाव दिखा दिया है. अब पारम्परिक ढ़रर्रे पर चलने वाली राजनीतिक पार्टियां भी यह महसूस करने लगी हैं. ऐसे में ‘टीम तेजस्वी’ ने इसे महसूस किया यह एक सकारात्मक बदलाव को दर्शाता है. तेजस्वी ने इसे स्वीकारा भी पर इस बात पर भी जोर दिया कि राष्ट्रीय जनता दल दलितों, पिछड़ों, गरीबों की पार्टी है जिनके ज्यादातर लोग नेट सेवी नहीं हैं इसलिए उनके साथ मिलने-जुलने के लिए हम ‘चौपाल’ लगायेंगे.

इस आयोजन में, उम्मीदों के मुताबिक आम तौर पर 20-35 वर्ष के युवा पहुंचे थे. जिनमें राजनीतिक परिपक्वता का भले ही अभाव दिखा पर सामाजिक न्याय के प्रति उनमें निश्चित तौर पर प्रतिबद्धता भी दिखी. युवाओं ने सोशल मीडिया की भूमिका की चर्चा की और उसके सहारे अपनी भूमिका अदा करने की वचनबद्धता जाहिर की.

तेजस्वी के सोशल मीडिया फ्रेंड (फोटो सौजन्य- फिरोज मंसूरी)
तेजस्वी के सोशल मीडिया फ्रेंड (फोटो सौजन्य- फिरोज मंसूरी)

जो चुनौतियाँ हैं

उत्साही युवाओं ने इस बात को भी मजबूती से प्वाइंटआउट किया कि मोदी भक्तों के आक्रमण और प्रोपगंडा पर आधारित थोथी दलीलों से निपटने के हर उपाय किये जाने चाहिए. ऐसे सवालों के जवाब में तेजस्वी ने उनसे आग्रह किया कि “हमें साम्प्रदायिक और देश को बांटने वालों की तरह अभद्र भाषा का जवाब उनके ही शब्दों में देने के बजाये तथ्यों और तर्कों के आधार पर देना होगा. हमें सभ्य आचरण का पालन हर हाल में करना होगा”.

तेजस्वी जब यह कह रहे थे तो निश्चित तौर पर उनके दिमाग में यह बात थी कि फेसबुक पर साम्प्रदायिक शक्तियां कैसी आक्रमक और अभद्र भाषा का प्रयोग करती हैं. पर सवाल यह था कि तर्कसम्मत और तथ्यपूर्ण बातें की कैसे जाये? ऐसे या इन जैसे कठिन सवालों के जवाब भी ‘सोशल मीडिया के फ्रेंड’ चाह रहे थे. बात चूंकि गंभीर होती जा रही थी, जिसकी उम्मीद शायद ‘टीम तेजस्वी’ के संजय यादव और रंधीर कुमार ने भी नहीं की थी. पर यह लाजिमी सवाल तो उठे ही. लेकिन इसका जवाब इतने आसान इसलिए नहीं थे कि सोशल मीडिया से जुड़े युवाओं को ऐसे सवालों के जवाब शब्दों से बताने के बजाये ट्रेनिंग के द्वारा ही दिया जा सकता है.

कुल मिला कर यह आयोजन आभासी दुनिया के साथियों से वास्तविक दुनिया में मिलने जैसा रहा. इनमें ऐसे भी युवा शामिल थे जो तेजस्वी से मिल भर लेना चाहते थे.

जो होना चाहिए था

दूसरी तरफ इस आयोजन का आइडिया और इसकी परिकल्पना जितने महत्वपूर्ण थे, आयोजकों की तैयारियां भी उतनी ही प्रभावशाली बनायी जानी चाहिए थी. पर इसका स्पष्ट अभाव दिखा. एक दूसरे से परिचय लेने-देने की हद तक तो बातें ठीक थी पर सोशल मीडिया कम्पेन की बारीकियों पर टीम तेजस्वी को न्यू मीडिया के एक्सपर्ट का सहारा लेना चाहिए था, जो उसने नहीं लिया. सोशल मीडिया से जुड़े उत्साही और जोशीले युवाओं के जिज्ञाशाओं को प्रभावी तरह से शांत करने के साथ-साथ इसके उपयोग के तकनीकी पक्ष पर जोर देने की जरूरत थी.

सुझाव

हालांकि यह आयोजन पहले अनुभव की तरह था इसलिए आगे उम्मीद की जानी चाहिए कि उस दिशा में अब टीम तेजस्वी काम करेगी. इस संबंध में टीम तेजस्वी को गंभीर चिंतन के साथ आगे आना चाहिए. न्यू मीडिया के विशेषज्ञों की एक ऐसी टीम बनानी चाहिए जो सामाजिक न्याय की बारीकियों के साथ-साथ मौजूदा राजनीतिक सामाजिक मुद्दों की गंभीर समझ रखते हो. उम्मीद हे टीम तेजस्वी इस पर विचार करेगी.

By Editor

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