लव जिहाद का शिगगूफा दक्षिणपंथियों के नफरत फैलाने वाले विशेषज्ञों का खेल है.सत्ता में आने के बाद ये ताकतें इस एजेंडे को खुले आम अमल करने उतर चुकी हैं जबकि पहले गुपचुप चल रहा था. पढें नफरत के सौदागरlove-jihad1

 

संप्रदाय के नाम पर समाज के ध्रुवीकरण का खेल खेलने में लगी दक्षिणपंथी शक्तियों की ओर से देश में ‘लव जिहाद’ नामक एक फिजूल का शिगूफा छोड़ा जा रहा है। यों इसकी योजना नफरत फैलाने के विशेषज्ञों द्वारा कई वर्ष पहले ही तैयार कर दी गई थी। लेकिन केंद्र में सत्ता में आने के बाद ये ताकतें अपने एजेंडे को गुपचुप तरीके से लागू करने के बजाय उन पर खुलेआम अमल करती देखी जा सकती हैं। ‘लव जिहाद’ नामक बेसिर-पैर के शब्द को गढ़ कर एक समुदाय के लोगों के दिल में दूसरे समुदाय के लोगों के प्रति नफरत बिठाने की कोशिश की जा रही है। समाज को धर्म के नाम पर बांटने के इस मिशन में सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा झूठ-फरेब और मक्कारी का भी सहारा लिया जा रहा है।
आश्चर्य का विषय है कि जहां हमारे देश का संविधान और कानून अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह की न केवल अनुमति प्रदान करता है, बल्कि ऐसे विवाहों को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कार स्वरूप धनराशि भी देता है, वहीं यहां कुछ ताकतें ऐसी भी हैं जो अपने पूर्वग्रही और कट्टरपंथी सोच के चलते ऐसे रिश्तों को परवान नहीं चढ़ने देना चाहतीं। वे अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए हिंसा, झूठ और समुदाय विशेष के प्रति नफरत पैदा करने के लिए तरह-तरह के मिथ्या किस्से गढ़ रही हैं।
भारत में अंतरधार्मिक या अंतरजातीय विवाह का चलन कोई नया नहीं है। अकबर से लेकर इंदिरा गांधी, किशोर कुमार, सुनील दत्त, ऋतिक रोशन, सचिन पायलट, नवाब मंसूर अली खां पटौदी, शाहरुख खान, सैफ अली खान जैसे हजारों ऐसे उदाहरण देखे जा सकते हैं, जहां हिंदू और मुसलिम समुदाय के लोग परस्पर विवाह के बंधन में बंधे हैं। और तो और, इस समय जिस भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा समाज में ‘लव जिहाद’ के नाम पर नफरत फैलाने की मुहिम चलाई जा रही है, उसी पार्टी में मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन जैसे नेताओं ने खुद अंतरधार्मिक विवाह किया है। भारतीय जनता पार्टी के ही एक बड़बोले नेता और भारतीय मुसलमानों को मताधिकार से वंचित किए जाने की बात करने का हौसला रखने वाले सुब्रमण्यम स्वामी ने खुद अपनी पुत्री का विवाह मुसलिम परिवार में किया है। इस

 

देश में ऐसी लाखों मिसालें हैं, जिन्हें देख कर हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि प्यार और मोहब्बत दरअसल धर्म और जाति जैसी संकुचित सीमाओं से कहीं ऊपर हैं। यही वजह है कि कोई भी धर्म या किसी भी देश का कानून धर्म या संप्रदाय और जाति के आधार पर एक-दूसरे से विवाह न करने जैसा तालिबानी निर्देश कहीं नहीं देता। हां, धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों, नफरत के सौदागरों द्वारा धार्मिक उन्माद फैला कर एक हौवा जरूर खड़ा किया जाता है।
इस मिशन के अंतर्गत नफरत के सौदागरों द्वारा मोबाइल फोन पर एक एसएमएस भेजा जा रहा है। इस एसएमएस में यह बताने की कोशिश की जा रही है कि मुसलिम धर्म के लोग विदेशी ताकतों के इशारे पर योजनाबद्ध तरीके से हिंदू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसा कर अपनी जनसंख्या बढ़ाने का काम कर रहे हैं। दरअसल, भय और नफरत फैलाने वाले इस चेतावनी संदेश का जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। अगर सरकार चाहे तो एक व्यापक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के द्वारा ऐसे अफवाहों की हकीकत का पता लगा सकती है। इसके साथ-साथ एक सर्वेक्षण इस विषय पर भी किया जाना चाहिए कि किसी भी मजहब के अनुयायियों के बीच ज्यादा बच्चे पैदा करने का संबंध धर्म या धार्मिक शिक्षा से है या गरीबी और जहालत से? इस प्रकार का सर्वेक्षण होने के बाद यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि ज्यादा बच्चे पैदा करने की वास्तविक वजह क्या है!

 

जनसत्ता से साभार

 

By Editor