जो साहित्य-सेवी गंभीर गद्य से होकर कविता की ओर बढते हैं, वो कविता में अपने मनो-भाव को ठीक से अभिव्यक्त कर पाते हैं। डा कल्याणी कुसुम सिंह ने अपने साहित्य में बड़े हीं गंभीर विषयों को अपने लेखन दायित्व के लिये चुना है। सामाजिक-चिंतन से लेकर नारी-विवर्श के सूक्ष्म-तत्त्वों से होकर लेखिका ने अपने कोमल-भावों और पारदर्शी विचारों को अपनी कविताओं में सफ़लता पूर्वक व्यक्त किया है100_7315

यह विचार आज यहां साहित्य सम्मेलन द्वारा, सुप्रसिद्ध लेखिका और कवयित्री डा कल्याणी कुसुम सिंह की दो पुस्तकों, ‘नारी अंतस कथा’ तथा ‘ज़िन्दगी के रंग कविता के संग’ का लोकार्पण करने के पश्चात अपने उद्गार में, प्रसिद्ध कथा-लेखिका डा उषा किरण खान ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि, ‘नारी अंतस कथा’ 48 मर्म-स्पर्शी लघुकथाओं का संग्रह है और दूसरी कविता पुस्तक, 148 कविताओं का संग्रहणीय संग्रह है। दोनों हीं पुस्तकें मन के सभी शुभ-संकल्पों को अभिव्यक्त करती हैं।

सभाध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने, साहित्य-समाज की ओर से लोकार्पित पुस्तकों का स्वागत करते हुए पुस्तक और लेखिका, दोनों के प्रति, मंगल-भाव व्यक्त किया। उन्होनें काव्य-कर्म के संदर्भ में, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी को उद्धृत करते हुए कहा कि, जो पाठकों-श्रोताओं के हृदयों में भी वही भाव भर दे, जिस भाव के घनीभूत होने से कवि के मन से प्रस्फ़ुटित हुई है, वही सच्ची ‘कविता’ है। ऐसी ही कविताएं व्यक्ति और समाज का मन बदलने में सफ़ल हो सकती हैं। यह निर्भर करता है कवि की अंतस की भाव-भूमि और कल्पना-शक्ति के सामर्थ्य पर, जिसे हम ‘कवित्त-शक्ति’ भी कह सकते हैं। यह बात जितनी कविता पर लागू होती है, उतनी हीं कथा पर भी।

डा सुलभ ने माना कि दोनों ही पुस्तकों में लेखिका की भाव-भूमि की गहराई और अनंत आकाश में उनके कल्पना-विहग की अकूंठ उड़ान को अनुभव किया जा सकता है। लेखिका जो एक प्रभावशाली कवयित्री भी हैं, शब्दों से खिलवाड़ नही करती, उसका सार्थक संयोजन करती हैं। यह उनकी विशिष्टता है। इस प्रकार यह आशा बंधती है कि, इन नयी पुस्तकों से हिन्दी साहित्य की पुस्तकों की मात्र संख्या नही बढेगी, बल्कि पाठक-समुदाय को ‘कुछ अच्छा’ मिलेगा भी।

इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि, लेखिका की साहित्यिक-प्रतिभा प्रशंसनीय है। ये गद्य और पद्य दोनों हीं विधाओं में समान अधिकार से लिख रही हैं। यह एक बड़ी बात है। गद्य-लेखन करने वालों के लिये काव्य-कर्म कठिन माना जाता है।

वरिष्ठ लेखक जियालाल आर्य, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, डा राम शोभित प्रसाद सिंह, डा मेहता नगेन्द्र सिंह, डा विनय कुमार मंगलम, बच्चा ठाकुर, डा मंजु दूबे, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, डा अर्चना त्रिपाठी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा लक्ष्मी सिंह, डा शाहिद जमील, डा विनोद शर्मा, रवि घोष, श्याम बिहारी प्रभाकर, पं गणेश झा, संत, बांके बिहारी साव, डा बी एन विश्वकर्मा, आर प्रवेश, मो सुलेमान, प्रभात धवन, कृष्ण प्रसाद कन्हिया, शिवानंद गिरि, डा सुखित वर्मा, राकेश सिन्हा तथा नेहाल सिंह ‘निर्मल’ ने भी अपने उद्गार व्यक्त किये।

कृतज्ञता ज्ञापन के क्रम में लेखिका ने अपनी लोकार्पित पुस्तक से रचनाओं का पाठ भी किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

 

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