पटनामहाकवि पं रामदयाल पाण्डेय राष्ट्र-भाव के महान कवि थे। उन्होंने साहित्य लिखा हीं नहीं उसे जिया भी। कविताएं की ही नहीं, उसे जीवन में अक्षरश: उतारा भी। IMG_6990

वे साहित्य-संसार में राष्ट्रीयता के आदर्श कवि, विद्वान संपादक, प्रखर-वक्ता, वलिदानी स्वतंत्रता सेनानी और सिद्धांत से कभी न समझौता करनेवाले आदर्श के प्रतिमान के रूप में सदा स्मरण किये जाते रहेंगे। वे स्वतत्रता-संग्राम के उन त्यागी सिपाहियों में थे, जिन्होंने ‘स्वतंत्रता-सेनानी-पेंशन’ यह कहकर ठुकरा दिया था कि, उन्होंने देश की सेवा ‘मातृ-सेवा’ मान कर की थी, उसका मूल्य लेने के लिए नहीं। उन्होंने सरकार के बड़े-बड़े पद ठुकरा दिये, किंतु कभी सिद्धांत और स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। आज ऐसे लोग दूर-दूर तक दृष्टि दौड़ाने पर भी नहीं दिखाई देते। आज वे हमें शिद्दत से याद आते हैं।

जयंती समारोह    

यह बातें आज यहां बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह व कवि-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि पं रामदयाल पाण्डेय की भांति हीं बाबू गंगाशरण सिंह भी हिन्दी के स्तुत्य-सेवियों में अग्रग़ण्य थे। यद्यपि कि गंगा बाबू ने लेखनी से साहित्य की कोई सेवा नहीं की, किंतु हिन्दी के प्रचार और प्रसार के लिए पूरे देश में भ्रमण कर हिन्दी का अलख जलाते रहे।

समारोह के मुख्य अतिथि और विद्वान समीक्षक डा शिववंश पाण्डेय ने महाकवि के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिन्दी साहित्य में उनके जैसा आदर्श व्यक्तित्व मिलना कठिन है। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता-आंदोलन में जो योगदान साहित्य और संघर्ष के संयुक्त माध्यम से दिया, वह एक प्रज्ज्वल इतिहास है। वे बिहार की साहित्यिक-संस्थाओं के प्राण की तरह थे। हिन्दी साहित्य सम्मेलन हो अथवा बिहार की राष्ट्रभाषा परिषद, अनेक वर्षों तक वे इन संस्थाओं के मुखिया रहे किंतु एक सेवक और श्रमिक की भांति इनकी सेवाएं की। साहित्य सम्मेलन के भवन निर्माण में उन्होंने अपने सिर पर ईंट, गारे तक ढोए।

इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त ने पाण्डेय जी को अद्भुत प्रतिभा का कवि और साहित्यकार बताया। उन्होंने कहा कि वे धुन के पक्के और निर्भिक पत्रकार-संपादक थे। डा शंकर प्रसाद, डा बच्चा ठाकुर, पं शिवदत्त मिश्र तथा न्यायमूर्ति दिनेश शर्मा ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी की वाणी-वंदना से हुआ। कवयित्री शालिनी पाण्डेय ने सावन को कुछ इस तरह याद किया कि, “ घनघोर घटा जब घिरती है/ तब व्याकुल मन घबड़ाता है”। कवि डा रमाकांत पाण्डेय ने सावन का इस रूप में स्वागत किया कि, “सावन आए बदरा घीर आए/ बूंद पड़े तन-मन अति भाए”। पर्यावरण के कवि डा मेहता नगेन्द्र सिंह ने अपनी चिंता इस रूप में व्यक्त की कि,”हवा हुई जहरीली कैसे/ मैं भी सोचूं तुम भी सोच/ फ़िज़ा बनी नशीली कैसे/ मैं भी सोचूं तु भी सोच”। कवि ओम प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ का कहना था – “सात की सीमा में दुबका/ सतरंगी नही है/ असीम रंगों का यह सियासी खिचड़ी रंगा है”।

आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, अमियनाथ चटर्जी, डा अर्चना त्रिपाठी, डा शंकर शरण मधुकर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, शशिभूषण उपाध्याय मधुप, बांके बिहारी साव, सच्चिदानंद सिन्हा, अरुण शिवहरी, आर प्रवेश, डा बी एन विश्वकर्मा, अनिल कुमार सिंह, कृष्ण कन्हैया तथा शिवानंद गिरि ने भी अपनी रचनाएं पढी। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।

 

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