तब भाजपा बेबसऔर कमजोर थी.नीतीश उसे हर्दी बुलवा कर चित करते थे. नरेंद्र मोदी को बिहार में घुसने की इजाजत न थी. यहां तक कि भोज से पत्तल खीच लेने का सहास नीतीश में था. अब भाजपा हिमालियाई शक्ति से लबरेज है. इतनी शक्तिशाली कि वह नीतीश को नाथ सकती है. ऐसे में क्या नीतीश गठबंधन तोड़ कर भाजपा के चक्रव्यूह में फंसेंगे?

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

 

भाजपा एक ऐसी राष्ट्रीय पार्टी है जो वर्षों तक राजनीतिक रूप से अछूत बनी रही. उसने अपने अछूतेपन को  खत्म करने के लिए क्षेत्रीय दलों का सहारा लेना शुरू किया. क्षेत्रीय दलों को कंधे पर बिठाया फिर सर पे उठाया. और जब भी अवसर आया उसने पटक कर खद आगे निकल गयी. यहां तक कि उसने अपने सबसे पहली और विश्वस्त सहयोगी शिवसेना को भी महाराष्ट्र में ऐसी दुर्गति तक पहुंचाई कि जो शिवसेना महाराष्ट्र में बड़ी सहयोगी हुआ करती थी आज वहां भाजपा की पिछलग्गू बनने को बेबस है.

भारतीय जनता पार्टी ने बिहार में नीतीश के सहारे सत्ता तक पहुंची. दूसरे दर्जे की सहयोगी के तौर पर. इस दौरान नीतीश ने अपनी शर्तों पर उससे गठबंधन किया. मुख्यमंत्री रहते सात सालों तक भाजपा उनके इशारों पर नाचती रही. इतना ही नहीं नीतीश का प्रभाव इतना व्यापक हो चुका था कि उस दौरान वह भाजपा के आंतिरक मामलों में मजबूत दखल रखते थे. गुजरात दंगों के आरोप के शिकार तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को वह इसलिए बिहार में कदम नहीं रखने देते थे कि उससे बिहार में उनका मुस्लिम वोटर नाराज न हो जाये. पंजाब के एक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ने उनसे हाथ मिलाया और उसकी तस्वीर अखबारों में विज्ञापन के तौर पर छाप दी. इसके कुछ दिनों बाद ही नीतीश ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को भोजप पर बुलाया था लेकिन जैसे ही मोदी से हाथ मिलाती तस्वीर के जरिये भाजपा ने लाभ लेने की कोशिश की, उन्होंने पल भर में भोज रद्द कर दिया. भाजपा के तमाम नेता पटना में दावत उड़ाने का इंतजार करते रह गये.

इस दौरान गंगा में काफी पानी बह चुका है. भाजपा अपने इतिहास में सबसे शक्तिशाली रूप में मौजूद है. और इस पार्टी व उसकी सरकार की कमान उन्हीं नरेंद्र मोदी के हाथ में है, जिन्हें बिहार में घुसने की इजाजत लेने के लिए नीतीश की तरफ देखना होता था. एक बार इन्हीं बातों के ले कर नरेंद्र मोदी ने नीतीश पर हिमालय जैसा अहंकार होने का आरोप लगाया था. और उनके डीएनए पर सवाल उठाया था. लेकिन अब जब राजद के साथ गठबंधन पर संकट के बादल हैं, ऐसे में सवाल है कि क्या नीतीश कुमार उस भाजपा के भरोसे महागठबंधन को तोड़ने का जोखिम लेंगे?

नीतीश एक मंझे हुए राजनेता है. वह बारीक से बारीक मुद्दों पर दस बार सोचते हैं. और जब नहीं सोचते तो उन्हें मांझी को मुख्यमंत्री बनाने जैसा फैसला कर लेते हैं, जिसका परिणाम उन्हें अच्छी तरह याद है. नीतीश ने इस परकरण के बाद खुद भी कहा था कि मांझी को सीएम बनाना उनकी भूल थी.

इस घटना के सबके के बाद भी अगर कुछ लोग मानते हैं कि नीतीश राजद से नाता तोड़ कर भाजपा के खेमे में जा सकते हैं, तो यह उनकी मासूमियत है. ऐसे समय में जब भाजपा हिमालियाई शक्ति से लबरेज हो, तब नीतीश उसके दामन को थामने की गलती शायद ही करें.

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