तलाक मामले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक और बड़ा फैसला लिया है. जस्टिस ए के गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने कहा कि आपसी रजामंदी से तलाक के मामले में अगर दोनों पक्षों में समझौते की कोई गुंजाइश न बची हो तो 6 महीने के मिनिमम कूलिंग (वेटिंग) पीरियड को ट्रायल कोर्ट खत्म कर सकते हैं.  

नौकरशाही डेस्‍क

SC ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि सेक्शन 13B (2) में जिस 6 महीने के पीरियड का जिक्र है, वो जरूरी (मैंडेटरी) नहीं है. बल्कि निर्देशित है. अगर दोनों पक्षों में समझौते की कोशिश फेल हो चुकी है. दोनों ने बच्चे की कस्टडी और अन्य विवाद निपटा लिए हैं तो कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर कूलिंग पीरियड खत्म कर सकता है.

बेंच ने कहा है कि ऐसे में दोनों पक्ष रजामंदी से तलाक की अर्जी के एक हफ्ते बाद वेटिंग पीरियड को खत्म करने की अर्जी दाखिल कर सेकंड मोशन दाखिल कर सकते हैं ताकि उन्हें तलाक मिल सके. गौरतलब है कि हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत ये प्रोविजन है कि रजामंदी से तलाक के मामले में पहले मोशन और आखिरी मोशन के बीच 6 महीने का वक्त दिया जाता है. ताकि समझौते की कोशिश हो सके. आखिरी मोशन के बाद रजामंदी से तलाक लिया जा सकता है.

कोर्ट ने ये भी कहा है कि परंपरागत तरीके से हिंदू लॉ जब कोडिफाईड नहीं हुआ था, तब शादी एक धार्मिक संस्कार थी. वह शादी रजामंदी से खत्म नहीं हो सकती थी. हिंदू मैरिज एक्ट आने के बाद तलाक का प्रोविजन आया. बता दें कि इससे पहले SC ने मुसलमानों के तीन तलाक की प्रथा पर भी फैसला सुनाया था. हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा था कि इस मामले पर कानून बनाया जाना चाहिए.

 

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