कनार्टक में तीसरी बड़ी जेडीएस के नेता कुमारस्‍वामी के अब नये मुख्‍यमंत्री बनेंगे। भाजपा के नेता येदुरप्‍पा ने सीएम पद से इस्‍तीफा दे दिया है। तीसरी बड़ी पार्टी के नेता के सीएम बनने को लेकर कटाक्ष का दौर भी शुरू हो गया है। लेकिन बिहार में ऐसा पहले भी हो चुका है। नीतीश कुमार 2000 में एक सप्‍ताह के लिए मुख्‍यमंत्री बने थे। वे भी उस समय राजद व भाजपा के बाद तीसरी बड़ी पार्टी समता पार्टी के विधायक दल के नेता थे, हालांकि वे खुद विधायक नहीं थे।

2000 में बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था। मार्च महीने में चुनाव हुआ था। उस समय बिहार में विधायकों की संख्‍या 324 हुआ करती थी। इस चुनाव में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरा था और उसके विधायकों की संख्‍या 124 थी। लेकिन राज्‍यपाल वीसी पांडेय ने भाजपा और जदयू के समर्थन के आधार पर समता पार्टी के नेता नीतीश कुमार को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। उस समय समता पार्टी 34 विधायकों के साथ तीसरे स्‍थान पर थी, जबकि भाजपा 67 विधायकों के साथ दूसरी स्‍थान पर थी। जदयू विधायकों की संख्‍या 21 थी। उल्‍लेखनीय है कि समता पार्टी का जदयू में विलय 2003 में हुआ था। हालांकि तकनीकी तौर इसे विलय भी नहीं मान जा सकता था। समता पार्टी के विधायक और सांसद दल बदलकर जदयू में शामिल हो गये थे।

राज्‍यपाल ने 3 मार्च, 2000 को नीतीश कुमार को सीएम पद की शपथ दिलायी थी। 10 मार्च को विधान सभा की बहुमत साबित करने के लिए बुलायी गयी बैठक में नीतीश कुमार ने विश्‍वास मत हासिल करने से पहले ही आसन को ‘प्रणाम’ कर राजभवन चले गये और राज्‍यपाल को इस्‍तीफा सौंप दिया। अगले दिन राबड़ी देवी को शपथ दिलायी गयी।

सात दिनों के मुख्‍यमंत्री का असर था कि नीतीश कुमार लालू यादव के खिलाफ मजबूत धुरी बनकर उभरते गये। बाद में भाजपा ने लालू को शिकस्‍त देने के लिए नीतीश कुमार को ‘मोहरे’ के रूप में इस्‍तेमाल किया और सफल भी रही। 2005 के नवंबर में हुए विधान सभा का चुनाव अभियान भाजपा के खर्चे पर चलाया था और नीतीश कुमार को सीएम के रूप में प्रोजेक्‍ट किया गया था। इस रणनीति का लाभ भाजपा को मिला और भाजपा की ‘डोली’ पर चढ़ कर नीतीश सत्‍ता में आये।

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