भ्रष्ट और आपराधिक छवि का आदमी जनप्रतिनिधि बने यह इन्हें गवारा नहीं. इसलिए बड़े सपने लिए बिहार के जमुई के एक कारोबारी राजनीति की धार में नये खेवनहार बनने के लिए कूद पड़ा है.मिलिए टुनटुन भैया से.

उमाशंकर भगत उर्फ टुनटुन भैया
उमाशंकर भगत उर्फ टुनटुन भैया

इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन

उमशंकर भगत उर्टुफ नटुन भैया जमुई के एक बड़े कारोबारी हैं. इनका कारोबार बिहार के अलावा कई राज्यों में फैला है. अनेक फैक्ट्रियां हैं. पर इनका मानना है कि राजनीति का मौजूदा स्वरूप और मौजूदा पार्टियां किसानों, व्यवसाइयों और अल्पसंख्यकों की हितों का काम नहीं कर सकती हैं. इसलिए बिहार की राजनीति में एक नयी धार की शुरुआत करने के लिए टुनटुन भैया अपनी नयी राजनीतिक पार्टी का गठन कर चुके हैं. वह आगामा विधानसभा चुनाव में नये दमखम से कूदने की तैयारी में हैं.

यू हुई सफर की शुरूआत

टुनटुन भैया एक कहानी सुन ते हैं. “शाम को लगने वाली महफिल में उनके साथ एक बेरोजगार मगर आपराधिक चरित्र का युवा अकसर आजाया करता था.वह शाम ढ़ले व्यवसाइयों के यहां बैठकी लगाता और किसी बहाने कुछ पैसे ले कर अपने जीवन की गाड़ी आगे बढ़ाता था. एक बार चुनावों के मौसम में वह मेरे पास आया और कहने लगा कि इसबार वह चुनाव लड़ेगा और जिस तरह उसकी तैयारी है वह निश्चित तौर पर चुनाव जीत जायेगा”.

उमाशंकर भगत उर्फ ‘टुनटुन भैया’ उस आदमी की बात सुन कर दंग रह गये. उन्होंने अपने साथियों से कहा कि जो व्यक्ति आपराधिक प्रवृत्ति का है और जो अपने परिवार को अपनी मेहनत की कमाई नहीं दे सकता, वह अगर विधानसभा का चुनाव जीत गया तो समाज के लिए क्या करेगा? ‘टुनटुन भैया’ की बातों पर सबकी आंखें खुल गयीं. और बस उसी क्षण तय हुआ कि चुनाव टुनटुन भैया लड़ेंगे.

और दूसरे दिन चुनाव अभियान की शुरूआत हो गयी. वह जमुई के गांव-गांव निकल पड़े. जहां लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया. इस गर्मजोशी भरे स्वागत की एक खास वजह यह थी कि उमाशंकर भगत जितने बड़े कारीबारी हैं उतने ही दरियादलि इंसान के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने अपने इलाके में निजी स्तर पर सामाजिक, शैक्षिक और बुनियादी जरूरतों के विकास में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. इसका प्रभाव अब तक यह था कि लोग उनके साथ आते गये. मंदिरों, मदरसों, पेयजल की व्यवस्था, गरीबों के बच्चों की शादी जैसे मौकों पर उन्होंने दिल खोल कर सहायता की थी. जिसका नतीजा यह हुआ कि 2000 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव  में टुनटुन भैया मुख्य कंटेंडर बनके उभरे.

नरेंद्र सिंह को दी चुनौती

हालत यह हो गयी नरेंद्र सिंह को इस बात खतरा सताने लगा कि वह चुनाव हार जायेंगे. भगत अपने आरोप दोहराते हुए कहते हैं कि नरेंद्रजी के लोगों  ने बूथ कैप्चरिंग न की होती तो मैं किसी भी कीमत पर नहीं हारता. उन्हें 39 हजार वोट मिले जबकि नरेंद्र सिंह को 42 हजार.

उमाशंकर भगत के लिए सवाल अब यह था कि किसी पार्टी से एक अदद टिकट मांगने के लिए गिडगिड़ाने के बजाये एक नयी धारा की पार्टी बनायी जाये. जो समाज के तीन प्रमुख वर्गों का प्रतिनिधित्व करे. भगत यह मानते रहे हैं कि देश में तीन प्रमुख वर्ग है  जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबसे ज्यादा उपेक्षित है. ये वर्ग हैं- व्यवसायी, किसान और अलप्संख्यक.

बस क्या था. भगत चुनाव आयोग के सामने दस्तक देने पहुंच गये. और आयोग के समक्ष उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी  व्यवसायी किसान अलप्संख्यक मोर्चा को आयोग से पंजीकृत करा लिया.

अब इस पार्टी को गांव-गांव में पहुंचाने के लिए उमाशंकर भगत की टीम निकल पड़ी है. इस पार्टी का लक्ष्य 2015 के विधानसभा चुनाव है.भगत को भरोसा है कि व्यवसायी, किसान और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग मिल कर बिहार में व्यवस्था बदल देंगे.

व्यवसायी, किसान अल्पसंख्यक का इक्वेशन

लेकिन जिन तीन वर्गों के इक्वेशन पर आधारित राजनीतिक परिवर्तन लाने की बात टुनटुन भैया कर रहे हैं. वे पारम्परिक रूप से कभी एक राजनीतिक प्लेटफार्म पर नहीं रहे. क्योंकि किसानों का यह बराबर आरोप रहा है कि उनके उत्पादों की मुनासिब कीमत व्यवसायी वर्ग नहीं लगाता. वह कालाबाजारी करके किसानों के अनाज से बहुत कमाता है पर किसान भूखों मरते हैं.

इसी तरह व्यवसायी वर्ग के बारे में यह आम धारणा है कि यह वर्ग पारम्परिक तौर पर भाजपा और आरएसएस का समर्थक है. ऐसे में अल्पसंख्यक या मुस्लिम समाज व्यवसायी वर्ग के साथ कैसे गोलबंद हो सकता है? इस सवाल के जवाब में उमाशंकर भगत काफी नपे-तुले अंदाज में अपनी बात रखते हैं. वह कहते हैं कि देश में जितने भी साम्प्रदायिक हिंसा हुए हैं उसमें एक भी व्यवसायी वर्ग के आदमी का नाम नहीं है. इन दंगों में जिन वर्गों का हाथ रहता है, उसी वर्ग के लोगों के साथ मुसलमान पिछले 15 साल से रहे हैं. तो क्या जब यह हकीकत मुसलमान जान जायें कि व्यवसायी वर्ग उनका विरोधी नहीं तो वह क्यों नहीं व्यवसायी वर्ग के साथ आयेंगे. भगत किसानों के संबंध में कहते हैं कि किसानों के अनाजों का वाजिब दाम न मिलने के पीछे सरकार की गलत नीतियां हैं. सरकार सही नीति लागू करेगी तो क्या कारण है कि व्यवसायी वर्ग उनके उत्पाद का गलत लाभ उठाते रहें.

 

विधानसभा चुनावों में अब सवा वर्ष का समय बाकी है. उमाशंकर भगत गुना-भाग करके बताते हैं कि हमारी तैयारियों की जो रफ्तार है, हम निश्चित तौर पर आगामी चुनाव में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरेंगे.

 

 

 

By Editor