भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी और जदयू की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक कल समाप्त हुई। दोनों की बैठक में पार्टी के आधार विस्तार को लेकर मंथन किया गया और वोटों की नयी जमात की तलाश शुरू हो गयी। नये सहयोगी भी तलाशे जा रहे हैं ।

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बिहार ब्यूरो
जदयू की बैठक इस मायने में महत्वपूर्ण रही कि पार्टी ने राजद के साथ गठबंधन की औपचारिक घोषणा कर दी। इसमें लालू यादव का यशोगान भी हुआ। नीतीश कुमार ने लालू यादव को बुरे वक्त का विश्वस्त सहयोगी भी बताया। मुख्यनमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा कि चुनाव में भाजपा को हराने के लिए राजद से दोस्ती मंजूर है।

 

लेकिन राजद के साथ दोस्ती की जड़ में सरकार बचाने की बेचैनी भी है। विधानसभा में जदयू अल्पमत में आ गया है । उसके अपने ही विधायक सरकार को अस्थिर करने में जुट गए हैं। वैसे माहौल में सहयोगी दलों की बैसाखी सरकार के लिए आवश्यथक हो गयी है। कांग्रेस के चार, दो निर्दलीय व एक भाकपा विधायक के भरोसे ही सरकार को स्थिर बनाए रखना संभव नहीं है। वैसे माहौल में लालू यादव का ‘दमकल’ राजद ही सरकार के लिए फायर फाइटिंग का काम करने में सक्षम है।
लोकसभा चुनाव में राजद के आधार मजबूत होने के साफ संकेत उभर कर सामने आया था, जबकि जदयू के कुनबा पूरी तरह बिखर चुका था। यानी अभी विधान सभा के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर जदयू कमजोर हो गया है। इस कमजोरी ने नीतीश को एकदम हिला कर धर दिया है। इसलिए वह अपनी जिद को किनारे करके लालू यादव के गुणगान में लग गए हैं। क्योंकि अब कदम-कदम पर लालू यादव का सपोर्ट उनके अस्तित्व के लिए जरूरी हो गया है। प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक का एकमात्र लक्ष्य राजद के साथ समझौता और गठबंधन पर आम सहमति बनाने की घोषणा मात्र थी और कार्यकारिणी ने इस पर अपनी सहमति जता दी है। 10 सीटों पर हो रहे उपुचनाव में राजद से बातचीत और तालमेल के लिए प्रदेश अध्यसक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह को अधिकृत भी कर दिया गया है। आगे अब दोनों पार्टियों के विलय की संभावना भी तलाशी जा रही है।
उधर भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में भी निशाने पर लालू यादव ही रहे। भाजपा नेताओं ने बार-बार यह बात दुहरायी कि जंगलराज के पर्याय बने लालू यादव से हाथ मिलाकर नीतीश ने फिर बिहार को जंगलराज में धकेल दिया है। बिहार में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं को भी इसे गठबंधन से जोड़कर दिखाया जा रहा है। राजद-जदयू गठबंधन से मिलने वाली चुनौती से भाजपा भी अनभिज्ञ नहीं है। इसलिए भाजपा ने भी सवर्णों की पांत से बाहर निकलकर पिछड़ी व महादलित जा‍तियों में पैठ बढ़ाने की कवायद शुरू कर दी है। इस बात से भाजपा भी अवगत है कि लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम पर हुई गोलबंदी को विधानसभा में दुहराना आसान नहीं है। इसलिए नयी जमात को जोड़ने की बेचैनी भाजपा में भी है। भाजपा के दो नये साथी रामविलास पासवान के साथ उनकी जाति का समर्थन मिल सकता है, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के कारण कुशवाहा वोट भाजपा को मिलेगा, कहना मुश्किल है।
हालांकि भाजपा भी सरकार पर दबाव बनाने में जुट गयी है। सरकार के भविष्य को लेकर सवाल भी उठा रही है और मध्यरवाधि चुनाव की संभावना भी जता रही है। इसका मुख्या उद्देश्य कार्यकर्ताओं को उत्साहहित बनाए रखना है। भाजपा व जदयू की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक के बाद इतना तय हो गया है कि दोनों गठबंधनों के बीच चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है। वोटों की नयी जमात की तलाश भी शुरू हो गयी है और पुरानी जमात को जोड़े रखने की कवायद भी तेज हो गयी है। अब देखना है कि इस अभियान का फायदा किसे मिलता है।

By Editor