मुख्‍य सचिव अंजनी कुमार सिंह मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की अपेक्षाओं और उम्‍मीदों पर खरे उतरे हैं। मुख्‍य सचिव के रूप में उनका दो वर्ष का कार्यकाल आज पूरा हो रहा है। 30 जून, 2014 को उन्‍होंने मुख्‍य सचिव का पदभार संभाला था। यह जिम्‍मेवारी पूर्व सीएस अशोक कुमार सिन्‍हा से ली थी।fdfds

वीरेंद्र यादव

 

मुख्‍य सचिव के रूप में दो साल हुआ पूरा

नीतीश कुमार ने बड़ी उम्‍मीद के साथ अगस्‍त, 2012 में अंजनी सिंह को अपना प्रधान सचिव नियुक्‍त किया था। प्रधान सचिव को तलाश करने में नीतीश को दो वर्ष लग गए थे। 2010 में आरसीपी सिंह आइएएस से इस्‍तीफा देकर राज्‍यसभा में चले गए थे। मुख्‍यमंत्री बनने के बाद नीतीश ने यूपी कैडर के आइएएस आरसीपी सिंह को अपना प्रधान सचिव नियुक्‍त किया था। प्रशासन में उनका बड़ा दखल था। इस कारण उन्‍हें सुपर सीएम भी कहा जाता था। उनके इस्‍तीफे के बाद से दो वर्षों तक सीएस का पद रिक्‍त रहा था। अगस्‍त, 2012 में अंजनी सिंह को सीएम के प्रधान सचिव बनाया गया।

 

बिहार का राजनीतिक माहौल तेजी से बदला।  नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव में जबरदस्‍त पराजय का सामना करना पड़े। उन्‍हें सीएम पद से इस्‍तीफा भी देना पड़ा। जीनतराम मांझी सीएम बने। लेकिन अंजनी सिंह सीएम के प्रधान सचिव बने रहे। जून, 2014 में एके सिन्‍हा के सेवानिवृत्‍त होने के बाद अंजनी सिंह को मुख्‍य सचिव बनाया गया। अंजनी सिंह के कार्यकाल में ही सत्‍ता के लिए ‘अविश्‍वास की राजनीति’ चरम पर थी। नीतीश और मांझी का टकराव जगजाहिर होने के बाद भी अंजनी सिंह दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित बनाए रखने में सफल हुए। यही कारण रहा कि ‘मांझी मात’ के बाद सत्‍ता में लौटे नीतीश ने मुख्‍य सचिव के रूप में अंजनी सिंह को बनाये रखा।

 

पिछले साल नयी सरकार के गठन और इसमें राजद व कांग्रेस की हिस्‍सेदारी होने के बाद भी अंजनी सिंह की सेवा निर्बाध बनी रही। तो इसकी बड़ी वजह अंजनी सिंह की कार्यशैली, संबंधों को साधने का कौशल और सर्वश्रेष्‍ठ परिणाम देने की चुनौती रही। वर्तमान राजनीतिक माहौल में अभी अंजनी सिंह के सामने कोई चुनौती खड़ी होती नहीं दिख रही है। वैसे में उनके साम्राज्‍य के निरापद रहने की ज्‍यादा उम्‍मीद है।

By Editor