विधायक रहते कभी स्कूटर से फर्राटे लगाते एक जुझारू विधायक का नाम था सुशील मोदी. पर बाद में महत्वकांक्षा की अपनी उड़ान के लिए पंख लगाने के लिए दूसरों के पर कतरने तक का मोदी का पूरा सफर यहां पढिये-

इलस्ट्रेशन टेलिग्राफ इंडिया डॉट कॉम
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अशोक कुमार मिश्रा

पहला सीन-

बात 190 के आसपास  की है सूबे में माई समीकरण की सरकार थी. लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे.राजधानी पटना का हड़ताली चौराहा. (बेली रोड ) मैं छपरा के एक मित्र प्रो0 रामेश्वर सिंह के साथ पैदल जा रहा था. इतने में ही रामेश्वर जी ने एक स्कूटर सवार को हाथ दिया. स्कूटर पर सवार व्यक्ति हम लोगों के पास आकर रूक गया.

 

दुबला पतला शरीर हल्की सी दाढी. रामेश्वर जी ने अपनी समस्या रखी और उस व्यक्ति ने इस मामले को सदन में उठाने का भरोसा दिलाया. उस व्यक्ति के जाने के बाद रामेश्वर सिंह ने कहा कि ये सुशील मोदी है और बीजेपी के जुझारू विधायक है.उस समय बिहार विधान सभा के अंदर जहां इंदर सिह नामधारी, यशवंत सिंहा , दशरथ सिह रूद्र प्रताप समेत कई चर्चित चेहरे थे. तो बाहर में कैलाश पति मिश्र का संरक्षण था.

दूसरा सीन-

बिहार विधान सभा का चुनाव टिकट बंटबारे से नाराज सांसद आर के सिंह ने बीजेपी नेतृत्व पर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और पैसे लेकर टिकट बेचने का लगाया आरोप.आर के सिंह भारत सरकार के पूर्व गृह सचिव भी रहे हैं. साथ ही उन्होनें यह भी कहा कि उनहोने सुशील मोदी से बात करने की कोशिस की लेकिन उन्होने फोन रिसिव नहीं किया. जवाब में सुशील जी ने कहा कि मेरे पास हजारो फोन रोज आते है आखिर मैं कितने का फोन रिसीव करू.

अब जरा सोचिये एक मोदी अदने से आदमी की बात सुनता है दूसरा मोदी को अपने सांसद की बात सुनने की भी फुर्सत नही . आखिर क्यों.

तीसरा सीन-

एक-एक दिग्गज को हाशिये पर ढ़केला

बिहार के बंटवारे के बाद सूबे में भाजपा की कमान सुशील जी ने अप्रत्यक्ष रूप से संभाल ली. पहले बीजेपी के भीष्म पितामह का दिल जीतने के लिये अपने सरकारी आवास को पार्टी के हवाले कर दिया फिर पार्टी को अपना घर बनाया और एक – एक करके पार्टी के सभी दिग्गजों को हाशिये पर डाला.

याद करिये नीतीश बीजेपी गठबंधन के सत्ता में आने के वक्त गोपाल नारायण सिंह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे. लेकिन सत्ता में आने के बाद गोपाल नारायण सिंह पद से हटाये गये. अध्यक्ष बने राधा मोहन सिंह. नवीन किशोर सिंहा को मंत्री पद से बेदखल किया गया. फिर चंद्र मोहन राय , सीपी ठाकुर , ताराकांत झा समेत अनेक दिग्गज नेताओं को बेदखल किया गया. कभी विधान परिषद में यशोदानंद सिंह गरजते थे. मोदी ने उन्हें भी पार्टी से चलता करवा दिया.

फिर झारखंड के बंटवारे के बाद खुद विरोधी दल के नेता बने. फील गुड में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो भागलपुर से चुनाव लड़े और सांसद बने. किस्मत ने दिया धोखा बीजेपी की सरकार नही बन पायी. अश्विनी चौबे को विरोधी दल के नेता का लाली पाप थमा दिया गया.लेकिन बिहार विधान सभा के चुनाव में एन डी ए की सरकार बनी तो फिर खुद उप मुख्यमंत्री बन बैठे और सदन में विधायक दल का नेता नंद किशोर यादव को बनाया.

समानांतर टीम बनायी

अब इन दो दशकों में मोदी ने भाजपा के दिग्गजो को ठिकाना ही नही लगाया उनके बदले ऐसे नेता को खड़ा किया गया जिनका शायद कोई जनाधार ना हो. सीपीठाकुर के बदले मंगल पांडे, चंद्रमोहन राय भोला सिंह के बदले रजनीश कुमार ,ताराकांत झा के बदले विनोद नारायण झा, गोपाल नारायण सिंह के बदले राधामोहन सिंह , अमरेन्द्र प्रताप सिंह के बदले रामाधार सिंह समेत दर्जनों ऐसे नेता हैं जिनके विकल्प में मोदी जी ने एक समानांतर टीम खड़ी कर दी. इतना ही नही मोदी कभी खुद पार्टी अध्यक्ष नहीं बने लेकिन पार्टी मो जो चाहा पूरा किया. विधान परिषद का सदस्य हो या राज्य सभा का टिकट सुशील जी ने गणेश परिक्रमा करने वाले को ज्यादा तवज्जो दी.

फिर चौराहे पर..

पटना और उसके आस पास के अलावे सूदूर देहात के किसी कार्यकर्ता को यह सौभाग्य प्राप्त नही हुआ. इतना ही नही चाहे चकाई से फाल्गुनी यादव हो , खगड़िया की चन्द्रमुखी देवी या फिर बेगूसराय के अमरेन्द्र कुमार अमर एन डी ए के शासन में ऐसे सैकड़ो कार्यकर्ता अपमानित भी हुए.

लेकिन विधान सभा के चुनाव परिणाम ने पार्टी की आंतरिक ताकत को तो उजागर कर ही दिया है एक बार फिर सुशील जी को उस चौराहे पर खड़ा कर दिया है जहां लालू फिर सत्ता मे और मोदी चौराहे पर.

लेखक कशिश न्यूज के वरिष्ठ पत्रकार हैं. फेसबुक से सम्पादित अंश

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