कोई विपक्षी नेता नीतीश सरकार को गरीब विरोधी कहे तो इसे राजनीतिक बयान कहके नजर अंदाज किया सकता है लेकिन तथ्य इस आरोप को सही साबित करें तो इस पर सोचना ही पड़ेगा.Manrega

इर्शादुल हक

यह सब जानते हैं कि महात्मागांधी रोजगार गारंटी कार्यक्रम( मनरेगा) गरीबों को रोजगार के साथ दो जून की रोटी मुहैया कराने की देशव्यापी योजना है. इसके तहत हर व्यक्ति को साल में कम से कम 100 दिनों का रोजगार देने की गारंटी केंद्र सरकार ने बाजाब्ता कानून बना कर किया है. इसके लिए न्यूनतम मजदूरी 144 रुपये तय है.

दिनोंदिन लगातार बढ़ती महंगायी से न सिर्फ मजदूर तबका बल्कि लोअर मिडिल क्लास के लोग कितने आहत और परेशान हैं यह किसी से छिपी बात नहीं है. इस महंगाई डायन की मार से बचने के लिए सरकारें और निजी क्षेत्र एक आसान रास्ता यह अपनाते रहे हैं कि वह मजदूरी या वेतन में बढोत्तरी करते हैं.

सरकार अपने कर्मियों के महंगायी भत्ता साल में अवसतन दो बार बढ़ाती है. पर बिहार सरकार ने एक ऐसा कारनामा अंजाम दिया है जो गरीबों की गरदन पर महांगायी की धारदार छुरी जैसी जानलेवा है. उसने पिछले 13 अप्रैल को मनरेगा मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने के बजाये कम कर दी है. राज्य में डेढ़ करोड़ लोग दिहाड़ी मजदूरी करते हैं.

पहले मनरेगा कर्मियों को प्रतिदिन के काम के लिए 144 रुपये दिये जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं रहा. 13 अप्रैल से उन्हें मात्र 138 रुपये मिला करते हैं. यानी 6 रुपये प्रति दिन की कटौती. इस घटे हुए 6 रुपये का सीधा अर्थ हुआ कि एक गरीब मजदूर के घर में दो रोटियां कम आयेंगी. यानी उन्हें अपने और अपने बच्चों के पेट से दो रोटियां छीन ली गयी हैं.

इस मामले का एक और पहलू भी है. इसी बिहार सरकार ने राज्य में न्यूनतम मजदूरी की दर, जो कई आर्थिक मानदंडों के आधार पर तय की जाती है, के अनुसार 168 रुपये है. पर राज्य सरकार न्यूनतम मजदूरी से भी कम मनरेगा मजदूरी देती है और उसमें भी 6 रुपये की कटौती राज्य सरकार की गरीबों के प्रति उसकी मंशा को स्पष्ट करती है. अगर आप मनरेगा मजदूरी की दर अन्य राज्यों की तुलना में देखें तो बिहार की स्थिति चौंकाने वाली है. हरियाणा में मनरेगा कर्मियों को एक दिन की मजदूरी 214 रुपये दी जाती है.

तो क्या सरकार का यह फैसला गरीब विरोधी है. एक साधारण समझ का इंसान भी इस हकीकत क् मद्देनजर कह सकता है कि बिहार सरकार का यह फैसला गरीब विरोधी है.
आये दिन भ्रष्टाचार और लूटपाट के लिए बदनाम राज्य सरकार का यह कदम घातक है.

अदालत से सियासत तक हचलचल

अशोक भारती: मनरेगा मजदूरों की मुखर आवाज
अशोक भारती: मनरेगा मजदूरों की मुखर आवाज

नेशनल कंफेड्रेशन ऑफ दलित आर्ग्नाइजेशन्स( नैकडोर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती, पिछले दो सालों से अखिल भारतीय मनरेगा मजदूर युनियन के बैनर तले बिहार में मजदूरों के हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वह कहते हैं राज्य सरकार का यह कदम गरीबों के मुंह से रोटी छीनने जैसा है. अशोक भारती कहते हैं, जहां देश भर में बढ़ती महंगाई के चलते मजदूरी लगातार बढायी जा रही है है वहीं राज्य सरकार इसे कम करके गरीबों पर जुल्म ढा रही है.

मजदूरी कम करने के पीछे राज्य सरकार का तर्क यह है कि उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर है इसलिए उसने मजदूरी में कटौती की है. तो यहां यह सवाल पूछा जा सकता है कि राज्य के नौकरशाहों को हर साल कम से कम 8 प्रतिशत वेतन बढ़ाने के लिए पैसे हैं. विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों और मंत्रियों के वेतन और भत्ते लगातार बढ़ाने के लिए फंड की कोई कमी नहीं. पर दो जून की रोटियों के लिए जद्दोजहद करने वाले गरीबों के मुंह से निवाले ही छीने जायें तो साफ है कि सरकार मजदूरों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं रखती.

लेकिन इस राज्य के मजदूर अपने हक को पहचानते हैं. उन्होंने सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी. और यह अदालत की तत्परता ही कही जायेगी कि उसने इस मामले को गंभीरता से लिया और सरकार के इस फैसले को आड़े हाथों लिया. अदालत ने 15 मई को राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसके मजदूरी 144 से घटाकर 138 रुपया प्रतिदिन कर दी गयी थी. इसके साथ ही कोर्ट ने केन्द्र सरकार को भी हलफनामा कर बताने को कहा है कि जो न्यूनतम मजदूरी निर्धारित है उससे मनरेगा की मजदूरी कम कैसे हो सकती है?

राज्य सरकार मनरेगा मजदूरी मामले में राजनीति कर रही है. वह चाहती है कि मजदूरी में कटौती का ठीकरा केंद्र सरकार के सर पर फोड़ा जाये.15 मई को ही जिस दिन पटना उच्च न्यायालय मनरेगा मजदूरी कम करने के बिहार सरकार के फैसले पर रोक लगा रही थी, राज्य के मुख्यमंत्री केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जय राम रमेश से मिल कर मनरेगा मजूदरी बढ़ाने की मांग कर रहे थे. वह यह जताना चाहते थे कि मजदूरी की न्यूनतम दर 168 रुपये है तो मनरेगा मजदूरों की मजदूरी भी 168 रपुये की जानी चाहिए. पर इस मामले में अशोक भारती का कहना है कि मनरेगा मजदूरी में 20 रुपये का अंशदान राज्य सरकार को करना होता है. और राज्य सरकार ने अपने अंशदान में कमी की है. लेकिन वह इस सच्चाई को जनता से छुपा कर न्यूनतम दर वाली बात को सामने लाकर अपने को बचाना चाहती है.

By Editor